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बेटी से सुंदर कोई अहसास नहीं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*बेटी से सुंदर कोई अहसास नहीं* *सच में बेटी से अधिक कोई खास नहीं* *थाली तो हम बेटा होने पर बड़े जोर जोर से बजाते हैं* *पर जीवन को मधुर और झंकृत बेटी होने से ही पाते हैं** *खामोशी की जुबान भी समझ लेती है बेटी* बेटी से प्यारी कोई आस नहीं।।