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पूर्ण नहीं संपूर्ण थी मां(( ह्रदय उद्गार बेटी सुमन द्वारा))

 *पूर्ण ही नहीं संपूर्ण थी मां मेहनती ही नहीं निपुण थी मा* *सीधी साधारण  पर बहुत समझदार  जेब देखकर खर्च करती  पर ह्रदय से अति उदार मां की प्राथमिकताओं में  सर्वोपरि    रहा उसका परिवार* उसके भीतर लक्ष्मी,दुर्गा और सरस्वती जी   का था वास यूं हीं तो नहीं थी मां इतनी खास तभी तो जो भी घर आया  लौटा नहीं ख़ाली हाथ लगी  बैठ कर जब ये सोचने,लगा कितना प्यारा सा था मां का साथ* *मान सम्मान प्यार दुलार  की कभी कमी नहीं आई  मां थी जैसे शादी में हो शहनाई* करती रही कर्म कमेरी मां आज फिर उसकी याद आई *प्रतिबद्धता* थी मां के भीतर श्री राम सी,साफ था लक्ष्य और साफ थी मां के जीवन की हर डगर अपना सफर किया अपने ही तरीके से,सपनों को हकीकत में बदलने की नहीं छोड़ी कोई कसर कोई भी बाधा ना बनी बाधक मां की राह में,मंजिल तक मां ने शिद्दत से किया सफर जो सोचा वो कर ही लिया, कोई भी अभाव मां के लक्ष्यों पर  प्रभाव नहीं डाल पाया आज लगी बैठ जब ये सोचने, लगा कितना शीतल कितना पावन था मां का साया *कम आमदनी और बड़ा परिवार होने पर भी  सब काम संपन्न कराने में बाधा कहीं नहीं आई  उपलब्ध सीमित संसाधनों में भी जिसने वैभवता