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बड़प्पन poem by snehpremchand

बड़प्पन नहीं बड़ा होने से, सतकर्म बड़प्पन का आधार। पितामह भीष्म से, कर्मों में  बड़े थे जटायु , सही सोच को कर्म का दिया आकार।। त्रेता में जब जानकी को, दशानन हर ले जाता है। बिन जान की करे परवाह, समक्ष जटायु आता है।। इल्म है उसे बखूबी अपनी शक्ति का, पर मौन नहीं रह पाता है। यथासंभव अपनी सारी शक्ति, सिया रक्षा हेतु लगाता है।। बेशक इस सतकर्म हेतु, निज प्राण जटायु गंवाता है। पर होता देख गलत सिया संग, मौन नही रह पाता है।। मिला कितना बड़ा पारितोषिक उसे, अंत समय रघुवर की गोद से ही बैकुंठ को जाता है। और अधिक तो क्या कहना, कितना महान किरदार जटायु, अपना नैतिक दायित्व निभाता है।। मुझे तो ये जटायु,भीष्म पितामह से, कहीं महान नज़र आता है।। द्वापर में जब पांचाली को जीत जुए में, दुशाशन भरी सभा मे केश खींच कर लाता है।  परम् आदरणीय,उम्र में भी बड़े,  पितामह भीष्म, रहते हैं क्यों मौन , मुझे तो ये आज तलक भी समझ नहीं आता है। । घर की बहू का घर के लोग ही राज सभा में, खुलमखुल्ला कर रहे थे अपमान । मौन रह देखते रहे तमाशा, नारी रक्षा से बेहतर,ऐसी भी क्या प्रतिज्ञा थी महान??? रुदन,सि