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बहुत कहा

बहुत कहा हमने आँखों से,मत बहना, खामोश ही रहना,पर आँखें सुनती नही ,बोलती हैं, बोल गयी,पर उसके शब्द सुनते नही नज़र आते हैं,वो जब अक्सर याद आते हैं,हिया में सुनामी सी ला  जाते हैं, फिर कितना समझ लो खुद को,साडी समझ के पुल ,कुछ पलों में ही ढह जाते हैं,किस किस अहसास से कर समझौता भूल की चादर ओढ़ें हम,वो तो हर अहसास में हमारे,साथी से हो गए हैं ख़ुशी और गम।।

बहुत कहा

बहुत कहा हमने आँखों से,मत बहना, खामोश ही रहना,पर आँखें सुनती नही ,बोलती हैं, बोल गयी,पर उसके शब्द सुनते नही नज़र आते हैं,वो जब अक्सर याद आते हैं,हिया में सुनामी सी ला  जाते हैं, फिर कितना समझ लो खुद को,साडी समझ के पुल ,कुछ पलों में ही ढह जाते हैं,किस किस अहसास से कर समझौता भूल की चादर ओढ़ें हम,वो तो हर अहसास में हमारे,साथी से हो गए हैं ख़ुशी और गम।।