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मेरे जाने के बाद((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)))

मुझे करोगे तो याद ज़रूर, मगर मेरे जाने के बाद। सब घूमेगा तो सही आंखों के आगे, मगर मेरे जाने के बाद।। पिता सूरज है ऐसा, जिसमे तपिश तो होगी, मगर तेज भी दिखेगा, मेरे जाने के बाद।। होता है जब अस्त ये सूरज, लगता है सब धुंधलाया बेमुराद।। मुझे करोगे तो याद ज़रूर, मगर मेरे जाने के बाद।। अपनी आंखों से देखता हूं  सपने मैं तेरे लिए, होगा तो ज़रूर ये अहसास, मगर मेरे जाने के बाद।। तेरे सुनहरे मुस्तकबिल के लिए ही करता हूं मशक्कत मैं दिन रात, दिखेगा तो ज़रूर तुम्हें, मगर मेरे जाने के बाद।। आज ही नहीं,तेरी थाली में रोटी रहे सदा, यही सोचता हूं दिन रैन, मेरी सोच आएगी तो समझ तुझे, मगर मेरे जाने के बाद।। एक अजीबो गरीब सा मंथन चलता रहता है जेहन में मेरे सिर्फ तेरे लिए, आत्म निरीक्षण करोगे तो आत्म बोध होगा निश्चित ही एक दिन, मगर मेरे जाने के बाद।। एक इजहार ए मोहब्बत ही तो नहीं आया करना मुझे, पर आ जाएगी समझ मेरी मोहब्बत मगर मेरे जाने के बाद।। जब तक निंदिया नहीं देती थी दस्तक तेरी पलकों को, तुझे कांधे पर लगा कर सुलाता था, उस कांधे को अहमियत समझोगे तो सही, मगर मुझे कांधा देने के बाद।। मात पिता से ब