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**उठ लेखनी,आज कुछ ऐसा काम करेंगे** विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा

उठ लेखनी आज कुछ ऐसा काम करेंगे। भूखे सोते हैं जो मासूम,लोगों से उनके लिए कुछ करने को कहेंगे। किसी को सूखी रोटी भी नही है मयस्सर,कोई छपन भोग लगाता है।क्यों इतनी विषमता भरा है ये जग,क्यों इंसा आधी आधी रोटी नही खाता है। बहुत सो लिए,अब तो जाग लो, हर समर्थ एक निर्बल का हाथ थाम लो,यही होगा सच्चा बैंक बैलेंस तुम्हारा,कर्म ऐसेतुम्हारी रिटर्न भरेंगे।

उठ लेखनी

उठ लेखनी आज कुछ नए काम को देंगे अंजाम। जननी के बारे में कुछ लिख करजग देंगे आवाम। वो रुकती नही,वो थकती नही,चलते रहना उसका काम। न गिला,न शिकवा,न शिकायत कोई,न देखती भोर,न देखती शाम।। किस माटी से ऊपरवाले ने कर दिया होगा माँ का निर्माण। बहुत ही अच्छे मूढ़ में हीग शायद उसदिन भी भगवान। हम भला करें,हम बुरा करें,कभी नही देती इस बात पर ध्यान। बस हमारा बुरा कभी न होने पाए,इस कोशिश में लगा देती है दिलो जान। एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा  हुआ है पूरा जहान। न कोई था,न कोई है,माँ से बढ़ कर बड़ा महान।। सच मे एक माँ ही तो होती है गुणों की खान। माँ से घर है,माँ से जहाँ है,माँ से ही घर बनता है मकान।। उठ लेखनी आज कुछ ऐसे काम को देंगे अंजाम। जननी स्वर्ग से भी बढ़ कर है,हो सबको इस सत्य की पहचान।।

Poem on mothers love by sneh premchand दे साथ लेखनी

दे साथ लेखनी,कुछ लिखेंगे ऐसा जो करेगा जननी को श्रद्धांजलि का काम। एक बिना ही जग लगता है सूना माँ है ईश्वर का ही दूसरा नाम।। वो कितनी अच्छी थी, वो कितनी प्यारी थी, वो हंसती थी वो हंसाती थी कभी शिकन  अपने चेहरे पर भूल से भी न लाती थी। बहुत परेशान होती थी जब तब बस माँ चुप हो जाती थी। न गिला,न शिकवा,न शिकायत कोई ऐसी माँ को शत शत हो परनाम। दे साथ लेखनी,कुछ लिखेंगे ऐसा करेगा जो जननी को श्रद्धांजलि का काम। भोर देखी ,न दिन देखा न रात देखी,न देखी शाम। घड़ी की सुइयों जैसी चलती रही सतत वो फिर एक दिन ज़िन्दगी को लग गया विराम। वो आज भी हर अहसास में जिंदा है बाद महसूस करने की नज़र चाहिए। है जीवन माँ का एक प्रेरणा बस प्रेरित हिने की फितरत चाहिए।। रोम रोम माँ ऋणि है तेरा ज़र्रा ज़र्रा करता है तुझे सलाम।।