Skip to main content

Posts

Showing posts with the label होती है जहां उजली सी भोर

चलो मन(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*चलो मन* चलते हैं वहां, होती हो जहां  उजली सी भोर।। *चलो मन* जहां रचनात्मकता का होता हो मधुर सा शोर।। *चलो मन*  जहां एक और एक होते हों ग्यारह, है,जोश, जज्बे और जुनून का जो ठौर।। *चलो मन*  जहां कोई राग नहीं कोई द्वेष नहीं कोई कष्ट नहीं,कोई क्लेश नहीं, कोई अवसाद नहीं,कोई विषाद नहीं, जहां स्नेह सरगम का बजता हो *अनहद नाद* सा इसके जैसा समूह नहीं कोई और।। *हमारा प्यारा हिसार* समूह का नाम आता है मेरे जेहन में तो, नाम ही नहीं काम भी इनका कर देता है भाव विभोर।।