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संगठन में होती है शक्ति अपार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*एक और एक होते हैं ग्यारह, संगठन में होती है शक्ति अपार* *संकल्प से सिद्धि के सफर में, सच्चे प्रयास ही सशक्त हथियार* *खुशी दूनी गम आधे* जहां *ऐसा ही तो होता है संयुक्त परिवार* *यहां अहम से ऊपर वयम है जिम्मेदारी संग ही मिलते हैं अधिकार* *मूल में निहित जनकल्याण इसके,  *सार्थक करने आ जाते हैं हर इतवार* *मात्र दीवारें ही नहीं रंगते, रंग देते हैं ये दिल लोगों के बेशुमार* *सब कर सकते हैं कुछ न कुछ ऐसा ऐसे भाव का कर देते संचार* *आप भी आओ,हम भी आएं किस बात का करते हो इंतजार* *नेकी करने में देरी कैसी??? *यहां शिक्षा संग फ्री में हैं संस्कार*