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हर सांझ है बांझ तुझ बिन((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

हर सांझ है बांझ तुझ बिन, भोर भी है उदास उदास। दोपहर थकी, रात कुछ रोई रोई सी, क्योंकि तूं नहीं अब मेरे पास।। यह जो सेहर ((सागर)) था  तेरे वजूद का,  सच में,  मैं,तिनका तिनका सी बह गई। आज भावों को जब शब्दों का पहना रही हूं परिधान, सारी मन की कह गई।।  मैं भाव लिखती हूं आप शब्द पढ़ते हो,  जरूरी तो नहीं अभिव्यक्ति से रंगा हो हर एहसास।  हर सांझ है बांझ तुझ बिन, हर भोर भी है उदास उदास।  दोपहर थकी,रात कुछ रोई रोई सी,  क्योंकि तू नहीं अब मेरे पास।।  संकल्प से सिद्धि तक,  छिपे हुए हैं जाने कितने ही प्रयास।  हर बाधा को पार करती गई तू, और सच में ही बन गई तू खास।।  हर सांझ है बांझ तुझ बिन, हर भोर भी है उदास उदास।।  कुछ लोग जेहन में सच में ऐसे बस जाते हैं।  जैसे बच्चे घर में घुसते ही मां को आवाज लगाते हैं।।  ऐसे भावों से लबरेज सा व्यक्तित्व तेरा, अपनत्व की आती थी सुवास।  हर सांझ है बांझ तुझ बिन,  भोर भी है उदास उदास।।  तू ही केंद्र, तू ही परिधि,  तू ही बहना थी री व्यास।  जाने वाले भला कब लौटते हैं, व्यर्थ लगाना है इसकी आस।।  हर सांझ है बांझ तुझ बिन,  हर भोर भी उदास उदास।।  दोपहर थकी,रात