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Showing posts from October, 2023

इस बार दिवाली में(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*झाड़ना ही है तो घर संग मन की भी गर्द झाड़ लो इस बार दिवाली में* *रंगना ही है तो रंग लो मन प्रेम से,  ऐसा कोई रंगरेज बुला लो इस बार दिवाली में* *जलाना ही है तो जला लो  दीया ज्ञान का,  ले आओ ऐसे ज्ञान दीये इस बार दिवाली में* *शमन करना ही है तो करो विकारों का  लोभ,मोह,काम,क्रोध,ईर्ष्या,अहंकार सबका करो शमन,  इस बार दिवाली में*  *भला करना ही है तो करो कुम्हार का,  खरीद माटी के दीये उससे जो लाए उजियारे उसकी अंधेरी झोपड़ी में भी,  इस बार दिवाली में* *जमी है बर्फ जो किसी रिश्ते पर मुद्दत से,पिंघला दो स्नेह सानिध्य से इस बार दिवाली में* *जाले उतारने ही हैं तो तो उतार दो पूर्वाग्रहों, नफरतों, भेदभाव के इस बार दिवाली में*  *धोनी ही है तो धो डालो समस्त बुराइयां चित से, हो जाए मन उजला,निर्मल, पावन इस बार दिवाली में*  *विचरण करना ही है तो करो मन के गलियारों में,जहां गए नहीं बरसों से, करो मुलाकात खुद की खुद से इस बार दिवाली में*  *देना ही है तो दो यथा संभव दान जरूरतमंदों को इस बार दिवाली में*  *देना ही है वक्त तो दो अपने माता-पिता को इस बार दिवाली में* *मिटानी ही है दूरियां तो मिटा दो बहुत ही खास अप

वो गांव हमारा था

*वो गांव हमारा था* सर्दी के मौसम में जहां घूप सुनहरी खिलती थी गर्मी में वो गहरी सी नीम की छाया मिलती थी खेतों में गेहूं की बाली लहर-लहर लहराती थी सरसों के फूलों की बगिया बसंत ऋतु ले आती थी मेथी,पालक, गाजर,मूली ताजी-ताजी मिलती थी भांत-भांत की चटनी जहां सिलबट्टे पर पिसती थी बाजरे की खिचड़ी और रोटी का स्वाद अनोखा था सदाबहार थी जहां राबड़ी जिसका  स्वाद सदा ही चोखा था चांद सितारों की चादर रातों को भाया करती थी माटी की सोंधी सी खुशबु बारिश में आया करती थी खेतों की मेडों से होकर चहुँ ओर ही राहें जाती थी जहां सुख दुख साझे होते थे, महक अपनत्व की आती थी कोई राग न था कोई द्वेष ना था कोई कष्ट ना था कोई क्लेश ना था हम सबके सब हमारे थे गुण दोष एक दूजे के स्वीकारे थे जहां लोक गीतों की धुन मन खुश कर जाती थी बिन लाग लपेट के सादी सी जिंदगी जैसे सबको गले लगाती थी किस- किस के हैं खेत कहां पहचान बताती  थी वो गांव हमारा था री सखी जहां भोर उजाला लाती थी थक कर होकर चूर जहां रात भी सो जाती थी जहां चित चिंता नहीं होती थी जहां  कोई आडंबर ना होता था सब सरल सहज  सा जीते थे प्रकृति से सबका नाता था माटी ऋण चुकाना जहा

आज वो गिर से याद आई

आज वो फिर से याद आयी, माँ की दीवाली पर मन से की गयी बेहतरीन सफाई, वो ईंटों के फर्श को बोरियों से रगड़ रगड़ कर कर देना लाल, वो पूरे घर को पाइप से धोना,माँ सच में थी तू बड़ी कमाल, वो काम खत्म कर माँ संग तेरे जो जाना होता था बाजार, अब रोज़ बाज़ारों में जा कर भी नही मिलती ख़ुशी वो,तेरी  कर्मठता हर शै को कर देती थी गुलज़ार, वो खील पताशे आज के छप्पन भोगों से भी होते थे माँ लज़ीज़, वो आलू गोभी की सब्जी संग माखन के ,तृप्ति होती थी कितनी अज़ीज़, माँ सच में तेरी प्यार की दस्तक से खिल सी जाती थी दिल की दहलीज, जोश,उत्साह,तरंग से भरपूर जीवन का माँ तूने विषम परिस्थितियों में भी क्र दिया शंखनाद, शायद ही कोई शाम होगी ऐसी,जब आयी न होगी तेरी याद, ज़िन्दगी के सफर में तेरे साथ ने प्यारा सा एक साथ निभाया, तुझे कह लेते थे मन की पाती, ये बाकि जहाँ तो लगता है पराया,  तू कितनी अपनी सी थी, तू कितनी  सच्ची सी थी, आज ये एहसास और जा रहा है गहराया, तू जहां रहे,मिले शांति तेरी दिवंगत आत्मा को,दीवाली के इस पावन पर्व पर दिल ने दोहराया

I wish

I wish the morning of October 29, 2008 had never come.  God is selfish and he always wants the best and you were one. He wants big-hearted and wonderful people close to him and that is why he took you away from us. We all miss you ma. I have never met anyone with a will power as strong as yours.  You went out of your way to help anyone and everyone. You lived every moment and taught us the same. Your smile was contagious and your love unconditional. You taught me so much, right from sewing a button to painting my nails.  You overcame every obstacle that came your way and left behind a learning that there will be dawn after a storm. I know you walk beside us, every single day. Unheard and unseen, showering your blessings and love, protecting us and helping us sail in this journey of life. We owe you a lot ma, you made us. Miss you ma and love you forever and ever... लम्हा लम्हा कर बीते बरस 15 तुम को हमसे बिछड़े हुए यादें कभी जाती नहीं जेहन से, यादों के गुल आज भी जेहन में खिल

सबके बस की बात नहीं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

*दर्द उधारे लेना जग में* सबके बस की बात नहीं *करुणा भरा हो चित व्यक्ति का* सबके बस की बात नहीं *दिल जीत ले जो सबका* सबके बस की बात नहीं *कोई चुभती बात ना कहे किसी को* सबके बस की बात नहीं *मन के घोड़ों की लगाम कसना* सबके बस की बात नहीं  *मधुर वाणी संग हो मधुर व्यवहार* सबके बस की बात नहीं *कुछ करना दरगुजर कुछ करना दरगुजार* सबके बस की बात नहीं *सपने वे होते हैं जो हमे सोने नहीं देते* समझना सबके बस की बात नहीं *दिल दिमाग का हो सही तालमेल* सबके बस की बात नहीं *नयनों की भाषा पढ़ना* सबके बस की बात नहीं *फल मिले या ना मिले पर कर्म करते रहना* सबके बस की बात नहीं *खामोशी की जुबान समझना* सबके बस की बात नहीं *सोच कर्म परिणाम की त्रिवेणी बहाना* सबके बस की बात नहीं *छोटे बड़े हमउम्र सबसे तालमेल होना* सबके बस की बात नहीं *संकल्प का मिलन हो जाए सिद्धि से* सबके बस की बात नहीं *बेगानाें को भी अपना बना लेना* सबके बस की बात नहीं *उपलब्ध सीमित संसाधनों में बेहतरीन कर जाना* सबके बस की बात नहीं *मन में कोई राग ना हो,कोई द्वेष ना हो,कोई अहंकार ना हो,कोई विकार ना हो* ये सबके बस की बात नहीं *सहजता क

दुनिया से जाने वाले

दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ, किस पगडंडी से किस राह को चुन लेते हैं वो,नही छोड़ते कोई निशाँ, माटी मिल जाती है माटी में,है ये जीवन की सच्चाई,जन्म से  मौत का सफर ही तो है जीवन,छोटी सी बात बड़ों बड़ों को समझ न आयी,सब जानते समझते हुए भी मोह माया के बंधन पड़ जाते है भारी, वो अक्सर याद आ ही जाते हैं,थी जिन्होंने हमारी ज़िंदगी सँवारी

प्रगट दिवस की बहुत बधाई

शोक को श्लोक कर देने की दैविक कला के प्रणेता महान कवि ऋषि वाल्मीकि जयंती की सबको बधाई जनक सुता जानकी के प्रतिपालक, बखूबी जानते थे पीर पराई पिता की भांति स्नेह दिया जानकी को,कितनी भी कर लो,कम है बढ़ाई  विश्व के महानतम ग्रंथ से कायनात को अलंकृत करने वाले,जग के प्रथन कवि की रचना ने सर्वत्र ज्ञान की गंगा बहाई अमर है उनकी कृति रामायण, रिश्तों की मर्यादा बतलाई मर्यादा पुरषोत्तम के पुत्रों को दी ऐसी शिक्षा,संग संस्कारों की अलख जलाई श्री राम के परम भगत,महान संत ने रामायण के जरिए जन जन को राम कथा समझाई जानकी को आश्रय दिया गर्भावस्था में,अभिभावक की रीत निभाई महान ऋषि वाल्मीकि जी की आज जयंती पर सबको बधाई साधक आज के रोज करते हैं दान पुण्य,रामायण मंत्रों और श्लोकों की धुन देती है सुनाई शरद पूर्णिमा के पावन दिन वाल्मीकि जयंती है आई जैसे घने अंधेरे में  किसी ने ज्ञान की  पावन गंगा हो बहाई धन्य हुई धरा भारत की जहां जन्में ऋषि वाल्मीकि,राम भगति से कायनात सुंदर हो आई

लम्हा लम्हा

ले लो अपनी शरण में राम

ले लो अपनी शरण में राम जाने कब आ जाए शाम जाने कब आ जाए शाम हो तुम ही मेरे तीर्थ हो तुम ही चारों धाम ले लो अपनी शरण में राम ले लो अपनी शरण में राम तेरी भगति में है शक्ति कहें पवन पुत्र हनुमान हे राघव हे रघुनंदन मेरा भी दूर करो अज्ञान एक नाम तेरा लेने से मेरे हो जाते हैं सारे काम ले लो अपनी शरण में राम जाने कब आ जाए शाम हो तुम ही मेरे तीर्थ हो तुम ही चारों धाम

स्वाभाविक(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मतभेद होना स्वाभाविक है मनभेद होना नकारात्मक बहस होना स्वाभाविक है  अहंकार होना नकारात्मक कभी कभी मन उदास होना स्वाभाविक है पर अवसादग्रस्त होना नकारात्मक कभी कभी किसी कर्म का फल ना मिलना स्वाभाविक है पर कर्म ही ना करना नकारात्मक शब्द मेरे भाव तेरे

वजूद

धड़धड़ाती हुई ट्रेन से तेरे वजूद के आगे थरथराते हुए पुल सा मेरा अस्तित्व शायद सही से तेरे बारे में ना कुछ कह पाता हो भाव लिखने की मेरी कोशिश को शायद ये ज़माना समझ न पाता हो नजर और नजरिया सबके जुदा जुदा हैं किसी को चांद महबूबा सा सुंदर और किसी को चांद में भी दाग नजर आता हो प्रेम मापने का एक ही पैमाना मुझे आता है समझ, जब वो हो सामने कोई और नजर ना आता हो जैसे तूं रही सदा

मन के भीतर रावण है मन के भीतर राम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*मन के भीतर रावण है  मन के भीतर राम* *किसको जगाते,किसको सुलाते ये सबके अलग अलग हैं काम* *सत्यमेव सदा जयते* राम भगति करो निष्काम *रघुपति राघव राजा राम* *रघुपति राघव राजा राम* सच में घट घट में बसते हैं  राम राम राम राम राम राम राम *अधर्म पर धर्म की* *असत्य पर सत्य की*  विजय ही विजयदशमी पर्व का मूल जब तक विजय पाएं ना  आंतरिक शत्रुओं पर, हर उपलब्धि हमारी फिजूल  *रघुपति राघव राजा राम सबको सन्मति दे भगवान* सत्य,मर्यादा,विनम्रता,करुणा ही हैं चारों धाम *मन के भीतर रावण है मन के भीतर राम* काम,क्रोध,लोभ, मद, मोह,अहंकार ईर्ष्या,वैमनस्य,हिंसक प्रवृत्तियां,छल कपट,मांसाहार,मदिरापान,बुरा व्यवहार *इन सबसे मुक्त करना ही अपने चित को*  हो गया समझो दशहरे का त्योहार *सुख,शांति,स्मृद्धि,अनंत आनंद देगा दस्तक जिंदगी के द्वार* हर बार मनाते हैं दशहरा, जलाते हैं रावण को, पर यह रावण नहीं मर पाता *ईर्ष्या,द्वेष,झूठ,आडंबर और भ्रष्टाचार  सबसे रावण का खून का नाता ये नाता अटूट है युगों युगों से, जाने सत्य पूरा जहान मन के भीतर रावण है मन के भीतर राम रावण के दस शीश है प्रतीक दस विकारों के, हर विकार का निश्चि

रघुपति राघव राजा राम

रघुपति राघव राजा राम राम संवारे बिगड़े काम राम से बड़ा राम का नाम रघुपति राघव राजा राम नहीं मात्र हनुमान के, सबके चित में  राम  राम से  मर्यादा पुरषोत्तम राम बनने की कहानी कों   दिल से सलाम *रघुपति राघव राजा राम* राम रात्रि,राम दिवस,राम भोर शाम

दीप और बाती

एक दिन दीप ने कहा बाती से,संग मेरे रहती हो हमेशा,अपना अस्तित्व मुझ में ही विलय कर लिया सारा,क्या अलग नही कोई पहचान तुम्हारी,क्यों मुझ बिन तुम्हे सब लगता है खारा, मन्द मन्द मुस्काई बाती ,फिर बड़े प्रेम से कुछ ऐसा बोली,संग आपके रह कर तो मुझे निस दिन जलना भी है मंजूर, एक बात बस जानती हूँ साकी, रह नही सकती में आप से दूर,आप हो तो हूँ मैं,आप ही हो मेरा सच्चा श्रृंगार,करती थी,करती हूँ,करती रहूंगी आप से सच्चा प्यार

कटुता और मिठास

कटुता ने एक दिन कहा मिठास से,कैसे इतनी मीठी हो तुम,और कैसे सदा रहती हो मुस्काती,क्यों क्रोध नही आता तुम को कभी भी,क्यों मन की बात ज़ुबान पर नही लाती,कैसे हर पल बोलती हो तुम यह सोची समझी मधुर सी भाषा,कैसे ले देती हो तुम उदासी में भी जीने की आशा?मन्द मन्द मिठास मन से मुस्काई,फिर सोच समझ कर शब्दों को अपनी जुबान पर लायी,बहन एक मीठा बोल कर हम परायों को भी अपना बना लेते हैं, और कर कटु विवेकहीन शब्दों का प्रयोग,अपनों को भी परायों में बदल देते हैं,थोड़ा बोलो,मीठा  बोलो,वर्ना अपने लबों को ही न खोलो

माना मझधार में है किश्ती(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

माना मझधार में है किश्ती बस पार लगाने की चाह रहे बाकी माना किसी प्रयास ने सफलता का वरण  न किया हो, पर हौसलों में उड़ान रहे बाकी माना सीधी नहीं राहें जिंदगी की, पर राहों पर चलने का जज्बा रहे बाकी माना हर सपना ना पूरा हो हमारा, पर बड़े बड़े सपने देखने की हसरत रहे बाकी माना संकल्प सिद्धि की चौखट पर न दे पाए हों दस्तक, पर फिर से कोशिश करने का जज्बा रहे बाकी आज गिरे हैं तो भी क्या, बस गिर कर उठना,उठ कर चलने का  जोश रहे बाकी

क्या सच में

क्या सच में हम कुछ अपने ख़ास लोगों को भूल जाते हैं?,या उनकी उपेक्षा कर के हमे अच्छा लगता है,या किसी गलत फहमी का शिकार हो जाते हैं,या बातचीत कम कर के इस खाई को और बढ़ा देते हैं, हम सब एक निश्चित समय के लिए एक रंगमंच पर हैं, हम समसामयिक हैं, रिश्तों की जिस डोर से बंधे हैं,उसको प्रेम से निभाएं तो अच्छा होगा,उपेक्षा कर के समय निकल दिया,बाद में पछताये तो क्या लाभ,सही समय पर सही अहसास ज़रूरी हैं,उन् अहसासों की अभिव्यक्ति ज़रूरी है,साथ वक़्त बीतना ज़रूरी है,एक दिन जब वो अपने ही नही होंगे,तो इस वक़्त का क्या करोगे,ज़रा सोचिए जब संवाद खत्म हो जाता है फिर संबंध पड़ा सुस्ताता है लम्हा लम्हा कर वक्त जिंदगी का बीतता जाता है समय रहते ही न चेते गर हम फिर पछतावा शेष रह जाता है जिंदगी के रंगमच से जाने किस का पर्दा कब गिर जाता है विशेष ही ना जब रहे शेष फिर जीना मुश्किल हो जाता है रोज मुलाकात हो ज़रूरी नहीं पर जब भी मुलाकात हो, उसमे बात ज़रूरी है रिश्तों में संतुलन ज़रूरी है किसी एक को 100 परसेंट ही  दे दिया तो औरों के लिए तो कुछ शेष हीं नहीं रहता बात छोटी पर मायने बड़े,सोचना ज़रूरी है।।

मतलब की दुनिया में

मतलब की दुनिया में, मां तूं ही सहारा है आए ना नजर कोई, मैने तुझ को पुकारा है विश्वाश मुझे इतना, तूं साथ ना छोड़ेगी नाता है मां जो मुझ से, तूं नाता ना तोड़ेगी मुझे राह दिखा दो मां, *तुझ से उजियारा है* मतलब की दुनिया में, मां तूं ही सहारा है *आए ना नजर कोई मैने तुझ को पुकारा है* मतलब की दुनिया में, मां तेरा सहारा है दलदल है बड़ा गहरा, धंसता ही जाता हूं भीड़ में भी मैं मां, तन्हा हो जाता हूं अपने भी बेगाने हैं, तेरा ही सहारा है साची कहूं मैया, मैने तुझ को पुकारा है जब कोई नही सुनता, मां तूं ही सुनती है जब कोई नहीं आता, मां तूं ही आती है तेरी मोहिनी सी मूरत, दिल में बस जाती है इस दिल में सदा रहना तेरा लाल नकारा है मतलब की दुनिया में मां तूं हीं सहारा है उलझा सा है मन मेरा उलझन सुलझानी है तेरे नाम की ओ मैया दुनिया दीवानी है मैं भी हूं दीवाना मैने स्वीकारा है मतलब की दुनिया में मां तेरा सहारा है

बहुत कुछ कह जाती हैं कुछ बातें

उपलब्धियां बता देती हैं प्रयास कितनी शिद्दत से किए गए होंगे नजरिया बता देता है किसी बात को किस नजर से देखा गया होगा प्रतिबद्धता बता देती है सोच कर्म परिणाम की त्रिवेणी कैसे बही होगी चाहने वालों की तादाद बता देती हैं बोली कितनी मधुर और व्यवहार कितना बेहतरीन रहा होगा जब इन बातों के बारे में सोचने  लगी,अक्स तेरा ज़िक्र और जेहन दोनों में आया उम्र छोटी पर कर्म बड़े, कितना पावन सा था तेरा साया

हर आंगन में नहीं खिलता हुनर(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

ऐसी होती है मां(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

इंद्रधनुष के सात रंग है माँ रंगोली के सुंदर रंग है माँ तरुवर की शीतल छैया है माँ हलधर का इकलौता हल है माँ बरखा की बूंदें है माँ सूरज की किरणें  है माँ चाँद की शीतलता है माँ तारों की चमक है माँ मुरलीधर की मुरली है माँ आठ सिद्धि नौ निधि है माँ दिल की धडकन है माँ संगीत की सरगम है माँ आँख का नूर है माँ किताब के हर्फ़ है माँ कूलर का पानी है माँ फ्रीज़ की बर्फ है माँ कृष्ण की गीता है माँ रामायण की सीता है माँ प्रकृति की हरियाली है माँ जीवन मे सबसे निराली है माँ पंछी के पंख है माँ मन्दिर का शंख है माँ गिरिजाघर की बाइबल है माँ मस्जिद की कुरान है माँ गुरुद्वारे का ग्रंथ है माँ मन्दिर का पुजारी है माँ माला का मोती है माँ दीप की ज्योति है माँ चमन का सुमन है माँ महफ़िल की रौनक है माँ सहजता का पर्याय है माँ सबसे सुंदर राय है माँ

ज्योति की जीवन ज्योति जलती रहे((दुआ स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*जलती रहे ज्योति की  *जीवन ज्योति*  *रहे मन पावन,  न पनपे चित में विकार* *कर्म ही परिचय पत्र  होते हैं व्यक्ति का, वरना एक ही नाम के  व्यक्ति होते हजार* *सपने जो भी देखें तुमने,  हों लाडो सारे साकार* *बेटी,पत्नी,बहु,मां,सखी सबका निभाया बखूबी हर किरदार* स्नेह तेल कभी खत्म न हो जीवनदीप में,  हों प्रेम ज्योत के सदा दीदार सौहार्द,करुणा,सहजता  की बहती रहे त्रिवेणी, चित में आए ना कभी अहंकार चेतना करे वरण सदा सत्य का, जिजीविषा का पहने अलंकार *एक अर्धशतक लगाया है अति उम्दा आपने,  दूजा भी करे सुख,समृद्धि और सफलता के दीदार* *दिल से चाहा है,दिल से चाहेंगे, देंगे आज दुआएं तुम्हें बेशुमार* *कुछ खोना कुछ पाना है जिंदगी प्रेम ही हर नाते का आधार* *कुछ कर दरगुजर,कुछ कर दरकिनार* *यही मूलमंत्र है जीवन का, कर लेना इसको स्वीकार* *कोई राग न हो,कोई द्वेष ना हो* *कोई कष्ट ना हो,कोई क्लेश ना हो* *मधुर तुम्हारी मधुर बोली,मधुर तुम्हारा मधुर व्यवहार* *मन मलिन न हो,रहें जटिल न हों* *विश्व के हर दीप में ज्ञान ज्योति रहे बरकरार* *बड़ों का आशीष और छोटों का म

कोई मंगल गाओ री

मंगल गाओ, चोक पुराओ जन्मदिन की देते हैं दिल से बधाई एक दुआ है यही दिल से बजे जीवन में सदा मधुर शहनाई

सबकी सुनती हो मां(( अराधना स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सबकी सुनती हो मां मेरी भी सुन लेना शक्ति देना मैया, तूं भगति देना सबकी सुनती....... जब राह नजर आए ना तूं आती है नजर मैं मूढ़, अधम,अज्ञानी करी ना तेरी कदर अपने चरणों में मैया तूं जगह देना मैं आया शरण हूं तेरी शरण में ले लेना सबकी सुनती हो मां मेरी भी सुन लेना शक्ति देना मैया तूं भगति देना  मुक्ति लख चौरासी से तूं दे देना सबकी सुनती हो मां मेरी भी सुन लेना जब सब पीछे हट जाते मां आती आगे नाम तेरा लेने से हर दुख मां भागे चित चिंता मैया तूं मेरी हर लेना घने अंधेरे है मां ज्योति दे देना सबकी सुनती हो मां मेरी सुन लेना भले बुरे का मैया मुझ को ज्ञान नहीं समझ ना पाऊं ऐसा तो नादान नहीं मेरी हर नादानी मैया भुला देना चित के सारे विकारों को मां हर लेना सबकी सुनती हो मां मेरी सुन लेना शक्ति देना मैया तूं भगति देना रोता बालक सदा ही मां मां कहता है मां के आंचल में वो प्रेम से रहता है मुझे भी अपने आंचल में मां ले लेना अवगुण चित ना धरना कृपा कर देना सबकी सुनती हो मां मेरी भी सुन लेना

मैने पूछा खुशी से रहती हो कहां(( विचार sneh premchand द्वारा))

मैने पूछा खुशी से रहती हो कहां??? हौले से मुस्कुरा दी खुशी  बोली और कहां??? *हमारा प्यार हिसार* समूह है जहां मैने पूछा कर्म से आनंद है कहां?? हौले से मुस्कुरा दिया कर्म बोला और कहां??? *हमारा प्यार हिसार परिवार*  है जहां मैने पूछा जिजीविषा से उल्लास है कहां???? हौले से मुस्कुरा दिया उल्लास बोला और कहां??? सबसे प्यारा परिवार *हमारा प्यार हिसार है जहां* मैने पूछा सहजता से समाधान है कहां???? हौले से मुस्कुरा दिया समाधान बोला और कहां??? पीतांबर धारी *हमारा प्यार हिसार परिवार* है जहां मैने पूछा जागरूकता से सत्कर्म है कहां???? सत्कर्म बोले मुस्कुरा कर और कहां?? *हमारा प्यार हिसार परिवार*  है जहां जहां इतने सुंदर भाव बड़े प्रेम से एक ही आशियाने में रहते हैं कोई और नहीं बंधु उसे *हमारा प्यार हिसार*परिवार कहते हैं

बूंद बूंद बनता है सागर

बूंद बूंद बनता है सागर लम्हा लम्हा बनती जिंदगानी जिंदगी और कुछ भी नहीं सच में तेरी मेरी कहानी अनुभव  से बड़ा नहीं कोई शिक्षक हर अनुभव की चित में निशानी

इंद्रधनुष और रंगोली

मिले सबको शिक्षा का मौलिक अधिकार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*बच्चे बूढ़े और जवान ज़रूरी होता सबका योगदान* *बूंद बूंद बनता है सागर हर कतरा अपने आप में महान* *हर कर्म बन जाता सत्कर्म है गर मूल में होता जनकल्याण* *शिक्षित भारत,जागरूक भारत हो वतन में सबको अक्षर ज्ञान* *तुम भी आओ,हम भी आएं साक्षर भारत का चलाएं अभियान* *सबसे बड़ा गहना है शिक्षा शिक्षा सबसे अनमोल परिधान* शिक्षित आबादी,सुनिश्चित विकास आम भी शिक्षा से बन जाता खास *सुख,स्मृद्धि और सफलता को आती है शिक्षा अति रास* *सबसे दौलतमंद वो जग में, होती है शिक्षा जिसके पास* *नजर नहीं बदल जाता है नजरिया शिक्षा से, शिक्षित व्यक्ति गुणों की खान* *हर संभावित सुधार की बढ़ जाती है आशा, शिक्षा का सरल,सीधा विज्ञान* *अहम से वयम की चलाओ बयार शिक्षा सबसे अनमोल अलंकार* *अलख जले शिक्षा की हर गलियारे हो शिक्षित हर व्यक्ति हर परिवार* दौलत ना दो,जागीर ना दो बस दे दो सबको शिक्षा का मौलिक अधिकार मानो चाहे ना मानो, अपने आप ही हो जाएंगे आवश्यक सुधार *फ्री शिक्षा का तो होना चाहिए  हमारे वतन में प्रावधान* *पढ़ेगा देश तो बढ़ेगा देश* *बन जाएगी विश्व में पहचान* *शिक्षा से शक्तिशाली सच कुछ भी नहीं इस

ये भी जरूरी है(( बधाई स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

*जन्मदिन पर जन्म देने वाली मां को याद करना भी है अति ज़रूरी* *अपनी जान पर खेल हमे इस जग में लाने वाली से कभी बनाएं ना हम दूरी* *मां ही तो होती है जिससे हर भोर  उजली और हर सांझ होती है सिंदूरी* *मां तो अनमोल है जीवन में जैसे मृग नाभि में हो कस्तूरी* *धरा पर ईश्वर का पर्याय है मां जीवन में सबसे सच्ची राय है मां* *एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा  हुआ  है पूरा  जहान* *न कोई था, न कोई है, न कोई होगा मां से बढ़ कर  कभी महान*

धड़कन

*जब धड़कन धड़कन संग  बतियाती है फिर हर शब्दावली अर्थहीन  हो जाती है* *फिर मौन मुखर हो जाता है ये दिल का दिल से गहरा नाता है* *जब संवाद खत्म हो जाता है फिर संबंध पड़ा सुस्ताता है* *आहटें देती रहें दस्तकें जिंदगी की चौखट पर तो अच्छा है फिर वो नाता पहले सा जुड़ जाता है*

जीना इस का नाम है

जीना किस का नाम है?किसी का दर्द हो सके तो ले उधार,जीना इसी का नाम है,हम किसी के लबों पर मुस्कान लाने का कारण बने,जीना इसी का नाम है,शराब पीना,मासाहारी होना क्या जीना है?नही,ये तो किसी को जीने ही न देना है,किसी का मौलिक अधिकार छीन लेना है,किसी को जीवन दे नही सकते,तो लेने का तो हमारा हक ही नही,पीकर अपनी चेतना को खोना क्या जीना इसका नाम है,कतई नही,ये मौज़ मस्ती के क्या पैमाने बना लिए हमने,तनिक विचार कीजिएगा,क्योंकि सही सोच ही सत्कर्मो की धुरी है,सोच से कर्म, कर्म से परिणाम निर्धारित होते है

आने वाला हर लम्हा हो खुशगवार

आने वाला हर लम्हा हो खुशगवार मन खुश हो तो हर लम्हा है त्योहार प्रेम,करुणा,सहजता,विनम्रता सदा दें दस्तक तेरे द्वार मन हो जाता है मंदिर, गर सो जाता है अहंकार कुछ कर दरगुजर, कुछ कर दरकिनार यही मूल मंत्र है जीवन का, प्रेम ही हर रिश्ते का आधार मुबारक मुबारक जन्मदिन मुबारक जीवन ज्योति रहे सदा बरकरार

रहते हो कहां

इजहार ने अहसास से अहसास ने स्नेह से स्नेह ने करुणा से करुणा ने विनम्रता से विनम्रता ने अपनत्व से अपनत्व ने संयम से संयम ने जिजीविषा से जिजीविषा ने कर्म से कर्म ने ज्ञान से ज्ञान ने संगीत से संगीत ने मधुर बोली से मधुर बोली ने मधुर व्यवहार से मधुर व्यवहार ने ममता से ममता ने प्रेम से पूछा रहते हो कहां???? एक ही सुर में बोले सारे और कहां??? **अंजु कुमार के यहां**

सुख दुख में जो संग खड़े हों

जीवन का पहला अर्धशतक

*जीवन का पहला अर्धशतक बखूबी तुमने लगाया है* *दूसरा भी ऐसे ही लगाना प्रिया बार बार दोहराया है* *बहुत नेहमतों से नवाजा है ईश्वर ने यही समझ में आया है* *यूं हीं बारिश होती रहे नेहमतो की आज मेरे दिल ने गाया है* *नाम अनुरूप ही हो प्रिय तुम हर तमस ला देती हो उजियारे* *भली सोच भले कर्म* *खुशियां दे देती हैं दस्तक तेरे द्वारे* *यूं हीं खिली रहे मुस्कान लबों पर यही दुआ का नगमा गुनगुनाया है* *जीवन का पहला अर्धशतक तुमने बखूबी लगाया है*

वह दौर गुजरा ही नहीं कभी

वह दौर गुजरा ही नहीं कभी  जो तेरे साथ बीता है  वही उसी गली में  खड़ा है आज भी  तेरी उंगलियां पकड़े  यूं तो जीवन की  हर परीक्षा में  खरी उतर के आई हूँ  हर कर्तव्य हर फर्ज  मैने दिलो जान से  निभाए हैं  मगर जड़े वही जुड़ी है  तेरी उंगलियां पकड़े  एक रंग जो  चढ़ा था तेरा  वह आज भी  निखर रहा है  सांसे बिखर रही हैं  मगर वजूद  वही खड़ा है  तेरी उंगलियां पकड़े एक मधुर अहसास सी तूं सच तन में जैसे हो श्वास सी तूं गगन में जैसे कोई ध्रुव तारा आती जाती लहरों का किनारा तन संग जैसे हो परछाई बसंत में आमों की अमराई हर उपमा है बहुत ही छोटी क्या कहूं या चुप रहूं मां जाई रुक गया है वक्त जैसे खत्म हो गया संवाद जैसे अवरुद्ध हो गया कंठ धुंधला सा गया है मंजर जैसे जब आंखें नम हों भाव हो गए प्रबल, जैसे अल्फाज कम हों

कभी हकीकत कभी ये सपना

कभी हकीकत कभी ये सपना सच मे ही नही रहा कोई अपना ज़िन्दगी का अनुभूतियों से परिचय करने वाली मैं हूँ न के मधुर सम्बोधन से गोद मे सुलाने वाली भोर की मीठी हलचल माँ दोपहर की सुकूनभरी सी निंदिया माँ साँझ की मुलाकातों की मीठी दास्तान सी माँ रात को शीतल चाँद सी अपनी आगोश में हर चिंता को समाने वाली माँ माँ के बिन जीना तो पडता है पर हर मोड़ पर यादों के झरोखों से झांकने लगती है माँ कभी हकीकत,कभी सपना सी लगती है माँ

लाल बहादुर शास्त्री जी के अमर विचार(संकलन स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

** सादा जीवन उच्च विचार** **जैसी सोच वैसा व्यवहार** **कद छोटा पर कर्म बड़े** **उनके सपनों का बड़ा आकार** *किसी आडंबर के नहीं हुए कभी शिकार* *होगी यही सच्ची श्रद्धांजलि उनको, गर लाएं अम्ल में उनके विचार* *आज जन्मदिन है वतन के लाल का, पूरे वतन को माना परिवार* 2 अक्टूबर 1904 को धन्य हुई थी धरा भारत की, जब शास्त्री जी ने लिया था जन्म *कद छोटा पर कर्म बड़े*व्यक्ति का असली परिचय पत्र होते हैं उसका कर्म कठिन परिस्थितियों का दौर था वो, जब संभाली थी देश की बागडोर कार्यकाल भले ही छोटा हो, पर प्रभाव बड़े,जैसे उजली भोर  अति लोकप्रिय नारा दिया शास्त्री जी ने *जय जवान जय किसान* देश का जवान और किसान है अति सम्माननीय, था नेक इरादा लें सब जान *शास्त्री जी की जन्म जयंती पर शत शत   नमन और वंदन, सच में विभूति अति महान* *सादा जीवन उच्च विचार* *मधुर वाणी मधुर व्यवहार* और परिचय क्या दूं आप का??? दूरदर्शी सोच,विहंगम किरदार **शास्त्री जी के विचार** **देश की रक्षा करना सैनिकों का ही नहीं काम है बल्कि पूरे भारत की है जिम्मेदारी** **सब नैतिक दायित्व समझें देश के प्रति अपना, आ गई समझने की बारी** *हर का

श्रद्धा से जो किया जाए(( श्रद्धांजलि स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*श्रद्धा से जो किया जाए उसे श्राद्ध कहते हैं* *जग से जा कर भी कई लोग जेहन में ताउम्र रहते हैं* *क्या लिखूं मां के बारे में??? मां तूने तो मुझे ही लिख डाला* *उपलब्ध सीमित संसाधनों में कितने प्रेम से था पाला* *शांति मिले  तेरी दिव्य दिवंगत आत्मा को, सच तेरा व्यक्तित्व,तेरा कृतित्व  बड़ा निराला*

प्रेम कपाट

बेटी मां की परछाई

गांधी जी

साबरमती के संत(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*हो साफ स्वच्छ सुंदर भारत हमारा चला दिया ऐसा स्वच्छ भारत अभियान* *व्यक्ति नहीं विचार हैं आप, अच्छी सोच को सु परिणाम का पहनाया परिधान* *तीन बंदर आपके सच में बहुत कुछ  सिखाते हैं बुरा मत देखो,बुरा मत सुनो,बुरा मत करो तीनों भावों को प्रमुख बनाते हैं* *अहिंसा परमो धर्म हमारा यही गांधी जी ने सदा सिखाया* *चरखा कात कर *अपनाओ स्वदेशी* जन जन को उन्होंने समझाया*