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Showing posts from August, 2021

खुशी

बनता रहा कारवां

मोहर

कोयल काली

किरदार

कुछ लोग((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

समस्या

जो बीत गया है वो

लम्हा खूबसूरत है

जब भी कहीं भी

प्रतिभा

कभी कभी

दो पल की है जिंदगानी

मौके

फिर नहीं आते

प्रेम से बढ़ कर कुछ नहीं

कहा से लाऊं

ग्राहक ही है सर्वोपरी

प्रतिभा

आरुषि दिनकर की

चित्रकार

क्या है सच्ची श्रद्धांजलि मां को((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मुझे कुछ कहना है,मुझे ये कहना है कि माँ को  सच्ची श्रदांजलि क्या होगी?माँ को याद कर के आंसू बहाना, नहीँ, पुराने वक़्त को रोते रहना,नहीँ, बचपन के हिंडोले में झूले लेते रहना, नहीँ, इनमे से कोई माँ को सच्ची श्रदांजलि नही होगी,माँ की कर्मठता को अपनाना,बिना रुके चलते रहना,ऊँचे सपने देख उन्हें पूरा करने का हर यथासंभव प्रयास करना,न किसी से दुश्मनी,सबसे हिल मिल कर चलना,आगे बढ़ कर आना,क्रिया पर प्रतिक्रिया करना,स्वस्थ है परिहास,जिजीविषा से भरपूर रहना,हार न मानना,प्रेम से परायों को भी अपना बनाना, हर हाल में जिजीविषा का दामन न छोड़ना,ऊंचे ख्वाब देखना और फिर उसी दिशा में प्रयास करना। बेटा बेटी में भेद न करना,कथनी में नहीं करनी में विश्वास रखना,ये सब सीखना ही माँ को  सच्ची श्रधांजलि होगी,है न?????

एक बार फिर आ जाओ माधव((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

लालसा

aaz ka vichar....bhotik sukhon ki itni bhi lalsa mat rakho,ki adhyatam ki kitab ka ek panna bhi hum na kholein,chup itna bhi mat rho,ki sach aur tarksangat bat ka bhi hum samarthan na krein,rishton ki itni bhi parwah mat kro ,ki jhute riston ko hum apni takat samajne lgein,prathmiktaon ki itni bhi upeksha mat kro,ki pachtawa hmara sathi ban jaye,aankhein itni bhi band mat rakho,ki shi galat ka bhed hi na dhikhe,itna bhi mat dro.ki koi bhi aap ko drane me saksham ho jaye,kisi ek hi vastu ya vishy per itna bhi kedrit mat ho jao,ki baki sab upekshit ho jaye.......zindgi bahut kuch sath sath le ker chlne ka nam h............

ऐसी होती है मां

जाने कहां

महत्व किस बात का

तिलक समझौते का((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

माँ बच्चों की अनेकों गलतियों पर सदा समझौते का तिलक लगाती है,खुद गीले में रह कर वो बच्चों को सूखे में सुलाती है,माँ बरगद की है वो ठंडी छैयां, जो जीवन की तपिश से बचाती है,बच्चों के सपनो के आगे अपनी इच्छाओं की कुर्बानी चढ़ाती है,कर्म की कावड़ में जल भर मेहनत का बच्चों का जीवन सफल बनाती है,हर माँ को शत शत नमन है मेरा,जो जीवन की किताब के हर पन्ने को ममता की स्याही से लिख जाती है,पर कई बार हम ही नही पढ़ पाते उन  अक्षरों को,जिन्हें वो बार बार  समझाती है,आती तो है हमे समझ,पर जब वो जग से चली जाती है,अपने खून और दूध से सींच कर, वो जीवन पथ पर हमें आगे बढ़ाती है,बेशक अपना हो उसका अग्निपथ,पर शिकन माथे पर नही लाती है,यही कारण है शायद माँ तभी ईश्वर के समकक्ष नज़र आती है

कभी कभी

कभी कभी

तुम मुझे यूं भुला न पाओगे

नजरिया

व्यक्तिगत भिन्नता((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सुखद सा आभास((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

ऐसे समाए

कोई बात नहीं

कच्चे धागे पर बंधन पक्का((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कच्चे धागे,पर पक्का बंधन,  दे देना भाई बस एक उपहार। दूँ आवाज़ जब भी दूर कहीं से भी,चले आना बहन के घर द्वार।। औपचारिकता भरा नही ये नाता, बस प्रेम से इसको निभाना हो आता। उलझे हैं दोनों ही अपने अपने परिवारों में, पर ज़िक्र एक दूजे का मुस्कान है ले आता।। उलझे रिश्तों के ताने बानो को सुलझा कर, अँखियाँ करना चाहें एक दूजे का दीदार। कच्चे धागे,पर पक्का बंधन, दे देना ,भाई बस एक उपहार।। एक उपहार मैं और मांगती हूँ, मत करना भाई इनकार। दिल से निकली अर्ज़ है मेरी, कर लेना इसको स्वीकार।। माँ बाबूजी अब बूढ़े हो चले हैं, निश्चित ही होती होगी तकरार। पर याद कर वो पल पुराने, करना उनमें ईश्वर का दीदार।। उनका तो तुझ पर ही शुरू होकर, तुझ पर ही खत्म होता है संसार। कभी झल्लाएंगे भी,कभी बड़बड़ाएंगे भी, भूल कर इन सब को,उन्हें मन से कर लेना स्वीकार।। और अधिक तेरी बहना को,  कुछ भी नही चाहिए उपहार।। हो सके तो कुछ वो लम्हे दे देना, जब औपचारिकताओं का नही था स्थान। वो अहसास दे देना,जब लड़ने झगड़ने के बाद भी,बेचैनी को लग जाता था विराम।। उन अनुभवों की दे देना भाई सौगात, जब साथ खेलते,पढ़ते, लड़ते,झगड़ते, पर कभी भी न दिख

कोई विशेष बड़ी बात नहीं

कितनी भी हासिल हो जाएं उपलब्धियां

यही चाहती है हर बहना

प्रेम ही आधार है

कर्म ही जीवन है

जब जब होती है हानि धर्म की