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Showing posts from July, 2022

ये चाहते हैं रसखान

क्या चाहते हैं रसखान? लाठी,कम्बल गर मिल जाये मोहन की, तीनों लोकों का त्याग देंगे राज। मिल जाएं जो नंद बाबा की गइयाँ चरावन को, आठ सिद्धियों और नौ निधियों का क्या काज। मिल जाएं जो ब्रज के वन,बगीचे और तड़ाग करोड़ों सोने के महल न्योछावर, करील के कुंजों  देखने के लिए मन रसखान का रहा भाग।।

बैचैनी और सुकून

बेचैनी और सुकून एक दिन बेचैनी ने कहा सुकून से हो शांत से गहरे सागर तुम, थाह तुम्हारी किसी ने न पाई। मैं नदिया के भँवर के जैसी चंचल कोई शांत,सीधी, उलझी सी राह न दी मुझे कभी दिखाई। कहा सुकून ने बेचैनी से, होता है जहाँ मोह,काम,क्रोध और भौतिक सुखों को पाने की तीव्र लालसाएँ। तुम दौड़ी सी आ जाती हो वहाँ पर, ठहराव नही दिखाई देती तुम्हे राहें।। नही ज़रूरी मैं रहूं महलों में, मुझे तो फुटपाथ भी आ जाते हैं रास। पर तुम तो कहीं भी नही टिक पाती, पूरे ब्रह्मांड में तुम्हारा नही है वास।। जिस दिन तुम्हे जीवन की सही सोच समझ मे आएगी। विलय हो जाओगी तुम उस दिन मुझमे, बेचैनी सुकून बन जाएगी।।

जिंदगी खूबसूरत है

एक ही आंगन की दोनो खुशबू

हौले हौले

सावन भादों

सावन बोला भादों से,"इस बार तूं कुछ ज्यादा ही गीला गीला सा लगता है ये मात्र पानी ही नहीं,ये तो सजल नयनों का जैसे दरिया सा बहता है" भादों बोला," किसी के लब बोलते हैं, किसी के नयन बोलते हैं,मेरा चित तो इस बरखा में बरस बरस जैसे सब कुछ कहता है।। सावन भादों भी जान गए हैं, अब तुझ सा अजीज इस धरा पर नहीं रहता है।। **हानि धरा की लाभ गगन का** मेरा दिल तो तेरे जाने से बस यही कहता है।।

नहीं चाहिए मुझे सोना चांदी(( एक बहन की अभिलाषा))

नही चाहिए मुझे सोनाचाँदी,  ना ही है कोई अपने हिस्से की अभिलाषा। रखना ध्यान तुम माँ बाप का भाई, है हर बहन की यही भाई से आशा।। कुछ लेने नही आती हैं पीहर बहने, वो बस बचपन के कुछ पल चुराने आती है,देखना चाहती हैं सुकून और शांति  माँ बाप के मुखमंडल पर,वो तो घर को रोशन कर जाती हैं।। सहेजना चाहती हैं अतीत की वे मधुर  स्मृतियां जब एक ही आंगल तले जिंदगी का परिचय अनुभूतियों से हो रहा था।। अतीत के झोले से वो बचपन के लम्हे चुराने आती हैं जब कोई चित चिंता नहीं होती थी। होती थी गर कोई दुविधा,फिर मां को गोदी होती थी।। लेने आती है वो सहजता जो महफूजता जो बाबुल के साए तले सहज भाव से मिल जाती थी। बाबुल के आगे भाई तेरी कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं हो पाती थी।। वो मां पिता के चेहरे पर एक सुकून एक शांति देखने आती हैं। उनकी जरूरतों की MRI वो बड़ी आसानी से कर लेती हैं,तेरा थोड़ा समय और दो मीठे बोल ही तो उन्हें चाहिए।वो सदा नहीं रहने वाले, वे मुख से नहीं बोलते पर उनके नयन उनके साफ दिलों के प्रतिबिंब हैं।। ,,,,,,,,,हर बहिन की अभिलाषा

हरियाली तीज (( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मेंहदी,झूला,गीत,चूड़ियां, महिलाओं के सोलह श्रृंगार। आस्था,प्रेम और सौंदर्य का  हरियाली तीज, पावन त्यौहार।। भगवान शिव, मां पार्वती के पुनर्मिलन की याद में,  बनता है ये पावन त्योहार।। विवाहित नारियां पति की  दीर्घआयु के लिए करती हैं व्रत और सोलह श्रृंगार। मनोवांछित वर की प्राप्ति  के लिए व्रत करती हैं कन्याएं मान्यतानुसार।। मेंहदी,झूला,गीत,चूड़ियां, महिलाओं के सोलह श्रृंगार।। आस्था,प्रेम और सौंदर्य का हरियाली तीज पावन त्योहार।। व्रत रख महिलाएं करती हैं  शिव पार्वती पूजा षोडशोपचार।। पहन धानी लहरिया और चुनरिया, लोक गीतों से समा कर देती हैं गुलजार।।  झूले पड़ते हैं सावन के इस दिन झूल झूल महिलाएं करती हैं खुशियों के दीदार।। तन आह्लादित,चित प्रफुल्लित, हो जाता प्रेम भरा संसार। जर्रा जर्रा बूटा बूटा प्रकृति का हो जाता उज्जवल सा और गुलजार।। अनेक जगह पर लगते हैं मेले  संग जोश,आस्था,उत्सव,उल्लास। मां पार्वती की निकलती है सवारी बड़ी धूम धाम से,चित में जैसे उमंगों का वास। पूजा दौरान कथा सुनना है अति जरूरी,मंगल कामना की होती है आस।। मां पार्वती द्वारा भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए

पल,पहर,दिन,महीने

पल,पहर,दिन,महीने साल बीत कर,एक दिन ये आ ही जाता है। कार्यक्षेत्र में कार्यकाल हो जाता है पूरा,समय अपना डंका बखूबी बजाता है।। हौले हौले अनेक अनुभव अपनी आगोश में समेटे,बरस 60 का इंसा हो जाता है, हो सेवा निवर्त कार्यक्षेत्र से,कदम अगली डगर पर वो फिर बढ़ाता है।। पल,पहर,दिन,महीने-------------आ ही जाता है।। ज़िन्दगी की आपाधापी में कई बार कोई शौक धरा रह जाता है, जीवनपथ हो जाता है अग्निपथ,ज़िम्मेदारियों में खुद को फंसा हुआ इंसा पाता है।। पर अब आयी है वो बेला, जब साथी हमारा खुशी से कार्यमुक्त हो कर अपने घर को जाता है, शेष बचे जीवन में, उत्तरदायित्व बेधड़क सहज भाव से निभाता है। पल,पहर,दिन,महीने,साल-------आ ही जाता है।। ज़िन्दगी का स्वर्णकाल माना हम कार्यक्षेत्र में बिता देते हैं, पर शेष बचा जीवन होता है हीरक काल,यह क्यों समझ नही लेते हैं।। सेवानिवर्त होने का तातपर्य कभी नही होता, क्रियाकलापों पर पूर्णविराम, किसी अभिनव पहल, या दबे शौक को बाहर आने का मिल सकता है काम।। यादों के झरोखों से जब झांकोगे,तो जाने कितने अनुभव अहसासों को पा जाओगे, कितनो को ही न जाने मिली ही न होगी अभिव्यक्ति, उन्हें इस दायरे में

मां बन कर

सुविचार,,,,,माँ बन कर माँ मैंने है जाना,कितना मुश्किल होता है दिल के अहसास छुपाना,क्या,कब,कैसे,किन हालातों में तूने हम सब के लिए कितना कुछ कर डाला,सोच सिरहन सी उठती है दिल में,किन जतनो से तूने हमे होगा पाला,ममता की कावड़ में तूने माँ  प्रेमजल से हमे तृप्त कर डाला,कर्म की सड़क पर मेहनत के पुल को तूने कितने संघर्षो की रेत से निर्मित किया होगा,ये माँ बन कर माँ मैंने है जाना,कितने अहसासों को तूने न दी होगी अभिव्यक्ति,ये माँ बन कर माँ मैंने है जाना

मां बन कर

सुविचार,,,,,माँ बन कर माँ मैंने है जाना,कितना मुश्किल होता है दिल के अहसास छुपाना,क्या,कब,कैसे,किन हालातों में तूने हम सब के लिए कितना कुछ कर डाला,सोच सिरहन सी उठती है दिल में,किन जतनो से तूने हमे होगा पाला,ममता की कावड़ में तूने माँ  प्रेमजल से हमे तृप्त कर डाला,कर्म की सड़क पर मेहनत के पुल को तूने कितने संघर्षो की रेत से निर्मित किया होगा,ये माँ बन कर माँ मैंने है जाना,कितने अहसासों को तूने न दी होगी अभिव्यक्ति,ये माँ बन कर माँ मैंने है जाना

एक दिन ये आ ही जाता है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

पल,पहर,दिन,महीने साल बीत कर,एक दिन ये आ ही जाता है। कार्यक्षेत्र में कार्यकाल हो जाता है पूरा,समय अपना डंका बखूबी बजाता है।। हौले हौले अनेक अनुभव अपनी आगोश में समेटे,बरस 58 का इंसा हो जाता है, हो सेवा निवर्त कार्यक्षेत्र से,कदम अगली डगर पर वो फिर बढ़ाता है।। पल,पहर,दिन,महीने-------------आ ही जाता है।। ज़िन्दगी की आपाधापी में कई बार कोई शौक धरा रह जाता है, जीवनपथ हो जाता है अग्निपथ,ज़िम्मेदारियों में खुद को फंसा हुआ इंसा पाता है।। पर अब आयी है वो बेला, जब भाई हमारा खुशी से कार्यमुक्त हो कर अपने घर को जाता है, शेष बचे जीवन में, उत्तरदायित्व बेधड़क सहज भाव से निभाता है। पल,पहर,दिन,महीने,साल-------आ ही जाता है।। ज़िन्दगी का स्वर्णकाल माना हम कार्यक्षेत्र में बिता देते हैं, पर शेष बचा जीवन होता है हीरक काल,यह क्यों समझ नही लेते हैं।। सेवा निवृत होने का तातपर्य कभी नही होता, क्रियाकलापों पर पूर्णविराम। किसी अभिनव पहल, या दबे शौक को बाहर आने का मिल सकता है काम।। यादों के झरोखों से जब झांकोगे,तो जाने कितने अनुभव अहसासों को पा जाओगे, कितनो को ही न जाने मिली ही न होगी अभिव्यक्ति, उन्हें इ

हौले हौले(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

हौले हौले शनै शनै  दिन ये एक दिन आ ही जाता है। कार्यक्षेत्र से हो निवृत इंसा, लौट फिर घर को आता है।। ज्वाइनिंग से रिटायरमेंट तक, इंसा पल पल बदलता जाता है।। जाने कितने ही अनुभव तिलक जिंदगी के भाल पर लगाता है।। कभी खट्टे कभी मीठे अनुभव, हर एहसास से गुजरता जाता है। हर घडी रूप बदलती है जिंदगी, संग संग व्यक्ति भी बदलता जाता है।।  जीवन की इस आपाधापी में पता ही नहीं चलता, कब आ जाता है समय रिटायरमेंट का, व्यक्ति यंत्रवत सा चलते जाता है। जिम्मेदारियों के चक्रव्यूह में घुस तो जाता है अभिमन्यु सा, पर बाहर निकलना नहीं उसको आता है। **शो मस्ट गो ऑन** इसी भाव से आगे बढ़ता जाता है।। शादी,बच्चे,परवरिश बच्चों की,मात पिता की जिम्मेदारी सब सहज भाव से निभाता है।। इसी दौर ए कश्मकश में, सफर जिंदगी का चलता जाता है।। हौले हौले शनै शनै  दिन ये एक दिन आ ही जाता है।। **आज घर की ओर चला घर का बागबान** अब ना वक्त की होगी कोई पाबंदी, समय का हो जाएगा धनवान।। महफिल यारों की,बाजी ताशो की, पुरानी फिल्मों से जिजीविषा का करना आह्वान।। प्रकृति की हरियाली को निहारना, लगेगा जीवन जैसे वरदान।। दिल ढूंढेगा फिर वही फुर्सत के रात

चलो मन

चलो मन वृन्दावन की ओर प्रेम का रस जहाँ छलके है माँ की ममता जहाँ महके है। चिड़ियों से आंगन चहके है। सदभाव जहाँ डाले है डेरा न कुछ तेरा,न कुछ मेरा आती समझ जिसको जहाँ ये ऐसे घाट की ओर। जहाँ जात पात का भेद नही है मज़हब की जहाँ हो न लड़ाई ऐसी वसुंधरा क्यों न बनाई हो जाये मनवा विभोर।

भेज रहा हूं स्नेह निमंत्रण(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

भेज रहा हूं स्नेह निमंत्रण, तूं बिन दस्तक के आ जाना। मां बाबुल नहीं तो क्या, मैं तो हूं ना!  दुविधा कोई ना मन में लाना।। मां जाई से गहरा नाता और भला क्या होता होगा???? ये नाता तो जीवन का  सबसे मधुर तराना।। नए रिश्तों के नए भंवर में  माना हम उलझ से जाते हैं। पर पुराने नातों को जड़ों सा गहरा, अंतर्मन के गलियारों में पाते हैं।। इन जड़ों को स्नेह रस से सींचने  मेरी मां जाई तूं आ जाना। भेज रहा हूं स्नेह निमंत्रण तूं बिन दस्तक के आ जाना।। मां बाबुल नहीं तो क्या, *मैं तो हूं ना* देख कोई दुविधा ना कभी मन में लाना।। मां थी जब तूं इतनी दूर से भी  कैसे भाग भाग कर आती थी। दो दो बच्चों की मां हो कर भी, तूं मां संग फिर बच्ची सी हो जाती थी। तेरे आने से मां भी कैसे बरस सोलह की हो जाती थी। उसके चेहरे की रौनक उसकी आंतरिक खुशी दिखाती थी। कैसे मन से उपहारों का  वो ढेर तेरे सामने लगाती थी। हौले से तेरा हाथ थाम कर, तुझे भीतर ले जाती थी। ऐसा निश्चल पावन प्रेम देख  मेरी आंखें नम हो जाती थी।। **ना मां थकती थी ना तूं थकती थी** तुम दोनो घंटों घंटों बतियाती थी।। उन बातों की यादें सहेजने ही, फि

आधी जागी

आधी जागी, आधी सोई थकी दोपहरी जैसी माँ। कुछ न कुछ हर पल वो करती सब कुछ करने जैसी माँ। ममता के मटके को  ममता के मनको से हर पल भरती जैसी माँ। चिमटा,बर्तन,झाड़ू,लत्ते धोती, कभी नही थी थकती माँ।

कितना गहरा कितना प्यारा

कितना गहरा कितना प्यारा होता है यह नाता। मां से सुंदर कुछ भी तो नहीं,किसी को जल्दी किसी को देर से समझ में है आता।।।

प्रेम सहजता भरोसा विश्वास

प्रेम,सहजता,भरोसा और विश्वास यही बनाती हैं जीवन को ख़ास इन सब से ओत प्रोत हो गर जीवनसाथी हर दिन उत्सव है बिन प्रयास किसी ख़ास दिन का मोहताज नही होता जश्न फिर पल पल जश्न का होता है आगाज़ माँ बाप और जीवनसाथी सजता है इनसे जीवन का साज रहे सदा सजा ये साज प्रीतम बस आती है दिल से यही आवाज़

खास

हर उत्सव फिर बन जाता है खास जब अपनो की दौलत हो अपने पास।। एक ही आंगन की खुशबू होती हैं बुआ भतीजी,एक से ही पीहर के लिए उनके अहसास। एक ही चमन की होती हैं दोनो डाली, दोनो ही होती है खास।।

संसार को

इस संसार को इतना नुकसान बुरे लोगों से नही हुआ जितनी नुकसान अच्छे लोगों  की चुप्पी के कारण हुआ है,द्रौपदी चीर हरण के समय कर्ण,पितामह भीष्म,द्रोण जैसे लोग चुप न रह कर गलत के खिलाफ आवाज़ उठाते तो इतिहास कलंकित न हुआ होता।

नहीं होता प्रेम कभी शर्तों पर

नहीं होता प्रेम कभी शर्तों पर, प्रेम तो दिल से होता है।।

शोक नहीं

शोक नही,संताप नहीं माँ हम प्रेम से शीश झुकाएंगे हमने पाया ऐसी माँ को बड़े गर्व से बताएंगे। युग आएंगे युग जाएंगे होते हैं जो तुमसे इंसा उनको लोग भुला नही पाएंगे।

हर ताले की मां चाभी

माँ रुकती नही थी माँ थकती नही थी कर्म की कड़ाई में सफलता के तेल से ममता की बना देती थी ऐसी भाजी जो भी खाता दंग रह जाता हर ताले की माँ थी चाबी।। जीना आता था उसे भरपूर जीवन माँ ने जीया पूरी किताब भी पड़ जाए छोटी माँ है सतत जलते रहने वाला दीया।। उस दीये की  रोशनी से माँ सब रोशन कर देती थी। वो कहीं गयी नहीं हम सब के भीतर  बड़े प्रेम से आज भी विराजे। माँ ईश्वर का ही पर्याय होती है दूजा माँ से ही घर आंगन हर द्वार है चहके।। जाने कितने झगड़ों पर माँ ने समझौते का तिलक लगाया होगा। जाने कितने रिश्तों के तारों की उड़दन को ममता का पैबन्द लगाया होगा।। कुछ नही कहती थी चुप ही रहती थी मेरी मां, मेरी माँ।।

हर ताले की मां चाभी

माँ रुकती नही थी माँ थकती नही थी कर्म की कड़ाई में सफलता के तेल से ममता की बना देती थी ऐसी भाजी जो भी खाता दंग रह जाता हर ताले की माँ थी चाबी।। जीना आता था उसे भरपूर जीवन माँ ने जीया पूरी किताब भी पड़ जाए छोटी माँ है सतत जलते रहने वाला दीया।। उस दीये की  रोशनी से माँ सब रोशन कर देती थी। वो कहीं गयी नहीं हम सब के भीतर  बड़े प्रेम से आज भी विराजे। माँ ईश्वर का ही पर्याय होती है दूजा माँ से ही घर आंगन हर द्वार है चहके।। जाने कितने झगड़ों पर माँ ने समझौते का तिलक लगाया होगा। जाने कितने रिश्तों के तारों की उड़दन को ममता का पैबन्द लगाया होगा।। कुछ नही कहती थी चुप ही रहती थी मेरी मां, मेरी माँ।।

ना वो रुकती थी

**माँ रुकती नही थी माँ थकती नही थी** कर्म की कड़ाई में, सफलता के तेल से, ममता की बना देती थी ऐसी भाजी जो भी खाता दंग रह जाता हर ताले की माँ थी चाबी।। जीना आता था उसे, भरपूर जीवन माँ ने जीया। पूरी किताब भी पड़ जाए छोटी, माँ है सतत जलते रहने वाला दीया।। उस दीये की  रोशनी से, माँ सब रोशन कर देती थी। वो कहीं गयी नहीं हम सब के भीतर  बड़े प्रेम से आज भी रहती है, वो सबको प्रेम ही प्रेम बस देती थी।। माँ ईश्वर का ही पर्याय होती है दूजा माँ से ही घर आंगन हर द्वार है चहके।। फूल नहीं मां तो मधुबन है जीवन का, जो कण कण में है महके।। जाने कितने झगड़ों पर माँ ने समझौते का तिलक लगाया होगा। जाने कितने रिश्तों के तारों की उड़दन को ममता का पैबन्द लगाया होगा।। कुछ नही कहती थी चुप ही रहती थी मेरी मां, मेरी माँ।।

दे साथ लेखनी

दे साथ लेखनी,कुछ लिखेंगे ऐसा जो करेगा जननी को श्रद्धांजलि का काम। एक बिना ही जग लगता है सूना माँ है ईश्वर का ही दूसरा नाम।। वो कितनी अच्छी थी, वो कितनी प्यारी थी, वो हंसती थी वो हंसाती थी कभी शिकन  अपने चेहरे पर भूल से भी न लाती थी। बहुत परेशान होती थी जब तब बस माँ चुप हो जाती थी। न गिला,न शिकवा,न शिकायत कोई ऐसी माँ को शत शत हो परनाम। दे साथ लेखनी,कुछ लिखेंगे ऐसा करेगा जो जननी को श्रद्धांजलि का काम। भोर देखी ,न दिन देखा न रात देखी,न देखी शाम। घड़ी की सुइयों जैसी चलती रही सतत वो फिर एक दिन ज़िन्दगी को लग गया विराम। वो आज भी हर अहसास में जिंदा है बाद महसूस करने की नज़र चाहिए। है जीवन माँ का एक प्रेरणा बस प्रेरित हिने की फितरत चाहिए।। रोम रोम माँ ऋणि है तेरा ज़र्रा ज़र्रा करता है तुझे सलाम।।

दे साथ लेखनी

दे साथ लेखनी,कुछ लिखेंगे ऐसा जो करेगा जननी को श्रद्धांजलि का काम। एक बिना ही जग लगता है सूना माँ है ईश्वर का ही दूसरा नाम।। वो कितनी अच्छी थी, वो कितनी प्यारी थी, वो हंसती थी वो हंसाती थी कभी शिकन  अपने चेहरे पर भूल से भी न लाती थी। बहुत परेशान होती थी जब तब बस माँ चुप हो जाती थी। न गिला,न शिकवा,न शिकायत कोई ऐसी माँ को शत शत हो परनाम। दे साथ लेखनी,कुछ लिखेंगे ऐसा करेगा जो जननी को श्रद्धांजलि का काम। भोर देखी ,न दिन देखा न रात देखी,न देखी शाम। घड़ी की सुइयों जैसी चलती रही सतत वो फिर एक दिन ज़िन्दगी को लग गया विराम। वो आज भी हर अहसास में जिंदा है बाद महसूस करने की नज़र चाहिए। है जीवन माँ का एक प्रेरणा बस प्रेरित हिने की फितरत चाहिए।। रोम रोम माँ ऋणि है तेरा ज़र्रा ज़र्रा करता है तुझे सलाम।।

मां एक ऐसी किताब है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

माँ एक ऐसी किताब है, जिसका हर पन्ना आसानी से समझ आ जाता है। माँ ऐसी कविता है, जो सब गा सकते हैं। माँ ऐसी कहानी है, जो सबकी जिंदगानी है।। मां एक ऐसा उपन्यास है, जो रोचक ,ममतापूर्ण और भाव प्रधान है।। माँ एक ऐसा पाठ है, जो ज़िन्दगी की  पाठशाला में सबसे पहले पढते है और ताउम्र चलता है। माँ ऐसा साहित्य है, जिसके आदित्य की रोशनी से सारा जग नहाया है। जिसे पूरा संसार पढ़ता है जो हर युग,हर काल मे प्रासंगिक है। यह साहित्य समयातीत है। मां से सुंदर कुछ भी तो नहीं।।

कितना मधुर

सच में मैं हो गई धनवान

मन आह्लादित,तन प्रफुल्लित यही खुशी की है पहचान। एक नहीं अब हैं दो बेटे सच में मैं हो गई धनवान।।

शोक नहीं,संताप नहीं

माँ तुझे सलाम क्या भूलें,क्या याद करें माँ तेरे काम। जाने कैसे बनाया होगा तुझ को न देखा होगा दिन,न देखी होगी शाम। तुझे बना कर खुद पर बहुत इतराया होगा भगवान। फिर कोई प्राणी नही बना पाया तुझ जैसा,अपनी ही रचना पर हो  गया होगा हैरान। माँ तुझे सलाम जननी,जन्मभूमि स्वर्ग से भी बेहतर है सुना था,पढ़ा था पर तुझ से जब मुलाकात हुई कथन को सच का मिल गया अंजाम। युग आएंगे,युग जाएंगे आने वाली हर पीढ़ी को किस्से तेरे सुनाएंगे। तू ऊपर से सुनना माँ हम बार बार दोहराएंगे। माँ तुझे सलाम। हर शब्द पड़ जाता है छोटा जब करने लगती हूँ तेरा बखान। कर जोड़ हम सब देते हैं माँ श्रद्धांजलि तुझको शत शत करते है परनाम। माँ तुझे सलाम। माँ देख ये तीज फिर से आई है। नश्वर तन तेरा ले गयी ये पिछले बरस पर यादों के झरोखों को कभी नही लगा सकेगी विराम।। शोक नही,संताप नही हम गर्व से माँ तुझ को  सदा यूँ ही करते रहेंगे याद। सोचना भी सम्भव नही था कभी कैसा लगेगा माँ के जाने के बाद।। हर अहसास में माँ तू ज़िंदा है। सोच में तू,विचार में तू,आचार में तू व्यवहार में तू फिर कैसे हम तुम जुदा हुए। ज़र्रा ज़र्रा कर रहा माँ तुझ को सलाम।

मां तुझे सलाम

माँ तुझे सलाम क्या भूलें,क्या याद करें माँ तेरे काम। जाने कैसे बनाया होगा तुझ को न देखा होगा दिन,न देखी होगी शाम। तुझे बना कर खुद पर बहुत इतराया होगा भगवान। फिर कोई प्राणी नही बना पाया तुझ जैसा,अपनी ही रचना पर हो  गया होगा हैरान। माँ तुझे सलाम जननी,जन्मभूमि स्वर्ग से भी बेहतर है सुना था,पढ़ा था पर तुझ से जब मुलाकात हुई कथन को सच का मिल गया अंजाम। युग आएंगे,युग जाएंगे आने वाली हर पीढ़ी को किस्से तेरे सुनाएंगे। तू ऊपर से सुनना माँ हम बार बार दोहराएंगे। माँ तुझे सलाम। हर शब्द पड़ जाता है छोटा जब करने लगती हूँ तेरा बखान। कर जोड़ हम सब देते हैं माँ श्रद्धांजलि तुझको शत शत करते है परनाम। माँ तुझे सलाम। माँ देख ये तीज फिर से आई है। नश्वर तन तेरा ले गयी ये पिछले बरस पर यादों के झरोखों को कभी नही लगा सकेगी विराम।। शोक नही,संताप नही हम गर्व से माँ तुझ को  सदा यूँ ही करते रहेंगे याद। सोचना भी सम्भव नही था कभी कैसा लगेगा माँ के जाने के बाद।। हर अहसास में माँ तू ज़िंदा है। सोच में तू,विचार में तू,आचार में तू व्यवहार में तू फिर कैसे हम तुम जुदा हुए। ज़र्रा ज़र्रा कर रहा माँ तुझ को सलाम।

**ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार**(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

ये लिटिल स्टार कब बड़ा हो गया पता ही नहीं चला, ये तो शरद पूर्णिमा का full moon बनने को तैयार।। जिंदगी के सफर में मिला जो शिवांग सा हमसफर,अब जिंदगी होगी गुलजार।। सौ बात की एक बात है,प्रेम ही इस रिश्ते का आधार।। महके मन का कोना कोना,रहे सदा दोनो में प्यार।।। यही दुआ देता है आपको, कपूर और रोहिल्ला परिवार।। रहो देस में या परदेस में,जुड़े रहें बस दिल के तार।। Twinkle twinkle little star

सौ बात की एक बात है

सौ बात की एक बात है

बेशक वो करता नहीं इजहार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

बेशक वो करता नहीं इजहार पिता को भी मां सा ही होता है बच्चों से प्यार।। जब से जिंदगी का परिचय हो रहा होता है अनुभूतियों से,तब से पिता का अक्स नयनों में रहता है। हमे हमसे आगे बढ़ते देखना चाहता है वो,बेशक लबों से कुछ नहीं कहता है।। पिता बन कर समझ आता है पिता हमारे लिए हर तूफान कैसे हंसते हंसते सहता है। बहुत कुछ तो बताता भी नहीं, बस दरिया सा सतत पिता बहता है।। सागर सा गहरा होता है पिता, होता है बरगद की शीतल छाया। महफूज और पूर्ण सी होती है जिंदगी जब तक सिर पर रहता है पिता का साया।। मां पर तो चली हैं लाखों लेखनियां, पर पिता पर आकर अक्सर खामोश सी हो जाती हैं। जबकि मां भी पिता बिन शक्तिहीन सी है,ये बात क्यों सबको समझ नहीं आती है????? बच्चों के शौक की खातिर पिता अपनी जरूरतें भी हंसते हंसते कर देता है कुर्बान। औलाद का भी बनता है फर्ज, उसकी मेहनत और मशक्कत को ले पहचान।। पिता पुत्र हों मित्र से,खुल कर संवादों की बहे धारा पिता पुत्र का,पुत्र पिता का हर मोड़ पर बने सहारा खुद मझधार में हो कर भी साहिल का पता बताता है पिता, ये पिता बच्चों का नाता है कितना प्यारा।। सूरज सा गर्म बेशक होता है पिता, पर एक

like mother(( thought by Sneh premchand)

There is no other,like a mother Whether sister or brother. For the questions of life, She is the most suitable answer.. For harsh moments of life, She is the only best smoother. To fulfill our unlimited desires, She becomes Helicopter. She is not only our mother, She is our first teacher. When things are scattered in life, Mother is the best manager. She only cries,when she is in anger. She never curses,always there is blessings  shower. She  is never slow,always she is faster For our betterment,her wits are always sharper. For the destiny of child,she is the best writer. When we forget our ways,she is the best reminder. In our life,she is remarkable highlighter. It is very true,no doubt, There is no other,like a mother, Whether sister or brother. .

उठ लेखनी

उठ लेखनी आज कुछ नए काम को देंगे अंजाम। जननी के बारे में कुछ लिख करजग देंगे आवाम। वो रुकती नही,वो थकती नही,चलते रहना उसका काम। न गिला,न शिकवा,न शिकायत कोई,न देखती भोर,न देखती शाम।। किस माटी से ऊपरवाले ने कर दिया होगा माँ का निर्माण। बहुत ही अच्छे मूढ़ में हीग शायद उसदिन भी भगवान। हम भला करें,हम बुरा करें,कभी नही देती इस बात पर ध्यान। बस हमारा बुरा कभी न होने पाए,इस कोशिश में लगा देती है दिलो जान। एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा  हुआ है पूरा जहान। न कोई था,न कोई है,माँ से बढ़ कर बड़ा महान।। सच मे एक माँ ही तो होती है गुणों की खान। माँ से घर है,माँ से जहाँ है,माँ से ही घर बनता है मकान।। उठ लेखनी आज कुछ ऐसे काम को देंगे अंजाम। जननी स्वर्ग से भी बढ़ कर है,हो सबको इस सत्य की पहचान।।

मैंने पूछा

मैंने पूछा भगवान से ,कहाँ है स्वर्ग तो वो मुस्कुरा कर चल दिये। थामा फिर हौले से हाथ मेरा और माँ के पास जा कर रुक गए।।

यही चाहता है प्रेम

एक कमरा उसका भी हो(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

एक कमरा उसका भी हो, है वो भी इसी अंगना की कली प्यारी। यहीं फला फूला था बचपन उसका, अब कैसे मान लिया उसे न्यारी।। नए रिश्तों के नए भंवर में उसके जीवन के  अध्याय बदल जाते हैं। बहुत कुछ छिपा दिल के भीतर, लब उसके  बेशक  मुस्कुराते है।। हर गम हर खुशी में होती है फिर भी पूरी उसकी भागेदारी। बीता समय तो कैसे मान लिया उसे न्यारी।। अम्मा बाबुल के सपनो ने जब ली प्रेमभरी अँगड़ाई थी। तब ही तो लाडो बिटिया इस दुनिया मे आयी थी।। एक ही चमन के कली पुष्प तो, होते हैं सगे बहन भाई। फिर सब कुछ बेटों को सौंप मात पिता ने, क्यों अपनी लाडो कर दी पराई???  हाथ पीले कर उसके, मानो अपनी ज़िम्मेदारी निभाई।। मिले न गर ससुराल भला उसे, हो जाएगी न वो दुखियारी। एक कमरा तो उसका भी बनता है, है मात पिता की वो हितकारी।। कभी न भूले कोई कभी भी, थी वो भी इसी अंगना की कली प्यारी। इतना हक तो उसका भी बनता है, अधिक नहीं तो एक कमरे की हो साझेदारी।। विदाई के साथ लाडो के, क्यों विदा हो जाते हैं सारे अधिकार जब वो सोने नहीं देती जिम्मेदारी फिर जागृत क्यों नहीं रहते अधिकार??? उसे कभी पराया मत कहना, दूर रह कर भी वो करती है प्यार।।

बांवरा मन(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 मन पलक  झपकते ही जाने कहाँ कहाँ चला जाए, मन की गति पवन की गति से भी तेज है,बैरी मनवा इसे समझ न पाए।। सोचा जो भी मन ने,कर्म में बदला, कर्म परिणाम में हुए तबदील, मन को शिक्षित ही नही संस्कारित करना भी है ज़रूरी,संस्कार ही होता मन का वकील।। निषेध के प्रति सदा आकर्षित होता है मन, चाहता है करना सदा मनचाही, मन जब नही सुनता दिमाग की,आ जाती है बड़ी  तबाही।। मन के हारे हार है,मन के जीते जीत आज की नही,युगों युगों से  है ये चलती आयी रीत।। पुरानी यादों के भंवर में अक्सर, बांवरा मन खो जाता है, होता है जो परमप्रिय हमे, वो अक्सर याद आ जाता है।। संवेदना और संस्कार का टीका, मन के मस्तक पर लगाना है बहुत ज़रूरी, बहुधा दबानी पड़ती है इच्छाएँ मन की, वरना रिश्तों में आ जाती है दूरी।। बांवरा मन अक्सर सच का ही देता है साथ, मन की न सुन कर बन जाता है बनावटी सा  इंसा,मन को अक्सर थामना पड़ता है विवेक का हाथ।। सब को पता है, सब समझते हैं,फिर भी भूलभुलैया में मन उलझ उलझ सा जाए, समस्या का जब नही मिलता समाधान, अश्रु नयनों से नीर बहाए।।          स्नेहप्रेमचंद

काश समय रुक जाता