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समझो दीवाली आ गई((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जब महलों संग झोंपड़ी में भी हों उजियारे,समझो दीवाली आ गई। जब शौक न सही मगर ज़रूरतें सबकी होने लगें पूरी, समझो दीवाली आ गई।। जब हृदय में करुणा का अंकुर प्रस्फुटित होने लगे, समझो दीवाली आ गई।। जब समझ जाएंगे हम  पटाखे न जला कर प्रदूषण होता है कम,उन्हीं पैसों से किसी अभावग्रस्त की, कर जरूरतें पूरी गर मन को मिलेगी शांति,समझो दीवाली आ गई।। *जब प्रेम मोह पर भारी पड़ने लगे, *जब अहम से वयम की ओर चले, *जब स्वार्थ से परमार्थ की राह चले, *जब सबल निर्बल का हाथ थाम ले, *जब शिक्षाभाल पर संस्कार तिलक लग जाए, *जब स्व से सर्वे का शंखनाद बजने लगे, *जब किसी भी आयोजन का प्रयोजन   स्वांत सुखाय न होकर परहित के लिए हो, *जब जगकल्यान और जनकल्याण की भावना सर्वोपरि हो, *जब आत्ममंथन,आत्मसुधार की राह चले, *जब समझ आने लगे कि प्रेम बिन सम्मान नहीं होता, *जब मात पिता इस धरा पर भगवान समान नजर आने लगे, *जब पीर पराई समझ आने लगे, *जब अहिंसा परमो धर्म हमारा  मन को भाने लगे, *जब कला मकसद की चौखट खटखटाने लगे, *जब बच्चे कांपते हाथ और लड़खड़ाते कदमों का सहारा बनने लगे, *जब राग,ईर्ष्या,द्वेष,अहंकार का शम