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किराए की साइकिल(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

आज भी याद आती है मुझे  वह ,*किराए की साइकिल*   किशन की दुकान से 1 घंटे के लिए बड़े चाव से लाना  वह **किराए की साइकिल ** भरी दोपहर में पूरा एक घंटा बड़ी मशक्कत से चलाना वह **किराए की साइकिल ** भारी मन से वापस दे कर आना वह **किराए की साइकिल ** मां से जिद करना दे दो किराया मां लानी है मुझे वह **किराए की साइकिल ** हसरतें बाज़ औकात हैसियत पर भारी पड़ जाती हैं,जो खुशी किराए की साइकिल में मिल जाती थी आज बड़ी-बड़ी गाड़ियां होने पर भी वह खुशी मयस्सर नहीं होती, सब समय समय की बात है।।

ज़रूरी तो नहीं

कितनी भी तरक्की करले विज्ञान

आए ऐसा शांता क्लोज़

न्यारे by snehpremchand

मयस्सर हों सदा खुशियाँ ज़मीदोज़ हो जाएं गम सारे। यही दुआ मांगते हैं मात पिता जग में, सच मे ही रच दिए न्यारे।।             स्नेहप्रेमचन्द