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Showing posts from 2024

साहित्य का आदित्य हिंदी

सहज पथ(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मा से प्यारा नहीं कोई भी नाता(( विचार स्नेह प्रेमचंद चित्र ऐना द्वारा()

मां से प्यारा  नहीं कोई भी नाता मेरी समझ को तो  इतना समझ में आता जाने किस माटी से  मां को बनाता होगा विधाता स्नेह सागर हर मां चित में सागर सा पल पल गहराता  घर के गीले चूल्हे में  ईंधन सी जलती रहती मां दिल में धड़कन  सुर में सरगम सी होती है मां हम से हमारा ही परिचय करवाती मां अपने अथक प्रयासों से लबों पर मुस्कान लाती मां भूख लगे तो तत्क्षण ही रोटी बन जाती प्यारी मां घने तमस में उजियारा मां भीड़ में बनती सहारा मां मन की हर पीड़ा छुपाती पर ऊपर से सदा मुस्काती मां हमें हमारी खूबियों खामियों दोनों से अवगत करवाती मां ख्वाब हमारे बने हकीकत संकल्प को सिद्धि से मिलवाती मां हमारी हर उपलब्धि पर दिल से जश्न बनाती मां चित की बंजर भूमि को पल पल उपजाऊ बनाती मां चित चिंता ना हो बच्चों को कोई, हर समस्या का समाधान बन जाती मां अपने अस्तित्व में हमारे वजूद को समाहित करती जाती मां हर मैल को धो देती है अच्छे से, बारिश सी होती है मां हर धूप छांव में साया सी सच्चा साथ निभाती मां 11स्वर और 33 व्यंजन के  बस की बात नहीं जो चित्रण कर पाएं मां का मां बिन पूर्ण से लगते कभी दिन रात नहीं हर करवट की सिलवट

मां से प्यारा कोई नाता नहीं

सच में दौर बदल जाते हैं(( विचार स्नेह प्रेम चंद द्वारा))

*सच में दौर बदल जाते हैं कल तक जो आंगन था हमारा वहीं मेहमान से बन जाते हैं* *जहां लड़  जाते थे छोटी सी बात पर अब बड़ी बड़ी बातों पर भी चुप्पी साधे जाते हैं* पहले मैं पहले मैं कहने वाले पहले आप पहले आप के शब्द दोहराते हैं शब्द रहें अपनी मर्यादा में, गरिमा नातों की बनाते हैं सच में दौर बदल जाते हैं कुछ भी कहने वाले भाई बहन सरहद के दायरे में सिमट जाते हैं सच में दौर बदल जाते हैं समय संग दबंग से मात पिता बेबस,थके से नजर आते हैं लड़खड़ाने लगते हैं उनके कदम, खोजी नज़रों से सहारा खोजे जाते हैं *संवेदनाएं सो सी जाती हैं* द्वार उनके अक्सर वे खटखटाते हैं कल तक थे जो जीवन में प्राथमिक जिंदगी के रंगमंच पर, नेपथ्य के पीछे हौले से चले जाते हैं सच में दौर बदल जाते हैं अतीत के दस्तावेज होते हैं ये चित्र पुराने, धूमिल यादों को स्मृति पटल पर ले आते हैं याद आ जाते हैं गुज़रे ज़माने, अतीत के झोले से जब वर्तमान में कुछ पल चुरा कर लाते है  सबसे सुंदर प्यारे पल लगते हैं वे, जिन में मात पिता के अक्स नजर आते है  सच में दौर बदल जाते हैं

पक्षपात के दोहरे आयाम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

हर वह सहर सुंदर हो जाती है

FRIENDS R ALWAYS

जिंदगी हर मोड़ पर

जिंदगी एक सफर ही तो है

कुछ लम्हे इतने प्यारे बन जाते हैं

हौले हौले

सांझ सिंदूरी

जब सांझ घणी गहराती है

कह सकें हम जिनसे बात दिल की

राम चरित्र

त्रिभुवन में देख लेना चाहे

रघुपति राघव राजा राम

कितने सरल सीधे ये बेजुबान

मां से प्यारा नहीं कोई नाता

आसान नहीं था राम होना

कितने सरल,सीधे हैं ये बेजुबान

कह सकें हम जिनसे बात दिल की

जब सब पीछे हट जाते हैं(( विचार स्नेह प्रेमचंद माता चित्र ऐना द्वारा))

कभी हकीकत

कभी हकीकत कभी ये सपना सच मे ही नही रहा कोई अपना ज़िन्दगी का अनुभूतियों से परिचय करने वाली मैं हूँ न के मधुर सम्बोधन से गोद मे सुलाने वाली भोर की मीठी हलचल माँ दोपहर की सुकूनभरी सी निंदिया माँ साँझ की मुलाकातों की मीठी दास्तान सी माँ रात को शीतल चाँद सी अपनी आगोश में हर चिंता को समाने वाली माँ माँ के बिन जीना तो पडता है पर हर मोड़ पर यादों के झरोखों से झांकने लगती है माँ कभी हकीकत,कभी सपना सी लगती है माँ

गांधी जी की पाती विश्व के नाम

गांधी जी की पाती विश्व के नाम ==================== सुनो सुनो एक पाती आई है  गांधी जी की विश्व के नाम बड़ी सारगर्भित है यह पाती दे रही हमें बड़ा अदभुत सा ज्ञान करिश्माई व्यक्तित्व के स्वामी गांधी जी,  सरल,सीधा उनकी सोच का विज्ञान हर संकल्प को सिद्धि से मिलाने का, मिला था जैसे इनको वरदान सुनो सुनो क्या बोल रहे हैं हमारे बापू राष्ट्रपिता महान *अहिंसा परमो धर्म हमारा* जाने सत्य सकल जहान  चाहे कितनी भी विकराल परस्थिति,  हिंसा नहीं उसका समाधान भारत ही नहीं, बांचे और देश भी, चाहता हूं मैं जग कल्याण *बुरा ना देखो,बुरा ना सुनो, बुरा ना कहो* मेरे तीनों बंदरों का यही फरमान अंतर्मन में छिपे रावण का  दमन कर लो, काम तो आयेंगे रघुपति राघव राजा राम कोई राग ना हो , कोई द्वेष ना हो कोई कष्ट ना हो , कोई क्लेश ना हो पनपे ना चित में किसी के कोई विकार सब निर्भय हों , सब स्वस्थ हों  मिले सबको रोटी,कपड़ा,मकान, रोजगार  यही तो मैं चाहता हूं बस अहम से वयम की चले बयार कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति को  भी जब मुहैया होंगी ये सुविधाएं, तभी वतन को लोकतांत्रिक कहने का अधिकार सबल हाथ थाम ले निर्बल का, ऐसा हो

POEM ON GANDHI JI(( thought by Sneh premchand))

मो==हन दास कर्मचंद गांधी, नाम ही नहीं, है यह सम्पूर्ण युग और बहुत बड़ी विचारधारा *सत्य,अहिंसा,त्याग की त्रिवेणी* गांधी जी स्वच्छता का आपने ही दिया था नारा *विश्व शांति दिवस*के रूप में मनाया जाता है गांधी दिवस*  सत्य जाने यह जग सारा हे बापू! हे राष्ट्रपिता! आपने ही आजाद वतन का  सपना संवारा *चश्मा,लाठी,धोती, चरखा* हर प्रतीक प्रतिबिंब आपके प्रभावी व्यक्तित्व का,इतिहास आपने भारत का संवारा स्वपनदृष्टा गांधी जी  बने  सदा हारे का सहारा ह==र  विषम परिस्थिति में किया अहिंसक प्रतिरोध, सत्य,अहिंसा से लोगों का मार्ग दर्शन  कर कष्टों के भव सागर से तारा प्रेम और शांति का सपना देखा, भय,घृणा,हिंसा से सदा किया किनारा न==मक कर को तोड़ने के लिए दांडी  मार्च किया आपने, खादी अपनाई, जात पात के भेद को सदा नकारा जलियां वाला बाग हिंसा से व्यथित होकर *केसर ए हिंद* की उपाधि लौटा बता दिया, हिंसा किसी हाल में ने होगी हमें गवारा दा==सता की बेड़ियां क्यों पहनें हम,भाव आजादी का रहा जिन्हें सदा प्यारा सब आजाद हो,सब निर्भय हों, शांत धरा उन्मुक्त गगन का भाव रहा जिन्हें सदा ही प्यारा अधनंगा,फकीर भ

मोहन दास कर्मचंद गांधी

पत्थर तैर gye the पानी में

संरक्षित जीवन

जिंदगी उत्सव है

मन केकई हो

हिंदी भाषा

ज्ञान दीप

सेवानिवृति की बेला पर

धूप छांव सी

समय रहते

कभी कभी

मतभेद भले ही हो जाए

जब मन आहत सा होता है

समाधान हेतु आगमन

जितना होता है तेल दीए में

दिल का नाता

हो ना कोई वृद्ध आश्रम इस जग में

मुबारक मुबारक

हिंदी की व्यथा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कल रात 13सितंबर सपने में मेरी  मां हिन्दी से हुई मुलाकात उदास चेहरा,बुझी बुझी सी आंखे देखकर पूछा मैंने, बतलाओ ना मां क्या है बात??? कल तो 14 सितंबर है मां,  कल का तो खास है दिन  और खास है रात  कल तो आपको  अगणित विशेषणों की मिलेगी  अनुपम सौगात दिन भर होंगे उत्सव आयोजन, बड़ी बड़ी पदवी और महिमामंडन की मिलेगी सौगात हर नेता अभिनेता करेगा बात तुम्हारी,करतल ध्वनि की चल पड़ेगी बारात लंबी सी सांस खींच बोली हिंदी देखो एक दिन की महारानी बना कर   नहीं बदल सकते हालात मैं चाहती हूं भोर होते ही  सब हिंदी में ही बोलें सुप्रभात मैं तो नस नस में हूं तुम सबके, जैसे सावन में होती  बरसात हर मां की लोरी में हूं मैं हूं मैं दादी नानी की कहानी में कहां नहीं हूं मैं?????? हूं हर दिल ए हिंदुस्तानी में क्या पूरे साल में मेरे लिए तुन्हे दिन एक ही मिला है?? मुझे बस आप लोगों से  यही गिला है अपने ही देश में मुझे  आप लोगों ने बना दिया मेहमान दुख होता है देख कर मेरे बारे में है बच्चों को कितना अल्प ज्ञान 79,89 को नहीं बोल पाते ताउम्र, अंग्रेजी का ही करते हैं आह्वान नई पीढ़ी को तो देखो जरा आम बा

लम्हा लम्हा गुजर गया वक्त