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स्नेहधार है मां ((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

करुणा की गंगोत्री से सतत बहने वाली स्नेहधार है माँ,कल्पना का सृजन है माँ,सहजता की कड़ाही में सदा प्रेम का  छोंक लगाती है माँ,मधुर मिलन की मीठी सी आस है माँ,माँ ममता का वो सागर है जो शांत चुपचाप युगों युगों से अनुराग लहरों का सृजन करता है,अपने हिवड़े में समेट लेता है,अनंत सीमा से साहिल तक प्रेमधारा,यह सत्य है।