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Thought on human nature

कुंती द्वारा कर्ण का त्याग न्यायोचित नही था,जिस प्रेम और सम्मान का कर्ण अधिकारी था,वो उसे नही मिला,उसे क्या मिला?सूतपुत्र होने का दंश,उच्च कुल में जन्म लेने के बाद भी जात पात का नासूर उसे खा गया,एकलव्य अर्जुन के सामान धनुर्धर था,परंतु द्रोण ने उसके दाहिने हाथ का अँगूठा ही गुरुदक्षिणा में मांग लिया,क्या यह न्यायोचित था?नही,अगर कर्ण का त्याग कुंती ने न किया होता,तो इतिहास की धारा ही बदल गयी होती,भरी सभा में पांचाली का चीर हरण हुआ,पूरी सभा मौन रही,क्या यह सही था?पावन जनकनंदिनी की अग्निपरीक्षा ली गयी,गर्भावस्था में उसको जंगल भेज दिया गया,क्या यह सही था?इतिहास में जाने कितने उदहारण हैं ,जब गलत हुआ ,और सब  खामोश रहे,फिर ये तो कलयुग है,अब कौन बोलेगा?

सतयुग। thought by snehpremchand

सतयुग या कलयुग कोई विशेष समय परिधि नहीं अपितु मनः स्थिति के विविध अहसास हैं। सात्विक सोच है तो सतयुग है,हम चाहें तो आज से अभी से इसी पल से सतयुग आ सकता है बशर्ते हमारी सोच बदले, क्योंकि सोच से ही कर्म और कर्म से ही परिणाम सुनिश्चित होते हैं,तामसिक प्रवर्तियों का निषेध ही तो सतयुग है।हम किसी की मुस्कान का कारण बनते हैं तो सतयुग है,किसी के कष्ट का कारण बनते हैं तो कलयुग है।मांसाहार,मदिरापान, शोषण,अत्याचार,हिंसा, संवेदनहीनता ये सब कलियुग के ही विविध रूप हैं,इनका वर्जन ही सतयुग है।मन मे सत्कर्मों का अनहद नाद जब बजने लगे,प्रेम की अनन्त स्वरलहरियां सर्वत्र गुंजन करने लगें,अहम से वयम का तराना बजने लगे,पूरी धरा ही एक परिवार की तरह लगने लगे,सुख दुख साँझे होने लगे,पर पीड़ा का बोध होने लगे,मन पर कोई बोझ न हो, जब व्यर्थ के आडम्बर,दिखावे की जगह सादगी,सरलता और सहजता लेले,समझो सतयुगआ गया।सन्तोष,क्षमा,त्याग,उदारता,विनम्रता,जागरूकता,सुशिक्षा,सुसंस्कार  संयम,चेतना,आत्ममंथन, आत्मबोध,ज्ञान,करुणा सब सतयुग की संतान हैं।जब लेने की बजाय देने में आनन्द आने लगे,समझो सतयुग की चौखट पर दस्तक दी जा चुकी