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विविधता में एकता(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*एक ही वृक्ष के हैं  हम फल,फूल,पत्ते हरी भरी शाखाएं* *विविधता है बेशक  बाहरी स्वरूपों में हमारे, ,पर मन की एकता की  मिलती हैं राहें* *अलग खान पान है  अलग है पहनावा" *पर मूल से हम सब भारतीय ही हैं, नहीं करते कभी कोई कहीं दिखावा* बोली बेशक अलग हो हमारी, पर दिल के भाव एक हैं एक साथ खड़े होते हैं इसलिए, क्योंकि दिल के भाव नेक हैं।। *कला ना जाने सरहद कोई* *संगीत ना जाने मजहब कोई* *साहित्य ना जाने कोई दीवार* *विविधता में भी एकता है हम में* *प्रेम ही हर रिश्ते का आधार* *परदेसी को भी बना लेते हैं अपना यही हमारी शिक्षा,यही हमारे संस्कार*