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और परिचय क्या दूं तेरा ???((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

और परिचय क्या दूं तेरा,सच में तूं गुणों का अनंत भंडार। सौ बात की एक बात है,प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।। ओ प्रेम सुता! तूं सच में पाठ प्रेम का सब को पढ़ा गई। कथनी से नहीं,करनी से,जिंदगी के मायने सबको समझा गई।। कभी रुकी नहीं,कभी थकी नहीं, सदा किया कर्मों का मेहनत से श्रृंगार। और परिचय क्या दूं तेरा, सच में तूं गुणों का अनंत भंडार।। दिनकर सा बन कर उदित हुई तूं, जाने क्या क्या कर गई रोशन अपने उजियारे से। प्रेम का सच्चा पर्याय थी तूं, आती है आवाज हर गलियारे से।। उम्र में बेशक छोटी थी,पर औरा बहुत बड़ा तेरा, निभा गई उम्दा अपना हर  किरदार। और परिचय क्या दूं तेरा,सच में गुणों का अथाह भंडार।। जुगनू नहीं,आफताब थी तूं, हर्फ नहीं,पूरी किताब थी तूं, अभाव का तुझ पर प्रभाव न था, गिले,शिकवे,शिकायत करना  तेरा स्वभाव न था, काम,क्रोध,लोभ,ईर्ष्या और अहंकार। सच में तो ओ मेरी लाडो! कोई भी तो नहीं था चित में तेरे विकार। और परिचय क्या दूं तेरा,थी गुणों का अथाह भंडार।। सच में अधरों पर मुस्कान लिए तूं, कीचड़ रूपी इस जग में नीरज सी खिली रही। न लड़ी, न झगड़ी कभी,सब संग तूं लाडो हिली मिली रही।। एक नहीं,