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एक अक्षर के छोटे से शब्द में(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा हुआ है पूरा जहान,
न कोई था,न कोई है,न कोई होगा माँ से बढ़ कर कभी महान।।

वो कभी नही रुकती थी,
वो कभी नही थकती थी,
किस माटी से खुदा ने 
उसका किया था निर्माण?

उपलब्ध सीमित संसाधनों में भी था उसको बरकत का वरदान!!
मां का अक्षत पात्र कभी नहीं होता था रीता,अन्नपूर्णा सी मां सच में महान

कर्म की कावड़ में जल भर कर मेहनत का,
हम सब को मां तूने आकंठ तृप्त करवाया,
कर्म के मंडप में अनुष्ठान कर दिया ऐसा मेहनत का,
सब का रोम रोम हर्षाया

तन पुलकित और मन आह्लादित
सच में मां होती है गुणों की खान
हमें हम से ज्यादा जानती है मां
मां की ममता का अद्भुत विज्ञान

आधि,व्याधि,बाधा,विपदा
सब कुछ मां लेती है झेल
इसलिए मां का इस जग में
होता नहीं कोई भी मेल
अपने ही पर्याय को धरा पर भेज विधाता हो गया बेफिक्र,
मां से हो गया पूरा जग धनवान
एक अक्षर के छोटे से शब्द में
सिमटा हुआ है पूरा जहान

मातृऋण से कभी उऋण नही हो पाएंगे
तिनके सा अस्तित्व  है हमारा तेरी महान हस्ती के आगे,
तुझे आजीवन माँ जेहन में लाएंगे
दिल पर दस्तक,जेहन में बसेरा,
चित में ममता के पक्के निशान
अपनी हर पीड़ा छिपा कर अधरों 
पर रखती मुस्कान
एक अक्षर के छोटे से शब्द में
सिमटा हुआ है पूरा जहान

आज भी तू मन के हर अहसास में है,
ऐसा लगता है जैसे मेरे पास में है,
तू कहीं नही गयी,तू तो माँ हर जगह में है समाई
कौन सी ऐसी शाम है माँ,जब तू न हो हमे याद आई,

यादों के समंदर में अति विहंगम विस्तृत मां का जहान 
धडधडाती ट्रेन से तेरे अस्तित्व के आगे थरथराते पुल सा वजूद मेरा
तूं महान मां मैं नादान
एक अक्षर के छोटे से शब्द में
सिमटा हुआ है पूरा जहान

हमारे आचार में तू,व्यवहार में तू,हमारी सोच में तू,हमारी कार्य शैली में भी नज़र आती है तेरी परछाईं,
बस एकमातृदिवस तक ही सीमित नही अस्तित्व तेरा,तू तो हर पल इस इस मे है समाई
मेरा तन मन रूह सब धरोहर है मां तेरी, मैं क्यो आज तलक रहा अंजान
कभी लगी नहीं तपिश तेरे साए तले,मां हम चमन तूं बागबान

एक अर्ज़ सुन लेना दाता, हर जन्म में मेरी माँ को ही मेरी माँ बनाना
वो कितनी अच्छी थी,कितनी प्यारी थी,थी ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत सा  तराना।।
इस तराने को युगों युगों से गा रहा है जमाना हो चाहे कितना ही विद्वान
अति वंदनीय और अनुकरणीय होते हैं मां के कदमों के पावन निशान
एक अक्षर के छोटे से शब्द में
सिमटा हुआ है पूरा जहान

मांगती हूं मन्नत मुझे फिर वही मेरी मां मिले
वही धरा मिले मुझे,वही आसमान मिले।।

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