सो रहा है शहर, जाग रहे हैं ये नन्हे फरिश्ते, कर्म ही सबसे सुंदर श्रृंगार। धन्य हैं ये नन्हे फरिश्ते, तारों की छांव में भी सुंदर बना रहे हैं हिसार।। कुछ नहीं बहुत कुछ कह रही है तस्वीर ये, लेनी है तो ले लो प्रेरणा इससे बेशुमार।। अहम से वयम का बजा रहे हैं ये शंखनाद। उच्चारण नहीं आचरण में लाते हैं ये संकल्प अपने,कर रहे शहर को ये आबाद।। इन नन्हे कदमों की कदमताल से आओ हम भी ताल मिलाएं काल करे सो आज कर,इस उक्ति को सार्थक कर जाएं।। सच्ची खुशी मिलती है इन्हीं चौखटों पर,मन का हो जाता है परिश्कार। कुछ कर गुजरने का जज्बा भी एक थैरेपी है,संतुष्टि खटखटाने लगती है चित का द्वार।। कुछ तो कर्तव्य कर्म हैं मातृभूमि के लिए हमारे,आओ निभाएं सही किरदार। सो रहा है शहर,जाग रहे हैं ये नन्हे फरिश्ते,कर्म ही सबसे सुंदर श्रृंगार।। स्नेह प्रेमचंद