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मैं ही नहीं प्रकृति भी दे जाए तुझे(( दुआ स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मैं ही नही प्रकृति भी दे जाए, तुझे तेरे जन्मदिन पर ढेरों उपहार चन्दा दे जाए शीतलता अपनी, सूरज के तेज से हो तू सरोबार कोयल की कूक,पपीहे की बोली, मधुर वाणी दे जाएं बेशुमार पर्वत दे जाए अडिगता अपनी, ध्रुव तारा अपनी चमक दे जाए, पवन दे जाए गति अपनी, पेड़ पौधे अपनी हरियाली दे जाएं, आरुषि हो सूरज की पहली किरण तुम,हर किरण उजियारा दे जाए अनन्त गगन दे जाए असीमता अपनी, धरा अपनी सहनशक्ति दे जाए, विषम परिस्थितियों में भी न तू डोले, समस्या के समाधान का तू पाले पार। सागर सी गहरी तू बनना, पावन नदिया सी तू बहना, ओ मेरी प्यारी ऐना बिटिया, तू ही है मेरा सच्चा गहना औऱ अधिक नही आता कहना, आज अपने जन्मदिन पर ये दुआ कर लेना स्वीकार।। मैं ही नही प्रकृति भी दे जाए तुझे तेरे जन्मदिन पर ढेरों उपहार लम्हा लम्हा कर बीते बरस इतने हर लम्हे में रहा तेरा विचार कुछ करना दरगुजर,कुछ करना दरकिनार यही मूलमंत्र है लाडो जीवन का, कभी चित में लाना ना कोई विकार मैं ही नहीं प्रकृति भी दे जाए तुझे तेरे जन्मदिन पर ढेरों उपहार