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मां रोटी बन जाती है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

भूख लगी हो गर बच्चे को, मा रोटी बन जाती है प्यास लगी हो गर बच्चे को, मा पानी बन जाती है गर समस्या हो कोई बच्चे को, मा समाधान बन जाती है अग्निपथ से इस जीवन में मां सहजपथ बन जाती है जीवन के इस चक्रव्यूह से मां ही बाहर  लाती है कोई द्वंद संशय हो गर अर्जुन से चित में, मां कृष्ण सा गीता ज्ञान बन जाती है हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का मां ही तो बोध करवाती है हर कब,क्यों,कैसे,कितने का ततक्षण उत्तर बन जाती है सूना सूना सा लगता है घर  घर घुसते ही मां नजर नहीं आती है मां के आंचल की छांव तले, हर चित चिंता धूमिल पड़ जाती है मैने भगवान को तो नहीं देखा पर जब जब देखी मां की सूरत ईश्वर की छवि नजर आती है धड़धड़ाती ट्रेन से मां के व्यक्तित्व के आगे थरथराते पुल सी मेरी शख्शियत हो जाती है।। सोच कर तो जाती हूं ये कहूंगी वो कहूंगी पर मां के तेज के आगे मेरी छवि मोम सी पिंघल जाती है उदास हो गर बच्चा, मा हंसी बन जाती है दर्द हो गर बच्चे को, मा दवा बन जाती है हमसे हमारा परिचय मां ही तो करवाती है हर धूप छांव में संग खड़ी मां ही तो नजर आती है जब सब पीछे हट जाते हैं मां झट से आगे आती है सांझ ढले जब हम नही