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खाली खाली सा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कोशिश करती हूं मैं कई मर्तबा लिख डालूं तेरे लिए मन के सारे उद्गार शब्द और भाव दोनों ही स्तब्ध हो जाते हैं ना जानूं कैसे करूं इजहार हर भाव के लिए शब्द बने हों जरूरी तो नहीं, अनकहे रह जाते हैं जाने कितने ही विचार अनुभूति अभिव्यक्ति सबकी अलग अलग हैं  पर तेरे लिए सबके ही चित में हैं मां जाई सद्विचार कुछ करती रही दरगुजर कुछ करती रही दरकिनार उफ्फ तक भी ना की कभी लबों से, खाली खाली सा हुआ तुझ बिन ये विहंगम संसार