क्या क्या सीखें हम कान्हा से????
सच्चा प्रेम क्या होता है,
ये कान्हा से सीखे हम।
राधा कान्हा की प्रेम कहानी,
जितनी सोचो उतनी कम।।
अपना भाग्य आप बनाने की कला,ये भी कृष्ण ने सिखाया है।
कर्म ही जीवन है की तान को बड़े प्रेम से कान्हा ने गाया है।।
कर्म करो,पर फल की इच्छा न करो,गीता में कान्हा ने समझाया है।
ज़रूरी कर्म को करना ही है,इस धुन को नगमा बनाया है।।
रिश्तों को कान्हा ने बड़ी सहजता से निभाया है।
विषम परिस्थितियों से बिखरना नहीं निखरना है, कह कर नहीं कर के दिखाया है।।
जाने क्या क्या छूटा कान्हा से,फिर भी कोई मलाल नहीं उनके चित में आया है।
गोकुल छूटा,वृंदावन छूटा,छूटी मुरलिया,राधा,बचपन के मित्र वो सारे।
फिर भी चलते रहे, वे रुके नहीं,
अपने कर्तव्य से कभी न हारे।।
मोहग्रस्त हुए जब पार्थ रणभूमि में,
हर लिए उनके मन के सारे अंधियारे।
नहीं माधव सा कोई पथप्रदर्शक,
खोजो चाहे द्वारे द्वारे।।
नारी अस्मिता के सच्चे रखवाले,
चीर बढ़ाया पांचाली का इतना,
दुष्ट दुशासन खींच खींच कर हारे।।
मुरली से सुदर्शन चक्र के सफर में
मोहन कर्तव्य कर्म से कभी न हारे।।
स्नेह प्रेमचंद
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