सुधार और निखार की हर संभावित संभावना को टटोलना जिसे बखूबी आता है कोई और नहीं मेरे प्यारे बंधु वो सिर्फ और सिर्फ पिता का नाता है हमारे सपनों को हकीकत में बदलना जिसे बखूबी आता है हमारी हर आरजू के लिए वो अपनी जरूरतों की बलि चढ़ाता है जीवन के अग्नि पथ को पिता ही सहज पथ बनाता है जिंदगी की हर धूप में जो छाता बन जाता है जीवन के चक्रव्यूह से जो हमे पल भर में बाहर ले आता है हमे हम से ज्यादा जानता है वो हमसे हमारा परिचय करवाता है हर संज्ञा सर्वनाम विशेषण का बोध करवाता है संवाद और संबोधन दोनों भले ही कम होते हों पिता से, पर नाता दिनों दिन पिता से गहराता है एक दिन जब हट जाती है छाया पिता की,सर्वत्र अंधेरा हो जाता है