प्रेम लेना नहीं देना जनता है। प्रेम एहसासों के अधीन है, मुलाकातों के नहीं।। प्रेम के आंधी अहंकार को तो ऐसे बहाकर ले जाती है जैसे बारिश का पानी गंदगी को बहाकर ले जाता है।प्रेम को दिखावा भी नहीं आता,अपने आप ही नजर आ जाता है प्रेम।। स्नेह प्रेमचंद
प्रेम,सहजता,भरोसा और विश्वास यही बनाती हैं जीवन को ख़ास इन सब से ओत प्रोत हो गर जीवनसाथी हर दिन उत्सव है बिन प्रयास किसी ख़ास दिन का मोहताज नही होता जश्न फिर पल पल जश्न का होता है आगाज़ माँ बाप और जीवनसाथी सजता है इनसे जीवन का साज रहे सदा सजा ये साज प्रीतम बस आती है दिल से यही आवाज़
पूरे विश्व में घर होता प्रेम , और नफरत को कोई पनाह न मिलती। सोचो, धरा ही फिर बन जाती स्वर्ग , हिंसा की चिंगारी न जलती।। मिल बांट कर खाने की आदत होती। स्वार्थ की ढपली पड़ी पड़ी रोती।। दर्द उधारे लेने आते,बड़े अपनत्व से नाते निभाते।। स्नेह प्रेमचंद
किसी भी रिश्ते में जब दोनों पक्ष रूठ जाते हैं, पहल करने वाला ही अधिक प्यार करता है,अगर किसी भी तरफ से पहल नही होती तो इसके दो ही कारण होंगे,यातो प्यार ही न होना,या अहम का प्यार से अधिक बड़े होना।। स्नेह प्रेमचन्द