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इस बार दिवाली में(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*झाड़ना ही है तो घर संग मन की भी गर्द झाड़ लो इस बार दिवाली में* *रंगना ही है तो रंग लो मन प्रेम से,  ऐसा कोई रंगरेज बुला लो इस बार दिवाली में* *जलाना ही है तो जला लो  दीया ज्ञान का,  ले आओ ऐसे ज्ञान दीये इस बार दिवाली में* *शमन करना ही है तो करो विकारों का  लोभ,मोह,काम,क्रोध,ईर्ष्या,अहंकार सबका करो शमन,  इस बार दिवाली में*  *भला करना ही है तो करो कुम्हार का,  खरीद माटी के दीये उससे जो लाए उजियारे उसकी अंधेरी झोपड़ी में भी,  इस बार दिवाली में* *जमी है बर्फ जो किसी रिश्ते पर मुद्दत से,पिंघला दो स्नेह सानिध्य से इस बार दिवाली में* *जाले उतारने ही हैं तो तो उतार दो पूर्वाग्रहों, नफरतों, भेदभाव के इस बार दिवाली में*  *धोनी ही है तो धो डालो समस्त बुराइयां चित से, हो जाए मन उजला,निर्मल, पावन इस बार दिवाली में*  *विचरण करना ही है तो करो मन के गलियारों में,जहां गए नहीं बरसों से, करो मुलाकात खुद की खुद से इस बार दिवाली में*  *देना ही है तो दो यथा संभव दान जरूरतमंदों को इस बार दिवाली में*  *देना ही है वक्त तो दो अपने माता-पिता को इस बार दिवाली में* *मिटानी ही है दूरियां तो मिटा दो बहुत ही खास अप

वो गांव हमारा था

*वो गांव हमारा था* सर्दी के मौसम में जहां घूप सुनहरी खिलती थी गर्मी में वो गहरी सी नीम की छाया मिलती थी खेतों में गेहूं की बाली लहर-लहर लहराती थी सरसों के फूलों की बगिया बसंत ऋतु ले आती थी मेथी,पालक, गाजर,मूली ताजी-ताजी मिलती थी भांत-भांत की चटनी जहां सिलबट्टे पर पिसती थी बाजरे की खिचड़ी और रोटी का स्वाद अनोखा था सदाबहार थी जहां राबड़ी जिसका  स्वाद सदा ही चोखा था चांद सितारों की चादर रातों को भाया करती थी माटी की सोंधी सी खुशबु बारिश में आया करती थी खेतों की मेडों से होकर चहुँ ओर ही राहें जाती थी जहां सुख दुख साझे होते थे, महक अपनत्व की आती थी कोई राग न था कोई द्वेष ना था कोई कष्ट ना था कोई क्लेश ना था हम सबके सब हमारे थे गुण दोष एक दूजे के स्वीकारे थे जहां लोक गीतों की धुन मन खुश कर जाती थी बिन लाग लपेट के सादी सी जिंदगी जैसे सबको गले लगाती थी किस- किस के हैं खेत कहां पहचान बताती  थी वो गांव हमारा था री सखी जहां भोर उजाला लाती थी थक कर होकर चूर जहां रात भी सो जाती थी जहां चित चिंता नहीं होती थी जहां  कोई आडंबर ना होता था सब सरल सहज  सा जीते थे प्रकृति से सबका नाता था माटी ऋण चुकाना जहा

आज वो गिर से याद आई

आज वो फिर से याद आयी, माँ की दीवाली पर मन से की गयी बेहतरीन सफाई, वो ईंटों के फर्श को बोरियों से रगड़ रगड़ कर कर देना लाल, वो पूरे घर को पाइप से धोना,माँ सच में थी तू बड़ी कमाल, वो काम खत्म कर माँ संग तेरे जो जाना होता था बाजार, अब रोज़ बाज़ारों में जा कर भी नही मिलती ख़ुशी वो,तेरी  कर्मठता हर शै को कर देती थी गुलज़ार, वो खील पताशे आज के छप्पन भोगों से भी होते थे माँ लज़ीज़, वो आलू गोभी की सब्जी संग माखन के ,तृप्ति होती थी कितनी अज़ीज़, माँ सच में तेरी प्यार की दस्तक से खिल सी जाती थी दिल की दहलीज, जोश,उत्साह,तरंग से भरपूर जीवन का माँ तूने विषम परिस्थितियों में भी क्र दिया शंखनाद, शायद ही कोई शाम होगी ऐसी,जब आयी न होगी तेरी याद, ज़िन्दगी के सफर में तेरे साथ ने प्यारा सा एक साथ निभाया, तुझे कह लेते थे मन की पाती, ये बाकि जहाँ तो लगता है पराया,  तू कितनी अपनी सी थी, तू कितनी  सच्ची सी थी, आज ये एहसास और जा रहा है गहराया, तू जहां रहे,मिले शांति तेरी दिवंगत आत्मा को,दीवाली के इस पावन पर्व पर दिल ने दोहराया

I wish

I wish the morning of October 29, 2008 had never come.  God is selfish and he always wants the best and you were one. He wants big-hearted and wonderful people close to him and that is why he took you away from us. We all miss you ma. I have never met anyone with a will power as strong as yours.  You went out of your way to help anyone and everyone. You lived every moment and taught us the same. Your smile was contagious and your love unconditional. You taught me so much, right from sewing a button to painting my nails.  You overcame every obstacle that came your way and left behind a learning that there will be dawn after a storm. I know you walk beside us, every single day. Unheard and unseen, showering your blessings and love, protecting us and helping us sail in this journey of life. We owe you a lot ma, you made us. Miss you ma and love you forever and ever... लम्हा लम्हा कर बीते बरस 15 तुम को हमसे बिछड़े हुए यादें कभी जाती नहीं जेहन से, यादों के गुल आज भी जेहन में खिल

सबके बस की बात नहीं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

*दर्द उधारे लेना जग में* सबके बस की बात नहीं *करुणा भरा हो चित व्यक्ति का* सबके बस की बात नहीं *दिल जीत ले जो सबका* सबके बस की बात नहीं *कोई चुभती बात ना कहे किसी को* सबके बस की बात नहीं *मन के घोड़ों की लगाम कसना* सबके बस की बात नहीं  *मधुर वाणी संग हो मधुर व्यवहार* सबके बस की बात नहीं *कुछ करना दरगुजर कुछ करना दरगुजार* सबके बस की बात नहीं *सपने वे होते हैं जो हमे सोने नहीं देते* समझना सबके बस की बात नहीं *दिल दिमाग का हो सही तालमेल* सबके बस की बात नहीं *नयनों की भाषा पढ़ना* सबके बस की बात नहीं *फल मिले या ना मिले पर कर्म करते रहना* सबके बस की बात नहीं *खामोशी की जुबान समझना* सबके बस की बात नहीं *सोच कर्म परिणाम की त्रिवेणी बहाना* सबके बस की बात नहीं *छोटे बड़े हमउम्र सबसे तालमेल होना* सबके बस की बात नहीं *संकल्प का मिलन हो जाए सिद्धि से* सबके बस की बात नहीं *बेगानाें को भी अपना बना लेना* सबके बस की बात नहीं *उपलब्ध सीमित संसाधनों में बेहतरीन कर जाना* सबके बस की बात नहीं *मन में कोई राग ना हो,कोई द्वेष ना हो,कोई अहंकार ना हो,कोई विकार ना हो* ये सबके बस की बात नहीं *सहजता क

दुनिया से जाने वाले

दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ, किस पगडंडी से किस राह को चुन लेते हैं वो,नही छोड़ते कोई निशाँ, माटी मिल जाती है माटी में,है ये जीवन की सच्चाई,जन्म से  मौत का सफर ही तो है जीवन,छोटी सी बात बड़ों बड़ों को समझ न आयी,सब जानते समझते हुए भी मोह माया के बंधन पड़ जाते है भारी, वो अक्सर याद आ ही जाते हैं,थी जिन्होंने हमारी ज़िंदगी सँवारी

प्रगट दिवस की बहुत बधाई

शोक को श्लोक कर देने की दैविक कला के प्रणेता महान कवि ऋषि वाल्मीकि जयंती की सबको बधाई जनक सुता जानकी के प्रतिपालक, बखूबी जानते थे पीर पराई पिता की भांति स्नेह दिया जानकी को,कितनी भी कर लो,कम है बढ़ाई  विश्व के महानतम ग्रंथ से कायनात को अलंकृत करने वाले,जग के प्रथन कवि की रचना ने सर्वत्र ज्ञान की गंगा बहाई अमर है उनकी कृति रामायण, रिश्तों की मर्यादा बतलाई मर्यादा पुरषोत्तम के पुत्रों को दी ऐसी शिक्षा,संग संस्कारों की अलख जलाई श्री राम के परम भगत,महान संत ने रामायण के जरिए जन जन को राम कथा समझाई जानकी को आश्रय दिया गर्भावस्था में,अभिभावक की रीत निभाई महान ऋषि वाल्मीकि जी की आज जयंती पर सबको बधाई साधक आज के रोज करते हैं दान पुण्य,रामायण मंत्रों और श्लोकों की धुन देती है सुनाई शरद पूर्णिमा के पावन दिन वाल्मीकि जयंती है आई जैसे घने अंधेरे में  किसी ने ज्ञान की  पावन गंगा हो बहाई धन्य हुई धरा भारत की जहां जन्में ऋषि वाल्मीकि,राम भगति से कायनात सुंदर हो आई