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सीता,द्रौपदी और दामिनी भाग 3 poem by sneh premchand

सिया,द्रौपदी फिर उन्मुख हुई दामिनी के,
कहा हे दामिनी अब सुनाओ हमे अपनी कलयुगी कहानी।
क्या क्या हुआ धरा पर संग तुम्हारे,
लगती है ज़िन्दगी तुम्हारी बड़ी वीरानी।।
सुन दोनों की बातें फिर प्रकट किए,
 दामिनी ने निज उदगार।
सुन उसकी वेदना और पीड़ा को
,हिवड़ा करने लगा हाहाकार।।
छोटी सी थी दुनिया मेरी,
था खुशियों भरा मेरा संसार।
डस गए कई दानव मुझे ऐसे,
चहुँ ओर मैंने किया चीत्कार।।
न फ़टी धरा,न डोला गगन,
न कोई कान्हा मुझे बचाने आया।
मैं लुटती रही,तड़फती रही,
मौत ने ज़िन्दगी को तिलक लगाया।।
शब्दों में नहीं वो ताकत,
जो मेरी पीड़ा कर सकें बयान।

जो हुआ संग मेरे मैं ही जानती हूं,
इंसान बन गया था हैवान।।।
मैं तो छोड़ धरा को आ गई अब ऊपर,
अंतहीन कष्टों से मुझे तो मिल ही गया छुटकारा।
पर कैसे होंगे वे मेरे अपने,
कैसे मेरे अंत को  उन्होंने होगा स्वीकारा।।
वे रोज़ ही मरते होंगे  सारे,
मेरी यादों के जख्म का मरहम न कोई भी लाया,
कैसे सहजता से छूटा होगा दामन उनका,
मेरी विदाई ने कितना होगा उन्हें रुलाया।।
पुरुषों के इस समाज ने मुझे भीतर तक है हिलाया,
तब से ही मैं सिसक रही हूँ, 
मेरा रोना अब तक बंद न हो पाया।।
फटता है जब कोई भी बादल,
तब बहनो मैं खुल कर रोती हूँ।
नही मिलता जवाब मुझे मेरे सवालों का,
आज भी नही चैन से सोती हूँ।।
मेरी माँ की मीठी लोरी की धुन,
सपनो में अक्सर लेती  हूं सुन।
नही समझ पाती क्योंकर हुआ ये सब,
क्यों दानवों की सोच को लग गया था घुन।।
देख रही हूँ ऊपर से,आज तलक भी,
मुझे न्याय नही मिला है ।
और कितना समय चाहिए सबको,
क्या घड़ा पाप का अभी तलक नही भरा है।।
सतयुग,द्वापर या फिर हो कलियुग,
नारी का शोषण है जारी।
अब तो रुक जाए ये शोषण,
कहीं शोला न बन जाए चिंगारी।।
नारी तो जननी है पूरे जग की,
है वो तो वन्दनीय और सम्मान की हकदार।
परिवार,समाज और विश्व जी रीढ़ है नारी,
आओ सीखें करना उसको प्यार।।
सृजन की इस देवी का दामन,
अब तो करो न दागदार,न दागदार।।
           स्नेहप्रेमचन्द


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