Skip to main content

सबसे बड़ी खासियत तेरी(( श्रद्धांजलि स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

तेरी सबसे बड़ी खासियत यही थी मां जाई!
 सबको लगता था है तूं उसकी अति खास।
कुछ नहीं बहुत कुछ खास रहा होगा तुझ में,यूं हीं नहीं होता कोई किसी के लिए उदास।।

*धीरज धरा सा उड़ान गगन सी*
सदा किए तूने अथक प्रयास।।
खुद मझधार में होकर भी साहिल का पता बताने वाली
आज बेशक नहीं हैं हमारे पास।।

पर तुझ से लोग जग से जाकर जेहन से कभी नहीं जाते,
तेरा हमारे जीवन में होना एक सुखद अहसास।।

क्रम में सबसे छोटी पर,
कर्म में सबसे बड़ा औरा तेरा,
सतत करती रही अपना विकास।।
धन्य हुई धरा हरियाणा की,
जहां ले कर जन्म तूने बना दिया इसे खास।।

जन्मभूमि हरियाणा था पर कर्मभूमि रहा तेरा परदेस भी,
इंडियन एंबेसी में कितनी पावन रूह का वास।।

तूं है नहीं, नहीं होता यकीन
तूं तो जैसे पहुपन में सुवास।।
महक रही है आज भी ऐसे फिजा में,धरा ही नहीं,सुवासित हो रहा है आकाश।।

आज जन्म दिन है तेरा,
ईश्वर तेरी दिव्य दिवंगत आत्मा को से निज चरणों में वास।।
आज होती तो होती बरस 49 की,तूं है नहीं,नहीं होता विश्वास।।

जिंदगी भले ही छोटी मिली हो तुझे,पर बड़े कर्मों को करने का
तेरा अंदाज़ रहा छोटी अति खास।।
तूं माला का मोती नहीं, हुक थी री पूरी की पूरी माला का,
एक तेरे ना होने से बिखराव का होता है आभास।।

धड़धड़ाती सी ट्रेन से तेरे अस्तित्व के आगे थरथराते पुल से लगते रहे और मुझे,
करुणा चित में,मुख में मधुर बोली का निवास।।
हानि धरा की लाभ गगन का
मुझे तो तेरे जाने से यही होता है आभास।।

*मात पिता की लाडो,भाई बहन की जान,मित्रों की धड़कन और धुरी परिवार की*
तूं रही सबमें ऐसे जैसे तन में श्वास।।
07/09/21 से 2/11/22 तक का सफर रहा जो तुझ बिन,जैसे गहन सन्नाटे का आभास।।

कर्म से भाग्य की रेखा बदलने वाली आने वाली पीढ़ियां शायद ही तेरे होने का कर पाएं विश्वास।।
फिर मेरी ये लेखनी यकीन दिलायेगी लोगों को,
तूं खास नहीं,अति खास नहीं,रही मां जाई अति अति खास।।
चलो एक दीया जलाते हैं आज तेरे नाम से,तूं जहां भी हो,हो वहां शांति का वास।।

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

अकाल मृत्यु हरनम सर्व व्याधि विनाश नम Thought on धनतेरस by Sneh premchand

"अकाल मृत्यु हरणम सर्व व्याधि विनाशनम" अकाल मृत्यु न हो, सब रोग मिटें, इसी भाव से ओतप्रोत है धनतेरस का पावन त्यौहार। आज धनतेरस है,धन्वंतरि त्रयोदशी, धन्वंतरि जयंती, करे आरोग्य मानवता का श्रृंगार।। आज ही के दिन सागर मंथन से प्रकट हुए थे धन्वंतरि भगवान। आयुर्वेद के जनक हैं जो,कम हैं, करें, जितने भी गुणगान।। प्राचीन और पौराणिक डॉक्टर्स दिवस है आज, धनतेरस के महत्व को नहीं सकता कोई भी नकार। "अकाल मृत्यु हरनम, सर्व व्याधि विनाशनम" इसी भाव से ओत प्रोत है धनतेरस का पावन त्यौहार।। करे दीपदान जो आज के दिन,नहीं होती अकाल मृत्यु,होती दूर हर व्याधि रोग और हर बीमारी के आसार।। आज धनतेरस है,धन्वंतरि त्रयोदशी,धन्वंतरि जयंती,करे आरोग्य मानवता का श्रृंगार।।।             स्नेह प्रेमचंद