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कोशिश है मेरी(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कोशिश है मेरी
 माँ बाप के विषय में लिख कर एक सामाजिक चेतना लाने की कोशिश है मेरी।

जो चले गए उन्हें शत शत नमन, और भावभीनी श्रद्धांजलि है मेरी,पर जो इस जहाँ में हैं,उन्हें सम्मान ,तवज्जो,प्रेम,और मीठे बोल दिलवाने की छोटी सी कोशिश है मेरी।

वो जो नही जानते कि वे क्या नही जानते,उन्हें कुछ जन वाने की कोशिश है मेरी।

सब जानते हैं,सब मानते हैं,बस हनुमान की तरह याद दिलाने की छोटी सी कोशिश है मेरी।

सबसे अमीर है वो ,जो माँ बाप के संग में रहता है,उस अमीर को उसके ख़ज़ाने को पहचान करवाने की छोटी सी कोशिश है मेरी।

माँ बाप के संग बिताये गए पल अनमोल होते हैं,उन अनमोल पलों को हर कोई सहेजे,बस ये छोटी सी कोशिश है मेरी।

हर कोई श्रवण कुमार नही बन सकता, पर इस सोच का अंकुर पल्लवित करने की छोटी सी कोशिश है मेरी।

बाद में मन मे न रह जाये मलाल कोई, सहज बनाने की छोटी सी कोशिश है मेरी।

हम से ही सीखती है हमारी अगली पीढ़ी,इस सुसंस्कार की अलख जगाने की  छोटी सी कोशिश है मेरी।

संसार मे ही न रहे कोई वृद्धाश्रम,हर आशियाने के मंदिर में माँ बाप के अस्तित्व को स्वीकार कराने की छोटी सी कोशिश है मेरी।

मैं कोई ज्ञानी नही,प्रवक्ता नही,पर आप को महान बनाने की छोटी सी कोशिश है मेरी।

औऱ मैंने हरिवंशराय बच्चन जी की कविता को आत्मसात किया है कि 

कोशिश करने वालीं की कभी हार नही होती।

आप  मेरी इस कोशिश में साथ देकर बहुत सहज,हल्का और अच्छा महसूस करेंगे,ये सत्य है।।

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