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है सत्य,नहीं अनुमान(( स्नेह प्रेमचंद के दिल से))

*मधुर आगमन
असहनीय प्रस्थान*
*हानि धरा की
लाभ गगन का
है सत्य, नहीं अनुमान*
*लम्हे की खता,
बनी ना भूली 
जाने वाली दास्तान*
*तुझे बना कर तो,
खुद खुदा भी हो गया
होगा हैरान*ओ
*नजर ही नहीं
नजरिया भी था खास तेरा
सच में तूं ईश्वर का वरदान*
मधुर आगमन दुखद प्रस्थान

*11 स्वर और 33 व्यंजन भी
नहीं कर पाते तेरा बखान*
*कुछ एहसास शब्दों के
दायरे से बहुत परे हैं
आता है उनमें सबसे ऊपर
तेरा नाम*
*एक मां संग
 और एक तुझ संग
होती थी जो अनुभूति
चाह कर भी नहीं कर
पाती कभी बयान*
*वही महक
 वही सौंधी सौंधी
सी खुशबू तुझ में,
अंतर्मन के गलियारों में
 आज भी तेरे निशान*
*जैसे पहली बारिश
 के बाद की बूंदें
 बस जाती हैं नस नस में,
ऐसा तेरा *औरा* 
ऐसी तेरी पहचान*
मधुर आगमन
अकल्पनीय प्रस्थान

प्रेम ने करुणा से
करुणा ने मधुर वाणी से
मधुर वाणी ने विनम्रता से
विनम्रता ने अपनत्व से
अपनत्व ने जुड़ाव से
जब पूछा पता उनके आशियाने का
एक ही जवाब था सबका
नाम था तेरे ठिकाने का।।
प्रेम सुता तूं पर्याय प्रेम का,
प्रेम का रूह ने पहना परिधान।
मधुर आगमन,दुखद प्रस्थान।।

मेरी छोटी सी सोच को
 समझ नहीं आती
 ये बात बड़ी सी,
कैसे समझ लेती थी
 नातों का विज्ञान।।
*करुणा,प्रेम,और मधुर वाणी*
का स्थाई निवास था चित में तेरे,चुंबकीय व्यक्तित्व,
लबों पर सदा मुस्कान।।
मधुर आगमन,दुखद प्रस्थान

छोटी सी लेखनी
 लगती है सोचने,
क्या क्या करूं 
मैं तेरा गुणगान।।
और परिचय क्या दूं तेरा????
अनुकरणीय हैं
 तेरे कदमों के निशान।।
जिक्र और जेहन में
 सदा रहेगी ऐसे,
जैसे तन में होते हैं प्राण।।
वक्त का पहिया रहेगा घूमता,
घटनाओं का घटना है काम।।
*इसको,उसको सबको पता है
अति खास थी,नहीं थी आम*
ना शब्द खोजने पड़ते हैं,
ना भाव ढूंढने पड़ते हैं,
तुझ पर तो लेखनी
 चलती है मां जाई! 
सतत,अविलंब और अविराम।।
ऐसे रहती है आज भी दिल में 
जैसे राधा चित में शाम 
और बजरंगी चित में राम।।
मधुर आगमन दुखद प्रस्थान

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