याद है मा उस पुराने घर को दिवाली पर कैसे ईंटों से चमकाती थी कितनी अद्भुत थी मा मेरी दिवाली पर भैंसों की भी रंग बिरंगी गलपटटी बनाती थी सीमित उपलब्ध संसाधनों में भी मेरी मां सब काम कितना अच्छे से पूरा कर जाती थी रुका नहीं कभी कोई भी काम मां का मां देख हमें कितनी हर्षित हो जाती थी मां के अथक प्रयास ही हैं ये,मां जो चाहती थी वह पाती थी आज जो कुछ भी है वह देन है मां की मां जाने इतनी हिम्मत इतना हौंसला कहां से लाती थी