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Showing posts from 2025

चित निर्मल चितवन भी चारु

चित निर्मल चितवन भी चारु चेतन भी सुंदर अचेतन भी सुंदर चित्र भी प्यारा चरित्र भी न्यारा चम चम चमकी जिंदगी के सफर में हर चेष्टा भी सच्ची हर चमक भी प्यारी और परिचय क्या दूं तेरा???? रहती थी बन प्रकृति में हरियाली सी शब्दों से अधिक दोस्ती नहीं मेरी वरना बता देती तू थी पर्वों में दिवाली सी हर अंजुमन की महफिल होती थी अंजु छोटे बड़ों सब के दिल में करती रही बसेरा अहम से वयम का बजाया सदा ही शंखनाद उसने कभी ना सोचा ना किया तेरा मेरा पहर में से देना हो गर नाम कोई कहूंगी उसे मैं उजला सवेरा ये वक्त के हाथ से गिरा लम्हा कोई बना कभी ना भूली जाने वाली दास्तान निर्मल चित,उम्दा व्यवहार और मधुर बोली रहे  उसकी पहचान उम्र छोटी पर कर्म बड़े जिज्ञासा चित में,करुणा दिल में विवेक का चलता रहा दिमाग में उसके विज्ञान किसी भी क्रिया के प्रति उसकी प्रतिक्रिया थी उसके व्यवहार की सच्ची पहचान सोच कर बोलती थी बोल कर नहीं सोचना पड़ता था उसे, मनोभावों से रहती नहीं थी अंजान बखूबी जानती भी थी मानती भी थी जिम्मेदारी संग ही मिलते हैं अधिकार कुछ करती रही दरगुज़र कुछ करती रही दरकिनार एक बात आती है समझ प्रेम ही रहा उसके हर ...

उठो पार्थ गांडीव उठाओ

उठो पार्थ गांडीव उठाओ यह बेला समर की आई है आज दिखाओ रण कौशल क्यों दुविधा चित में आई है??? मोहग्रस्त हुए पार्थ जब देख अपनों को  कुरुक्षेत्र में तब माधव ने बात यही समझाई है जब जब होती है हानि धर्म की बेला तब शस्त्र उठाने की आई है भूल गए क्या अपमान पांचाली का क्या उस बेला ने मन में उथल पुथल नहीं मचाई है धर्म की रक्षा के लिए उठाया जाता है जब जब शस्त्र, समझो घड़ी गौरव की आई है उठो पार्थ! गांडीव उठाओ यह समर की बेला आई है याद करो जब शांति दूत बन मैं गया था दुर्योधन के द्वारे सुई की नोक के बराबर भी भूमि नहीं दूंगा बोला था वह चित उसे धिककारे यह युद्ध तो चयन है कौरव पक्ष का क्यों बात समझ तुम्हे नहीं आई है उठो पार्थ गांडीव उठाओ ये समर की बेला आई है रावण ने हरण किया सीता का श्री राम ने उसका किया संहार नारी अस्मिता की रक्षा हेतु शत्रु का शमन करना ही था उपचार दुविधा के हटाओ ये धुंध कुहासे अन्याय अनीति के बादल छंटने की बेला आई है उठो पार्थ गांडीव उठाओ घड़ी सही निर्णय लेने की आई है गलत का साथ देने वाला भी होता है गलत, भीष्म कर्ण की भूमिका ने बात यही समझाई है तेरे संग तो मैं खड़ा हूं बन तेरा सारथी ...

वो सोने की चूड़ी

माँ की निशानी — वो सोने की चूड़ी, झिलमिलाती नहीं, पर कहती है पूरी-पूरी उस संघर्ष की, उस त्याग की कहानी, इस कहानी की नायिका है मेरे बच्चों की प्यारी नानी विवेक,मधुर वाणी,मधुर व्यवहार की बहती थी त्रिवेणी जिसके चित में घर की रानी ही नहीं मां तो रही ताउम्र घर की महारानी कर्म बदल सकता है भाग्य मां ने आरंभ से अंत तक बात यह जानी इन चूड़ियों में बसी है माँ की ममता सयानी बड़े शौक से पहना करती मां मेरी मां की बड़ी अद्भुत कहानी दिल पर दस्तक, जेहन में बसेरा चित में मां के स्नेह की अमिट निशानी कभी रुकती नहीं थी,कभी थकती नहीं थी कर्मों का बजाती थी निरंतर इकतारा जैसे हो मीरा शाम की दीवानी हर खनक में सुनाई देती है एक पुकार, “बेटी, तू है मेरे संसार का सबसे सुंदर उपहार।” दुआओं की सरगम गाती है उसकी मधुर झंकार माँ के अधूरे ख्वाबों की सुनहरी  छाया है सच में इस जीवन में मां का जी शीतल साया है माँ और बेटी — दो जिस्म एक आत्मा, भावनाओं की नदी, प्रेम की गंगा-जमुना। माँ के आँचल में सिमटी थी जो नन्ही जान, वो अब माँ बनकर देती है वही पहचान। जब बेटी बड़ी होती है, तो माँ की आँखों से देखने लगती है दुनि...

समय है अनुभन h जिंदगी

अनहद नाद

जब कोई मुश्किल पद जाए

दिलों में करती थी बसेरा

उम्र छोटी पर कर्म बड़े(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

करुणा ने पूछा संयम से

करुणा ने पूछा संयम से संयम ने पूछा हौंसले से हौंसले ने पूछा विनम्रता से विनम्रता ने पूछा ज्ञान से ज्ञान ने पूछा मधुर वाणी से मधुर वाणी ने पूछा अपनत्व से अपनत्व ने पूछा भगति से भगति ने पूछा निर्मलता से निर्मलता ने पूछा स्नेह से स्नेह ने पूछा जिम्मेदारी से जिम्मेदारी ने पूछा प्रतिबद्धता से रहते रहे ताउम्र कहां तुम सारे के सारे एक ही सुर और एक ही भाव में बोले सब मिल कर और कहां?? अंजु कुमार के द्वारे

अपने जब अपनों से मिल जाते हैं

कुछ सुविचार((स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सबसे बड़ी दौलत परिवार(( विचार स्नेह सावित्री प्रेमचंद द्वारा))

एक ही वृक्ष के हैं हम  फल फूल पत्ते और हरी भरी शाखाएं विविधता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे, पर मन की एकता की मिलती हैं राहें *एक सा परिवेश एक सी परवरिश* पर जिंदगी के एक मोड़ पर होना पड़ता ही है जुदा एक दूजे से, बेशक हम चाहें या ना चाहें सबसे लंबा सबसे प्यारा साथ होता है भाई बहनों का जीवन में, बेशक और कितने ही नए नए नाते जीवन में आएं मात पिता का अक्स नजर आता है भाई बहनों में,बशर्ते कि हम देखना चाहें परिवार मात्र चार लोगों का ही नहीं होता,भाई बहन तो जीवन के आरंभ का पहला परिवार है क्यों ना सरल सी बात समझ में सबकी ना आए सब प्रेम वृक्ष के ही तो पुष्प कलियां हैं महक प्रेम की सभी में एक सी आए हुनर भले ही हों न्यारे न्यारे सब के पर हुनियारे में एक नजर आएं हमारे जन्म से अपनी मृत्यु तक जो दिल में हमें बसाते हैं कोई और नहीं वे प्यारे बंधु *मात पिता* कहलाते हैं  है ना विडंबना ये कितनी बड़ी जो हमें बोलना सिखाते हैं  उन्हीं से हमारे संवाद और संबोधन कम हो जाते हैं बनते हैं हम जब मात पिता तब ये सत्य समझ में आते ह...

कहां जाती होंगी वे औरतें((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कर्मा बाई के कर्मों की करुण कहानी(( श्रद्धा सुमन स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 आओ कहें आज कर्मा बाई के कर्मों की करुण कहानी *चित निर्मल और श्रद्धा सच्ची*  कर्मा बाई की ऐसी जिंदगानी शबरी ने जैसे भजा राम को खुद चल कर दर  शबरी के आए राम झूठे बेर खाए बड़े प्रेम से जाना शबरी ने राम ही तीर्थ राम ही धाम  ऐसे ही बाल भाव से बजती थी कर्मा जगन्नाथ को तन मन से बनी उनकी दीवानी ना ढोंग आडंबर ना कोई कर्मकांड सावन में जैसे प्रकृति हो धानी सरल सहज चित भोली कर्मा  ताउम्र रही इन सब से अनजानी आओ कहें आज कर्मा बाई के कर्मों की करुण कहानी सुदामा के पोहे खाए माधव ने तीनों लोकों का वैभव दे डाला ऐसा होता है निर्मल चित का सच्चा प्रेम भाव  जो हृदय में सुदामा मोहन ने था पाला ऐसी ही थी कर्मा बाई आओ करें आज उनकी करुणा कहानी विदुर घर भाजी खाई थी बड़े प्रेम से जैसे मोहन ने, ऐसे ही जगन्नाथ ने मां कर्मबाई की खिचड़ी को नित भोग लगाया सरल चित में बसते हैं भगवान सबको  सत्य समझ में आया एक रोज लगी करने विनती कर्मा  भगवन सुन लो मेरी एक अरदास कुछ बना कर खिलाना चाहती हूं आ जाओ जो मेरे पास उसकी सच्ची भगति से अभिभूत हो कर विनय उसका ...