आओ कहें आज कर्मा बाई के कर्मों की करुण कहानी *चित निर्मल और श्रद्धा सच्ची* कर्मा बाई की ऐसी जिंदगानी शबरी ने जैसे भजा राम को खुद चल कर दर शबरी के आए राम झूठे बेर खाए बड़े प्रेम से जाना शबरी ने राम ही तीर्थ राम ही धाम ऐसे ही बाल भाव से बजती थी कर्मा जगन्नाथ को तन मन से बनी उनकी दीवानी ना ढोंग आडंबर ना कोई कर्मकांड सावन में जैसे प्रकृति हो धानी सरल सहज चित भोली कर्मा ताउम्र रही इन सब से अनजानी आओ कहें आज कर्मा बाई के कर्मों की करुण कहानी सुदामा के पोहे खाए माधव ने तीनों लोकों का वैभव दे डाला ऐसा होता है निर्मल चित का सच्चा प्रेम भाव जो हृदय में सुदामा मोहन ने था पाला ऐसी ही थी कर्मा बाई आओ करें आज उनकी करुणा कहानी विदुर घर भाजी खाई थी बड़े प्रेम से जैसे मोहन ने, ऐसे ही जगन्नाथ ने मां कर्मबाई की खिचड़ी को नित भोग लगाया सरल चित में बसते हैं भगवान सबको सत्य समझ में आया एक रोज लगी करने विनती कर्मा भगवन सुन लो मेरी एक अरदास कुछ बना कर खिलाना चाहती हूं आ जाओ जो मेरे पास उसकी सच्ची भगति से अभिभूत हो कर विनय उसका ...