जब जब भी देती है दस्तक तूं दिल।की चौखट पर, मैं लांघ दहलीज आ जाती हूं खोलने हर बार जग से जाने वाले जेहन से भी जाएं ज़रूरी तो नहीं,उमड़ गढ़ आते हैं ऐसे विचार कोई दिल में रहता है कोई दिमाग में रहता है पर दोनों में ही रहता है जो नाम है उसका अंजु कुमार जाने किस माटी से बनाया था उसे विधाता ने,कुछ करती रही दरगुज़र कुछ करती रही दरकिनार अभिव्यक्ति के दीए में एहसासों की बाती तूं प्रेम भरे लफ्जों में लिखी हुई स्नेह भरी सी पाती तूं