जीवन के सफर में चलते चलते
जब थकने लगें कदम तेरे
*तब मेरे पास चली आना*
पीहर की हूक उठे जब चित में
और दिल मां का संग लगे चाहने
*तब आने में तनिक न देर लगाना*
तपते मरुधर में शीतल सी छाया बनने की रहेगी कोशिश मेरी,
*आता है स्नेह को स्नेह आप्लावित चित से स्नेह निभाना*
तेरा चेहरा पढ़ लेती हैं आँखें मेरी
देख कभी ना मुझ से कुछ भी छिपाना
भले ही मिली हो 5 बरस के बाद मुझे
*आता है याद मुझे गुजरा ज़माना*
मुलाकात भले ही कम हों,
पर जब भी हो उसमें खास बात हो
हो जाए मन उसका दीवाना
जीवन के सफर में चलते चलते
जब थकने लगे कदम तेरे
*तब मेरे पास चली आना*
खून का भले ही नहीं है नाता तुझसे
पर दिल का है
*मैं जानूं, तूं जाने
भले ही जाने ना ये सारा जमाना*
एक नहीं दो बेटियां हैं मेरी
*हो तेरे जीवन का सफर सुहाना*
यूं हीं नहीं मिलता जिंदगी के मेले में कोई किसी से,
*अपना खास बन जाता है कोई अंजाना*
भरोसे का धरातल हो
सपनों का आसमान हो,
*हक से अपना अधिकार ज़माना*
जिम्मेदारियों का बोझ उठाते उठाते
जब उद्विग्न सा होने लगे मन तेरा,
*तब मेरे पास चली आना*
*अपने अंक में हौले से छिपा लुंगी तुझे
देख नयनों को अपने नम न कर जाना*
कौन कहता है खून के नाते ही होते हैं अपने,
मैने तो दिल के नातों को सदा ही बेहतर माना
जब बोझिल हो मन,आहत हो तन
हौले से कान में कह जाना
**मैं प्रेम कपाट रखूंगी खोल कर
तूं बिन दस्तक के आ जाना**
यूं मत आना कि आना चाहिए था
जब दिल में उठें हिलोरें
तब मेरे शहर का टिकट कटाना
मैं फलक फावड़े बिछा कर रखूंगी राह में तेरी,देख सखी ना कभी बिसराना
बच्चों की जिम्मेदारी उठाते उठाते
घर गृहस्थी का बोझ उठाते उठाते
जब अनमना सा होने लगे चित
तब आने में तनिक न देर लगाना
मैं फूल सा हल्का कर करूंगी रुखसत करुंगी तुझे,
तूं हंसती हंसती सी नजर आना
तेरी पेशानी पर कभी न दिखे मुझे लकीरें परेशानियों की,
दुआओं से दामन अपना भर जाना
जिंदगी के सफर में चलते चलते
जब थकने लगे कदम तेरे
तब मेरे पास चली आना
धोरा की धरा आज भी याद आती है मुझे,जहां सीखा लेखन,और जिंदगी ने गुनगुनाया मधुर सा तराना
स्नेह प्रेमचंद
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