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Showing posts from May, 2025

बता पार्थ तेरे कौन थे माधव भाग २

बता पार्थ तेरे कौन थे माधव जीवन रण की महाभारत में जिसने तुझ को विजय दिलाई बता पार्थ तुम्हे इतनी कम उम्र में इतनी गहरी समझ कहां से आई बता पार्थ तूने सीखी कहां से कला बोलने की,तेरी मधुर वाणी और सौम्य व्यवहार ने सबके चित में जगह बनाई बता पार्थ तूने कैसे त्याग प्रमाद को ताउम्र,कर्मठता की सदा बीन बजाई बता पार्थ तू कैसे धरा से धीरज को कर धारण बच्चों के हर प्रश्न को इतने अच्छे से कर देती थी एक्सप्लेन ऐसी बुद्धि और ऐसा प्रस्तुतीकरण तूं कहां से लाई सहानुभूति  तो बहुत कर लेते हैं पर empathy का गुण नहीं होता सबके भीतर,उस गुण को आत्मसात करने की जागृति कैसे तेरे जेहन में आई बता पार्थ तूने कहां से सीखा विचरण करना अंतर्मन के गलियारों में आत्म निरीक्षण,आत्म मंथन कर किया आत्मसुधार अपने कर्मों और विचारों में बता पार्थ  तूने सीखा कहां से नातों को स्नेह की खाद,परवाह की धूप और अपनत्व के पानी से सींचना,तेरी इस कला को देख कायनात भी नतमस्तक हो आई बता पार्थ तूं इतनी ऊंचाई पर पहुंच कर भी इतनी सहज कैसे थी  अहंकार और गरुर की कभी नहीं तूने  बीन बजाई बता पार्थ परदेस में भी तूने बना लि...

अंजु एक मिसाल(( विचार सुमन प्रेमचंद द्वारा)

अंजु — एक मिसाल” *उम्र छोटी पर कर्म बड़े* जैसे जीवन ने जल्दी से हो राह दिखाई हर चित में करती थी वो बसेरा हर रिश्ते की प्रीत बड़े दिल से निभाई वो आई ज़िंदगी में जैसे कोई दुआ, छोटे लफ्ज़ों में बड़ी बातें कहती रही सदा उम्र भले ही कम थी उसकी, पर समझ उसकी बुद्धिमत्ता की पराकाष्ठा  चेहरे पर मुस्कान, दुख सहकर भी, जैसे ईश्वर ने हिम्मत की मूरत गढ़ी मित्र, परिवार, सबको प्यार दिया, हर दिल से जुड़कर, अपना सब कुछ वार दिया  क्रम में छोटी पर कर्मों में बड़ी हर मुस्कान उसकी, जैसे दुःख से इनकार, हर आंसू, औरों के लिए, खुद का ना कोई भार हर रिश्ता निभाया उसने दिल खोलकर, चाहे अपना हो या कोई राह गुजर। वो चलती रही, थामे सबका हाथ, हर मोड़ पर देती रही अपनेपन का साथ। जैसे फ़रिश्तों का कोई रूप थी  जिसे देख लगे, परमात्मा का स्वरूप थी । मैं बड़ी थी उम्र में, पर वो थी बड़ी हर रूप में, उसकी बातें, उसकी सोच, जैसे कोई गहन छाया कड़कती धूप में  कभी मेरी छाया, कभी मेरा साया बनी, रिशते में छोटी बहन पर समझ में गुरु सी लगी। उसकी सहज मुस्कान अब भी आंखों में है, हर पल, हर याद, बस उसी की बातों में है। कभी मे...

दिनकर की आभा सी तूं

तेरा होना

[ तेरा होना ] जैसे सावन में बारिश का होना, जैसे गीता में कर्मसंदेश होना, जैसे रामायण में सुशिक्षा होना, जैसे गंगोत्री से गंगा का बहना, जैसे कुसुम में महक का होना, जैसे गन्ने में मिठास का होना, जैसे हलधर की खेती का होना, जैसे साहित्य में कबीर की रचनाएं, जैसे राही के लिए हों राहें, जैसे पार्थ के लिए था अचूक निशाना, जैसे एकलव्य की गुरुनिष्ठा का ताना बाना, जैसे कोयल के लिए कूक का होना, जैसे मन्दिर में घंटी का होना, जैसे रामायण में चौपाइयों का होना, जैसे माधव के लबों पर बांसुरी का होना, जैसे राघव के लिए वचन का पालन करना, जैसे माँ में ममता का होना, जैसे पिता में सुरक्षा भाव का होना, जैसे कूलर में पानी का होना, जैसे नयनों में ज्योति का होना, जैसे चिराग में बाती का होना, जैसे लेखनी में लेखन का होना जैसे दिल मे धड़कन का होना, जैसे चूल्हे में ईंधन का होना, जैसे हल्दी में पीलापन होना, जैसे दिनकर में तेज का हो होना, जैसे इंदु में शीतलता होना, जैसे हीरे में चमक का हो होना, जैसे थकान के बाद निंदिया का होना, जैसे भगति में श्रद्धा का होना, जैसे अपने ईष्ट में विश्वास का होना, जैसे तरुवर पर प...

मुबारक

बता पार्थ तेरे कौन थे माधव( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

बता पार्थ! तेरे कौन थे माधव जो जीवन के कुरुक्षेत्र में तूने विजय पाई किसने ज्ञान दिया था तुझे गीता का जो कम उम्र में भी इतनी समझ आई *उम्र अनुभव का मोहताज नहीं* पूरी दुनिया को यह बात समझाई क्या कुछ नहीं कर सकते प्रयास?? प्रयासों से उपलब्धि तक जाने की राह दिखाई बता पार्थ तेरे कौन थे माधव जिसने जीवन रण की हर महाभारत में तुझको विजय दिलाई लक्ष्य को मिल ही जाती है सफलता ने गर मेहनत से ना हो आंख चुराई बता पार्थ! तेरे कौन थे माधव?? जीवन की धनुर्विद्या जिसने सिखाई कर्मों से लिखा जा सकता है भाग्य परिवेश,परवरिश की ना दी तूने कभी दुहाई हर सफर मंजिल की ओर जाता नहीं है पर मंजिल की ओर जाता तो कोई न कोई सफर ही है कर्म करने की महता माधव ने ही पार्थ तुझे सिखाई हर दुविधा को सुविधा कैसे जाता है बनाया बता पार्थ माधव ने कूटनीतिक समझ तुझ में कैसे पल्लवित कराई?? बता पार्थ तेरे कौन थे माधव जिसने मोहग्रस्त चित में सहज चेतना की लौ जलाई *जीवन एक रंगमंच है* और हम सारे किरदार ऊपर वाले के हाथ में *कठपुतली* हैं सब जानता था तूं ये पार्थ इस रंगमंच से हौले से कैसे चले जाते हैं  गुरु माधव की शिक्षा नीति त...

मां जैसी होती है बेटी

बता पार्थ तेरे कौन थे माधव

बता पार्थ तेरे कौन थे माधव जो जीवन के कुरुक्षेत्र में तूने विजय पाई किसने ज्ञान दिया था तुझे गीता का जो कम उम्र में भी इतनी समझ आई उम्र अनुभव का मोहताज नहीं, पूरी दुनिया को यह बात समझाई *क्या कुछ नहीं कर सकते प्रयास* प्रयासों से उपलब्धि तक जाने की राह दिखाई लक्ष्य को मिल ही जाती है सफलता ने गर मेहनत से  ना हो आंख चुराई बता पार्थ तेरे कौन थे माधव *जीवन की धनुर्विद्या* जिसने सिखाई *कर्मों से लिखा जा सकता है भाग्य* परिवेश,परवरिश की ना दी तूने कभी दुहाई हर सफर मंजिल की ओर जाता नहीं है पर मंजिल की ओर जाता तो कोई न कोई सफर ही है *कर्म* करने की महता माधव ने ही पार्थ तुझे सिखाई *हर दुविधा को सुविधा कैसे जाता है बनाया*  बता पार्थ माधव ने कूटनीतिक समझ तुझ में कैसे पल्लवित कराई?? *जीवन एक रंगमंच है* और हम सारे किरदार ऊपर वाले के हाथ में *कठपुतली* हैं  सब जानता था तूं ये पार्थ  इस रंगमंच से हौले से कैसे चले जाते हैं   गुरु माधव की  शिक्षा नीति तूने अपनाई बता पार्थ तेरे कौन थे माधव जिसने तुझे मित्रता की महता समझाई सुदामा कृष्ण की गहरी दोस्ती...

बता पार्थ तेरे कौन थे माधव

बता पार्थ तेरे कौन थे माधव जो जीवन के कुरुक्षेत्र में तूने विजय पाई किसने ज्ञान दिया था तुझे गीता का जो कम उम्र में भी इतनी समझ आई उम्र अनुभव का मोहताज नहीं, पूरी दुनिया को यह बात समझाई क्या कुछ नहीं कर सकते प्रयास प्रयासों से उपलब्धि तक जाने की राह दिखाई लक्ष्य को मिल ही जाती है सफलता  गर मेहनत से ना हो आंख चुराई बता पार्थ तेरे कौन थे माधव जीवन की धनुर्विद्या जिसने सिखाई कर्मों से लिखा जा सकता है भाग्य परिवेश परवरिश की ना दी तूने कभी दुहाई बता पार्थ तेरे कौन गुरु थे जिसने गांडीव पर प्रत्यंचा चढ़ानी सिखाई मुझे तो लगता है मां ही तेरी माधव थी मा जाई मां की कर्मठता स्वाभाविक रूप से तेरे चरित्र में उतर आई

कौन कहता है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कौन कहता है मर्द को जमाने के गर्म सर्द का पता नहीं चलता, वह सहता अधिक है,कहता कम है उच्चारण नहीं आचरण को बनाता है जीवन आधार I love u भले ही ना कहे वह मगर उसकी परवाह में उसके प्रेम के होते हैं दीदार जीवनपथ न बने अग्निपथ कभी इसी जद्दोजहद में जिंदगी देता है गुजार कौन कहता है मा अधिक स्नेह करती है बच्चों से, पिता का भी अवर्णनीय होता है दुलार हर आंधी तूफान में बन जाता है ढाल वह कुछ करता रहता है दरगुज़र, कुछ करता रहता दरकिनार कभी पुत्र,कभी पति,कभी पिता का निभाता रहता है किरदार कौन कहता है मर्द को मात पिता से नहीं होता है प्यार बस नातों में बना रहे ताल मेल, रहे शांति और खुशियां घर में, यही उसकी सोच यही उसके विचार कौन कहता है उसका अलसाने का मन नहीं करता पेंडिंग कामों में लगा देता है अपना इतवार चित चिंता रहित रहता है उसके होने से, जिम्मेदारी संग जाग जाते हैं अधिकार कौन कहता है उसके शौक नहीं होते पर यदा कदा ही दबे स्वरों में उनका करता है इजहार कौन कहता है उसको बोलना नहीं आता पर शांति प्राथमिक होती है जीवन में उसके,इसलिए हर भाव को शब्दों का पहनाता नहीं वह हार कौन कहता है उसको गुस्सा न...

तुम भी जानो

मैं लक्ष्मण तूं संजीवनी बूटी

एक चमन की दो डाली

कुछ लोग जेहन में ऐसे बस जाते हैं

** जिन्हें ईश्वर खून के नाते में बांधना भूल जाता है उनको इस जीवन में सच्चा मित्र बनाता है** यूं तो मिलते तो बहुत हैं जिंदगी के सफर में लोग, कुछ भूल जाते हैं,कुछ याद रह जाते हैं पर कुछ लोग जेहन में सदा के लिए अंकित हो जाते हैं *इस फेरहिस्त में नाम सखी तेरा शीर्ष पर हम पाते हैं* *सावन भादों* से होते हैं कुछ लोग जिंदगी में, बेमौसम भी खुल कर बरस जाते हैं  सुकून भरी हरियाली से आच्छादित हो जाता है तन मन, चित चैन,राहत,खुशी मिल कर जिंदगी की चौखट पर दस्तक दे जाते हैं इस फेरहिस्त में नाम तेरा सखी शीर्ष पर हम पाते हैं कुछ लोग जेहन में ऐसे अंकित हो जाते हैं *जैसे बच्चे घर में घुसते ही मां को  आवाज लगाते हैं* मां भी दौड़ी आती है एक ही आहट पर, गोधूलि की बेला पर जैसे भानु धरा से मिलते नजर आते हैं **इस फेरहिस्त में नाम सखी तेरा शीर्ष पर हम पाते हैं** कुछ लोग जिंदगी में ऐसे घुल जाते हैं *जैसे शक्कर घुल जाती है पानी में, मिठास से संबंध को सींचे जाते...