नैराश्य का तमस हटा, आशा की आरुषि का प्रादुर्भव करना तुझे बखूबी आता था भाग्य नहीं सौभाग्य था ये मेरा जो तुझसे मां जाई का नाता था आज बरस 4 हो गए तुझे हमसे बिछड़े हुए, तेरा जिक्र जेहन पर मीठी सी दस्तक दे जाता था हर हालत में,हर हालातों में चुनौती को अवसर बनाना आता था मर्यादा,प्रतिबद्धता,दया,अनुराग इन चारों का साथ तुझे तन मन से सुंदर बनाता था जिंदगी पग पग पर लेती रही परीक्षा पर तुझे जिंदगी का हर प्रश्न पत्र हल करना आता था कोई राग न था कोई द्वेष न था बस चित में तुझे प्रेम बसाना आता था कनेक्टिविटी,करुणा,कर्मठता रहे तेरे विशेष गुण,तुझे सबका साथ सुहाता था यही थी तेरी सबसे बड़ी खासियत कि सबको लगता था तूं उसकी खास है तेरे स्नेह सानिध्य में तो कांटा भी सुमन बन जाता था नीलम सी चमकती तूं पल पल निर्मल चित और चारु चितवन से तेरा अस्तित्व हनी सा मीठा बन जाता था यथार्थ से अवगत थी तूं भली भांति तुझे वर्तमान में जीना आता था सु मन में खिले रहते थे सुमन सदा तेरा किरदार स्वयं सुवासित हो जाता था धन्य हुई कोख मां सावित्री की, ये मां बेटी का कितना प्यारा नाता था इंदु सी शीतलता ...