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मेरे पास चली आना(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जीवन के सफर में चलते चलते जब थकने लगें कदम तेरे *तब मेरे पास चली आना*  पीहर की हूक उठे जब चित में और दिल मां का संग लगे चाहने *तब आने में तनिक न देर लगाना* तपते मरुधर में शीतल सी छाया बनने की रहेगी कोशिश मेरी, *आता है स्नेह को स्नेह आप्लावित चित से स्नेह निभाना* तेरा चेहरा पढ़ लेती हैं आँखें मेरी देख कभी ना मुझ से कुछ भी छिपाना भले ही मिली हो 5 बरस के बाद मुझे *आता है याद मुझे गुजरा ज़माना* मुलाकात भले ही कम हों, पर जब भी हो उसमें खास बात हो हो जाए मन उसका दीवाना जीवन के सफर में चलते चलते जब थकने लगे कदम तेरे *तब मेरे पास चली आना* खून का भले ही नहीं है नाता तुझसे पर दिल का है  *मैं जानूं, तूं जाने भले ही जाने ना ये सारा जमाना* एक नहीं दो बेटियां हैं मेरी *हो तेरे जीवन का सफर सुहाना* यूं हीं नहीं मिलता जिंदगी के मेले में कोई किसी से, *अपना खास बन जाता है कोई अंजाना* भरोसे का धरातल हो सपनों का आसमान हो, *हक से अपना अधिकार ज़माना* जिम्मेदारियों का बोझ उठाते उठाते जब उद्विग्न सा होने लगे मन तेरा, *तब मेरे पास चली आना* *अपने अंक में हौले से छिपा लुंगी तुझे देख नयनों को ...