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स्वर्ग से इस जीवन को नहीं नर्क बनाना है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

तुलसीदास जी से जब किसी ने पूछा क्या रामचरितमानस में कोई ऐसी चौपाई है जो पूरी रामायण का सार हो तुलसीदास जी ने यह चौपाई बताई **जहां सुमति तह संपति नाना जहां कुमति तहै विपत्ति नाना** भावार्थ है जहां हम अच्छे दिमाग से सोचते और करते हैं तो सुख,समृद्धि,वैभव, सफलता और खुशियां जिंदगी की चौखट पर दस्तक देती हैं और जहां बुरी मति यानि विकारों का चयन होता है वहां अनेक मुसीबतों से हमारा सामना होता है और परिणाम रावण समान होता है कुमति ही हमें नशे के प्रति आसक्त करती है अगर हम अपने दिलों दिमाग का सही प्रयोग कर नशों के जंजाल में नहीं फंसते तो विनाश के बादल छट जायेंगे किसी ने सही कहा है *बोए पेड़ बबूल के तो आम कहां से खाए* अर्थात अगर हम नशों का चयन करेंगे तो जीवन में सुख समृद्धि की कामना कैसे कर सकते हैं *कड़वा है मगर सत्य है*       स्वर्ग से इस जीवन को नहीं नर्क बनाना है नशों से रहो दूर सदा, इस धरा पर दोबारा नहीं आना है शराब को हम नहीं पीते, शराब हमें पीती है दलदल से इस चक्रव्यूह के भीतर हमें नहीं जाना है एक बार जो कर गए प्रवेश इसमें लगता फिर मुश्किल बाहर आना है स्वर्ग से इस जीवन को ...