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Showing posts from July, 2025

राहत दे जो आहत चित को

यूं हीं तो नहीं

धड़कन

खुशी

कड़वा है

रोशन

अतीत के गुल्लक से

जिस भी दिल में

मां बाप नहीं मिलते

जिस तन लागे

सत्य और अहिंसा

जिस दिल में

मंदिर ना जाओ चलेगा

कभी कभी

कई बार

कई बार

प्रेम

हमें खुश देख जो खुश हो जाते हैं

गहन मंथन के बाद

तन की नहीं मन की सुंदरता

एक ही वृक्ष

शिकायत करना आसान

मात पीट

जब कुछ साथ नहीं जाना

यही धर्म है

नाम राम का लेने से

हर नाते में

मां सा गुरु नहीं होता कोई जग में(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा()

रोना भी वहां चाहिए

कारवां चलता रहा

सागर में जब उठती है लहर

राम नाम

अपने तो अपने होते हैं

कभी कभी

दीए जलते हैं

आता है आनन्द मुझे

नाम राम का

तीज त्योहार

कारवां चलता रहा

नाम राम का लेने से

आज भी