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Poem on Bhai duj ((thought by Sneh Premchand))

संजीवनी बूटी  कहूं या कहूं एक बहुत ही स्ट्रांग सा स्पोर्ट सिस्टम हर उपमा छोटी पड जाती है भाई बहन तो ऑक्सीजन जीवन के, एक दूजे संग सांस खुल कर आता है जब जिंदगी का परिचय होता है अनुभूतियों से तब से दोनों का साथ होता है हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध होता है संग संग,एक ही परिवेश और एक सी परवरिश का बोध इन्हें होता हैं