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मां तेरे होने से

मां सा शिक्षक कोई नही

सबसे पहला शिक्षक मां

शिक्षक दिवस(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

शि---क्षा ही नहीं, शिक्षक शिष्य को देता है संस्कार, क्ष--मा कर देता है उसकी अनेकों गलतियाँ, मकसद, उसका बस शिष्य सुधार, क---भी नही चाहता बुरा शिष्य का, गुरु,दिनोदिन कर देता उसका परिष्कार, हौले हौले आ जाता है उसके व्यक्तित्व में अदभुत सुधार, गुरु का स्थान है गोविंद से भी ऊँचा,  है गुरु शिष्य के आदर और प्रेम का हकदार, आज शिक्षक दिवस हमे सिखा रहा यही, शिष्य चित्त में आए न कभी अहंकार, गुरु और सड़क हैं राही एक ही सफर के, बेशक खुद रहते हैं वहीं,पर शिष्य को आगे बढ़ने का बना देते हैं हकदार।।

वो जाने क्या क्या सिखा गई

वो जाने क्या क्या सिखा गईं, ज़िन्दगी का परिचय अहसासों से करा गईं, कथनी से बेहतर है करनी,ये अच्छे से जतला गई, कभी न रुकी,कभी न थकी, जिजीविषा का अनहद नाद बजा गई, कर्म की कावड़ में जल भर कर हमें आकंठ तृप्त करा गई, कर्म ही परमानन्द है,ये अच्छे से समझा गई, आनंद देने में है,लेने में नही,इस भाव की घुट्टी पिला गई, सहजता,समर्पण,प्रेम,संतोष,कर्म,संस्कार, मेलजोल इन सातों रंगों का इंद्रधनुष मन मे जैसे बना गई, वो विविध रंगों की रंगोली हमेशा के लिए  सजा गई, वो कर्म का ऐसा अनहद नाद बजा गई जो लक्ष्य के घर तक पहुंच गया, वो सोच,कर्म,परिणाम का सम्बंध समझा गई, वो रिश्ते निभाना सिखा गई, वो फिर गई कहाँ, वो तो सर्वत्र है, वो माँ, सखी,प्रथम शिक्षक का फर्ज बखूबी निभा गई, वो हमारे जन्म से अपनी मृतयु तक अपने दिल मे रखना सिखा गई, वो सीमित उपलब्ध संसाधनों में बेहतरीन करना हमे बता गई, उनसे बड़ा शिक्षक मुझे तो कोई समझ नही आता आपको????

कह सकें हम जिनसे बात दिल की

सर्वोपरि है ग्राहक (( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))