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मजहब नहीं सिखाता

मज़हब नही सिखाता आपस मे बैर रखना,बचपन से  ये दिल मे समाया है, वो फिर कुर्बान हुए लाल माँ भारती के,सब स्तब्ध, मन बेचैन हो आया है, वो फिर कोई शहीद तिरंगे में लिपट कर,घर अपने लौट कर आया है, तीन नही,चौथा रंग रक्तिम धब्बे का तिरंगे पर उभर कर आया है।। जिस घर से जिस भी मां की झोली यूँ असमय ही होती है खाली, क्या बचा होगा उस मां के चित्त में,हर नज़र बन उठती है सवाली।। एक ही नही जाता एक घर से,जाने कितने ही सपनों,आशाओं,रिश्तों की होलिका जाती है जल, आज तक थे जो इस जग में,क्या सोचा था,वो होंगे नही कल।। पल पल हर पल हुआ रुआंसा है,जैसे किसी ने साज बेबसी का बजाया है, मज़हब नही सिखाता आपस मे बैर रखना,बचपन से यह दिल मे समाया है।। वो फिर तिरंगे में लिपट कर शव शहीद का घर उसके आया है।। बन्द करो ये खून की होली,अंत करो ये आतंकवाद, जाने कितने बसते आशियानों को और करोगे तुम बर्बाद।। जीयो और जीने दो की नीति को क्यों इस विश्व ने नही अपनाया है, सर्वे भवन्तु सुखिनः के भाव को आज के दिन ठुकराया है।। मज़हब नही सिखाता आपस मे बैर रखना,ये बचपन से दिल मे समाया है, वोतीन रंग के तिरंगे मे चौथा रंग रक्तिम धब्बे का उभर कर आया है,

प्रेम परिचय मेरे नजरिए से(( स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

प्रेम परिचय(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

प्रेम रंग

प्रेम रंग में रंग दे रे रंगरेजा! *बेकरार जीया को आ जाए करार* अधूरी अधूरी सी पूरी हो जाऊं मैं, *सांस सांस जुड़े तोसे दिल के तार* लम्हा लम्हा करूं महसूस तुझे, *रूह पर देना दस्तक तूं बारंबार* मैं कपाट दिल के आ जाऊंगी खोलने, *जैसे राधा को,  हों शाम के मोहक दीदार* *मोह मोह* के नहीं ये धागे, है ये तो गहन प्रेम का अनंत विस्तार तुम गगन के चंद्रमा मैं तुम्हारी ज्योत्सना,यही मेरा घर संसार।। फंदा फंदा बुना तुझे प्रेम डोर से, प्रेम ही इस नाते का आधार।। प्रेम से पहले आता सम्मान है, बनाया मुझे उसका भी पूरा हकदार किस किस बात के लिए करूं मैं, उस ईश्वर का शुक्रगुजार??? हर्फ हर्फ है पढ़ा तुझे, तेरे हर स्वर हर व्यंजन से  हुई जिंदगी मेरी गुलजार।। फुर्सत के चंद लम्हों की, होती है मुझे प्रीतम दरकार।। *कुछ किया दरगुजर, कुछ किया दरकिनार* यही मूल मंत्र सफल वैवाहिक जीवन का अपनाया मैने, हर स्पीड ब्रेकर फिर कर लिया पार।। मोहे प्रेम रंग में रंग दे रंग रेजा! बेकरार जिया को आ जाए करार।। अब धड़कन धड़कन से लगी है बतियाने, कर ले माही! तूं भी स्वीकार मेरे नयनों में पढ़ लेना चाहत मेरी, हो सकता है कर नहीं पाऊं

प्रेम पैमाना(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*प्रेम* मापने का मुझे तो, बस यही एक पैमाना  समझ में आता है।। भरी भीड़ हो जब  इस दुनिया में, सिर्फ वही  नजरों को भाता है।। *अलग परिवेश  अलग परवरिश* फिर भी दर्द,  चैन उसके कांधे पर ही पाता है।। जग की  इस आपाधापी में चित को  सुकून उसके दामन  में ही आता है।। *धुआं धुआं  सा हो जब मन* संग उसके,  सारा कोहरा छंट जाता है।। यूं हीं तो नहीं कहा जाता, ये एक नहीं *सात जन्मों*  का ये गहरा नाता है।। समय संग मौन से भी होने लगता है संवाद, धड़कन धड़कन संग लगती है बतियाने कुछ ईश्वर की ही होती होगी मर्जी  जो भाने लगते हैं अलग ही आशियाने।। मात्र तन का नहीं सच में ये रूह का नाता है। हिना सा होता है ये नाता, जो धानी से श्यामल हो जाता है।। किसी को जल्दी, किसी को देर से, मगर समझ ज़रूर , ये आता है।। यही प्रेम की है प्रकाष्ठा, प्रीतम मुख्य, सारा जग गौण बन जाता है।।

तूं सागर तो मैं जल(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

/तूं दिल तो मैं धड़कन// //तूं सुर तो मैं सरगम// //तूं सागर तो मैं जल// //तूं वक्त तो मैं पल// //तूं दीया तो मैं हूं ज्योति// //तूं सीप तो मैं हूं मोती// //तूं नदिया तो मैं हूं धार// //तूं डोर तो मैं हूं हार// //तूं पंख तो मैं परवाज// //तूं कंठ तो मैं आवाज// //तूं नयन मैं हूं नूर// //तूं हाला तो मैं हूं सरूर// //तूं रीत तो मैं आवाज// //तूं भाव तो मैं अल्फाज// //तूं मीत तो मैं हूं प्रीत// //तूं संगीत तो मैं हूं गीत// //तूं माखन तो मैं हूं मधानी// //तूं राजा तो मैं हूं रानी// //तूं मंजिल तो मैं हूं राह// //तूं मिलन तो मैं हूं चाह// //तूं लक्ष्य तो मैं प्रयास// //तूं प्राप्य तो मैं आस// //तूं इमारत तो मैं आधार// //तूं विश्वाश तो मैं प्यार// //तूं परिंदा तो मैं पंख// //तूं परीक्षा तो मैं अंक// //तूं बादल तो मैं बरखा// //तूं सूत तो मैं चरखा// //तूं अभिव्यक्ति तो मैं अहसास// //तूं श्रम तो मैं विकास// //तूं मंदिर तो मैं मूरत// //तूं आईना तो मैं सूरत// //तूं प्रेम तो मैं विश्वाश// //तूं भगति तो मैं अरदास// //तूं पतंग तो मैं डोर// //तूं दिनकर तो मैं उजली भोर// //तूं रंग तो मैं रंगरेज

तूं दिल तो मैं हूं धड़कन(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

//तूं दिल तो मैं धड़कन// //तूं सुर तो मैं सरगम// //तूं सागर तो मैं पल// //तूं वक्त तो मैं पल// //तूं दीया तो मैं हूं ज्योति// //तूं सीप तो मैं हूं मोती// //तूं नदिया तो मैं हूं धार// //तूं डोर तो मैं हूं हार// //तूं पंख तो मैं परवाज// //तूं कंठ तो मैं आवाज// //तूं नयन मैं हूं नूर// //तूं हाला तो मैं हूं सरूर// //तूं रीत तो मैं आवाज// //तूं भाव तो मैं अल्फाज// //तूं मीत तो मैं हूं प्रीत// //तूं संगीत तो मैं हूं गीत// //तूं माखन तो मैं हूं मधानी// //तूं राजा तो मैं हूं रानी// //तूं मंजिल तो मैं हूं राह// //तूं मिलन तो मैं हूं चाह// //तूं लक्ष्य तो मैं प्रयास// //तूं प्राप्य तो मैं आस// //तूं इमारत तो मैं आधार// //तूं विश्वाश तो मैं प्यार// //तूं परिंदा तो मैं पंख// //तूं परीक्षा तो मैं अंक// //तूं बादल तो मैं बरखा// //तूं सूत तो मैं चरखा// //तूं अभिव्यक्ति तो मैं अहसास// //तूं श्रम तो मैं विकास// //तूं मंदिर तो मैं मूरत// //तूं आईना तो मैं सूरत// //तूं प्रेम तो मैं विश्वाश// //तूं भगति तो मैं अरदास// //तूं पतंग तो मैं डोर// //तूं दिनकर तो मैं उजली भोर// //तूं रंग तो मैं रंगरे