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बाबुल तेरी वसीयत में(((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)((


बाबुल तेरी वसीयत में,
एक हिस्सा मेरा भी हो।
धन दौलत की नहीं दरकार मुझे,
पर एक किस्सा मेरा भी हो।।

कर देना, बस नाम मेरे वे अपने कुछ बरसो पुराने खत, जो लिखे थे तुमने मुझे जब घर छोड़ हॉस्टल गई थी मैं,
तुम कितने प्रेम से मुझे सब
समझाते थे।
मेरे उदास अधरो पर बाबा,
झट मुस्कान ले आते थे।।

कर देना, बस नाम मेरे वे पुराने एल्बम, जिनमे आज भी मेरे और भाई के बचपन को तुम संजोए हुए हो।वे तस्वीरें तो अतीत का वो सुनहरा दस्तावेज हैं,जो आज भी जेहन में अंकित हैं।।

कर देना,बस नाम मेरे वो क्वर्नेस पर रखी आपकी और मां की बरसों पुरानी तस्वीर,जिसे देख देख बचपन जवानी में तब्दील हो गया था।।

कर देना,बस नाम मेरे वे पुराने अचार वाले मर्तबान,वो मेरी छोटी
गिलासी,वो मेरी पसंद की थाली,वो पीतल का गिलास।
आज भी जब देती हूं दस्तक अतीत की चौखट पर,होते हो अक्सर तुम मेरे पास।।

बाबा मुझे वे सब पल दे दो वसीयत में,जब सिर पर तेरा और मां का शीतल साया था।
कोई भी चिंता नहीं रहती थी चित में,जो चाहा सो पाया था।।
बाबा वो सुकून,वो मुस्कान, दे दो मुझे वसीयत में,जो तेरे बाद कहीं न मिल पाई।

वो पल सुनहरे दे दो जब रूठ जाती थी अक्सर,और तुम बिन एक पल गवाए झट से आ कर मना लेते थे,
अब तो कोई नहीं मनाता मुझ को,
वक्त ने ली कैसी है अंगड़ाई???

कर देना, बस नाम मेरे वो पुराना गर्म दुशाला आपका,जिस में से आप की चिर परिचित महक आया करती है।जिसे ओढ़ कर घने जाड़े में भी तुम घूमने जाते थे,लौट कर आते जब घूम कर,वो जमी बर्फ के छोटे छोटे से कण हमे दिखाते थे।।

कर देना, बस नाम मेरे मां के हाथ के बने स्वेटर,जिनकी गर्माहट से पल भर में जाड़ा भाग जाता था,
कर देना बस नाम मेरे मां के दुप्पटे,मां के शॉल, जिन्हें सहेज कर रखना चाहती हूं ताउम्र मैं,सहेजना चाहती हूं वो स्नेहिल स्पर्श,वो ममता भरे अहसास,जो किसी बाजार में नहीं मिलते।।

कर देना, बस नाम मेरे वो तांबे का जग मटमैला सा,जिसे रोज भर मां तुम्हारे सिराहने रख देती थी।।

कर देना,बस नाम मेरे वो सिलबट्टा,वो कुंडी सोटा,मां जिन पर जायकेदार चटनी बनाती थी।।

कर देना,बस नाम मेरे मेरी वो गुडिया पुरानी,मेरा वो स्कूल का बैग बाबा,जिसे पकड़ तुम मुझे छोड़ने जाते थे।

कर देना,बस नाम मेरे वो बेलन,वो 
मधानी,जिन पर मां के हाथों का मधुर स्पर्श है।जिसे बड़े प्रेम से मेरी मां ने बरसों चलाया है।उन्हे छू कर कर लूंगी स्पर्श उस मधुर स्पर्श को
जो आज भी जेहन में एक लोरी सा लगता है।।

कर देना, बस नाम मेरे मां का और आप का वो लकड़ी का डोगा,जिन्हे जाने कितनी ही बार मां और आपके हाथों ने स्पर्श किया होगा।।
कर दोगे ना बाबूजी????
         बिटिया की गुजारिश बाबुल के नाम।।
          स्नेह प्रेमचंद

Comments

  1. Emotional outburst of a daughter for her father’s unconditional love… beautifully expressed 👌🏻

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  2. बेटियों की ऐसी ही गुज़ारिशें हुआ करती हैं...

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