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कच्चे धागे पर पक्का बंधन(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))


कच्चे धागे के पक्के बंधन का आया राखी का त्योहार
स्नेह,ख्याल,परवाह,अपनत्व ही,
इस पर्व के मूलाधार
 
नाराज़ हैं जो भाई बहन बरसों से,
मिल कर मनाएं यह पावन त्यौहार

क्यों बने हैं चट्टान से,पिघल जाएं मोम से,दुनिया में नहीं आना बार बार

हमारी नाराजगियों की उम्र हमारी उम्र से लंबी ना हो,
कुछ करना दरगुज़र कुछ करना दरकिनार

हर प्रॉपर्टी के झगड़ों से ऊपर है यह नाता भाई का,
बस चित में पनपे ना कोई विकार

पहले झुकने वाला ही बड़ा होता है सदा,
जाना जिसने जाना जिंदगी का सार

नहीं झुकने वाले को पछतावा होता है एक रोज,
 पर कोई लाभ नहीं होता फिर झूठा लगने लगता है संसार

कच्चे धागे के पक्के बंधन का आया राखी का त्योहार
स्नेह,ख्याल,परवाह,अपनत्व ही
इस पर्व के मूलाधार
हर बहना को हर भाई से
 प्यार का मिलता रहे उपहार

मां के बाद बहन का नाता ही होता है निस्वार्थ प्रेम का,
मां सी ममता बहती रहती बहना चित में बेशुमार

कुछ लेने नहीं देने आती हैं दुआएं बेटियां
 कर लेना दिल से उन्हें स्वीकार
हंसते हंसते अपना आधा हिस्सा देने वाली बहनों के रहना सदा शुक्रगुजार
कच्चे धागे के पक्के बंधन का आया राखी का त्योहार

*सुख,समृद्धि,उन्नति,खुशहाली*
चारों का दीया जलता रहे भाई के अंगना
हो हर दिन उसका होली और दिवाली 

ना स्पर्धा ना ईर्ष्या ना ही कोई द्वेष है
केवल शुभकामनाएं और दुआएं ही बहनों के मन में शेष हैं
देख अपने आंगन के नन्हे पौधे को बढ़ता
छलक जाते हैं बहना के दो प्यारे से नयन
वह बचपन का साथ,वह लड़ना झगड़ना
वह हर बात में जो करते थे चयन

अब ना कोई जिद्द है न कोई झगड़ा
बस प्रेम और दुआओं का रह जाता है संसार
कच्चे धागे के पक्के बंधन का आया राखी का त्योहार

किसी उपहार की बहना को नहीं होती लालसा
बस आंगन से बचपन की यादों के फूल चुराने आती है
सूख जाते हैं जो कई बार अनचाहे कारणों से,
राखी पर उनमें नव जीवन ले आती है

इस नववजीवन लाने से दोनों के जीवन में आ जाती है बहार
*कच्चे धागे के पक्के बंधन का आया राखी का त्योहार*
स्नेह,अपनत्व,सौहार्द,परवाह ही होती इस नाते का मूलाधार

*बहुत ही अपनी बहुत ही प्यारी होती है बहनें*

*प्रेम की स्याही से अपनात्व का ग्रंथ लिखती है बहनें*

 *दुश्मनी का दवानल
 प्रेम जल से बुझाती है बहनें*

 *द्वेष का दलदल स्नेह जल से सुखाती है बहनें*

*कलह का कीचड़ हटाकर सौहार्द का कमल खिलाती हैं बहनें*

*कटुता की कालिख मिटा कर मधुरता का डंका बजाती हैं बहनें*

*अपनत्व के घी से प्रेम की अखंड ज्योत जलाती हैं बहनें*

*स्नेह की कावड़ में मीठे रिश्तों का मधुर सा जल हैं बहनें*

*विनम्रता की अंखियों में करुणा जल हैं बहनें*

*मुसीबत की घड़ी में परछाई हैं बहनें*

*विश्वाश की मांग में स्नेह सिंदूर हैं बहनें*

जब इतनी खास होती हैं बहनें
तो कई जगह क्यों होती है उनकी उपेक्षा और तिरस्कार??
वे तो प्रेम सम्मान की अधिकारी हैं
यही सिखाता राखी का त्योहार

इन चिड़ियों की चहक से तो
पीहर का आंगन हो जाता है गुलज़ार

आओ संकल्प लें इस पावन पर्व पर
बहनें भी भाइयों का रखें ख्याल
एक तरफा नहीं दो तरफा है ये नाता,खड़ा नहीं होता कोई भी सवाल

हो सकता है भाई भी हो किसी दुविधा में,
उसे सुविधा में बदलने में बहन को हो दरकार
कच्चे धागे के पक्के बंधन का आया राखी का त्योहार

दूजा संकल्प लें 
बहनों के हिया पर लगे ना कोई भी ठेस
बहुत कोमल हैं वे भीतर से
ऊपर से बदलती हों चाहे कितने ही भेस

हक दो उन्हें इतना वे कह पाएं
जो भी दिल से कहना चाहें
मधुर वाणी के कोमल पुष्पों से
खिला दो उनके स्वागत में राहें

 उनकी अनमोल दुआएं देंगी
निश्चित ही भाई का जीवन संवार
कच्चे धागे के पक्के बंधन का
आया राखी का त्योहार

कोई गांठ कोई मनमुटाव ना रहे दोनों के बीच में,
सरलता सहजता के हों इस बंधन में दीदार
*मां बाबुल की सही से देख रेख हो*
यही बहना को भाई से चाहिए उपहार

मां तात के बाद भी अक्स नजर आए उनका एक दूजे में
जुड़े रहें ताउम्र दिल के दिल से तार
सबसे लंबा सबसे प्यारा नाता है भाई बहन का,
प्रेम ही होता इस नाते का आधार
*कच्चे धागे के पक्के बंधन का आया राखी का त्योहार*

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