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मधुशाला में हाला के प्याले

उस शिक्षा का नहीं कोई औचित्य

जन्मदिन मुबारक जन्मदिन मुबारक

ईश्वर का अद्भुत वरदान होता है कलाकार। जन्मजात खूबियों को कर्म की कूची से दे देता है आकार।। सृजन होता है जब भी कहीं किसी कला का,मां सरस्वती की कृपा होती है अपार।। ख्वाब बन जाते हैं फिर हकीकत, सफलता खटखटाने लगती है जिंदगी का द्वार।। संकल्प से सिद्धि तक का सफर बन जाता है यादगार।। धानी से श्यामल हो जाती है हिना, आता है रंग सच में दमदार।। हिना आप भी अपनी कला से  पाना सफलता बेशुमार।। यही दुआ है आज के दिन मेरी ओर से,कर लेना इसे प्रिय स्वीकार।। हजार शब्दों पर भारी पड़ता है एक चित्र,सच में धन्य है कला,धन्य है कलाकार।।           स्नेह प्रेमचंद

सबके बस की बात नहीं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सुविचार,,,अधिकार सब चाहते हैं,ज़िम्मेदारी लेना सबके बस की बात नही,लेने की अपेक्षा करना बहुत आसान है,देना सब के बस की बात नही,मेहमान सब अच्छे बन सकते हैं,मेहमाननवाज़ी सबके बस की बात नही,कहने के बाद सब समझ लेते हैं,बिन कहे ही सब समझना सब के बस की बात नही,रो तो हर कोई लेता है,मुस्कुराना सब के बस की बात नही,उलाहना हर कोई दे देता है,कृतज्ञ होना सब के बस की बात नही,अकेले तो सब चल लेते हैं,सब को साथ ले कर चलना सब के बस की बात नही,वाहवाही तो सब चाहते हैं,पर चुपचाप अच्छे कर्म करना सब के बस की बात नही,आप जो क्या लगता है

मां जाई जैसा कोई और नहीं(( दिल की कलम से))

*कोई ओर नहीं कोई छोर नहीं* *मां जाई जैसा कोई और नहीं* *सबसे लंबा सबसे प्यारा भाई बहन का सुंदर नाता* *कभी बिसराना ना मां जाई को उसकी प्रेम गहराई को तो नापना भी नहीं किसी को आता* जिंदगी का  जब परिचय हो रहा होता है  अनुभूतियों से तब से निभ रहा  होता है ये नाता कोई सांझ भोर नहीं होती ऐसी, जब जेहन में पीहर नहीं आता।। मुलाकात बेशक रोज ना होती हों, पर संबंध तो  दिनों दिन है गहराता। *बेबे तो अक्सर कई बार उलझ सी जाती है अपने घर संसार में* भाई दस्तक देते रहें उसकी चौखट पर,ना सोचें जाएंगे किसी त्योहार में।। मां जाई के लिए तो उसी रोज आ जाती है *होली दिवाली* जब दहलीज पर खड़े हों मां जाए, भर जाती है  जैसे झोली कोई खाली।। वो रिश्ता ही क्या जिसमे बार बार देनी पड़े सफाई संवाद ओढ़े रहें दुशाला मधुरता का फिर सदा बजेगी मीठी सी शहनाई।। सच में सबसे न्यारी होती है मां जाई किसी को जल्दी, किसी को देर से बात मगर ये समझ में आई।। सच में वो बहुत खास है सच में वो दिल के बहुत पास है यूं हीं बिन मौके ही  चले आया करो उसके आशियाने में, बेशक उसने न हो आवाज लगाई।। *वो कमल सी खिल जायेगी* *सारी दरारें भर जाएगी*

है सत्य,नहीं अनुमान(( स्नेह प्रेमचंद के दिल से))

*मधुर आगमन असहनीय प्रस्थान* *हानि धरा की लाभ गगन का है सत्य, नहीं अनुमान* *लम्हे की खता, बनी ना भूली  जाने वाली दास्तान* *तुझे बना कर तो, खुद खुदा भी हो गया होगा हैरान*ओ *नजर ही नहीं नजरिया भी था खास तेरा सच में तूं ईश्वर का वरदान* मधुर आगमन दुखद प्रस्थान *11 स्वर और 33 व्यंजन भी नहीं कर पाते तेरा बखान* *कुछ एहसास शब्दों के दायरे से बहुत परे हैं आता है उनमें सबसे ऊपर तेरा नाम* *एक मां संग  और एक तुझ संग होती थी जो अनुभूति चाह कर भी नहीं कर पाती कभी बयान* *वही महक  वही सौंधी सौंधी सी खुशबू तुझ में, अंतर्मन के गलियारों में  आज भी तेरे निशान* *जैसे पहली बारिश  के बाद की बूंदें  बस जाती हैं नस नस में, ऐसा तेरा *औरा*  ऐसी तेरी पहचान* मधुर आगमन अकल्पनीय प्रस्थान प्रेम ने करुणा से करुणा ने मधुर वाणी से मधुर वाणी ने विनम्रता से विनम्रता ने अपनत्व से अपनत्व ने जुड़ाव से जब पूछा पता उनके आशियाने का एक ही जवाब था सबका नाम था तेरे ठिकाने का।। प्रेम सुता तूं पर्याय प्रेम का, प्रेम का रूह ने पहना परिधान। मधुर आगमन,दुखद प्रस्थान।। मेरी छोटी सी सोच को  समझ नहीं आती  ये बात बड़ी सी, कैसे सम

आओ इस बार की लोहड़ी में जला दें