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बता पार्थ तेरे कौन थे माधव

बता पार्थ तेरे कौन थे माधव जो जीवन के कुरुक्षेत्र में तूने विजय पाई किसने ज्ञान दिया था तुझे गीता का जो कम उम्र में भी इतनी समझ आई उम्र अनुभव का मोहताज नहीं, पूरी दुनिया को यह बात समझाई *क्या कुछ नहीं कर सकते प्रयास* प्रयासों से उपलब्धि तक जाने की राह दिखाई लक्ष्य को मिल ही जाती है सफलता ने गर मेहनत से  ना हो आंख चुराई बता पार्थ तेरे कौन थे माधव *जीवन की धनुर्विद्या* जिसने सिखाई *कर्मों से लिखा जा सकता है भाग्य* परिवेश,परवरिश की ना दी तूने कभी दुहाई हर सफर मंजिल की ओर जाता नहीं है पर मंजिल की ओर जाता तो कोई न कोई सफर ही है *कर्म* करने की महता माधव ने ही पार्थ तुझे सिखाई *हर दुविधा को सुविधा कैसे जाता है बनाया*  बता पार्थ माधव ने कूटनीतिक समझ तुझ में कैसे पल्लवित कराई?? *जीवन एक रंगमंच है* और हम सारे किरदार ऊपर वाले के हाथ में *कठपुतली* हैं  सब जानता था तूं ये पार्थ  इस रंगमंच से हौले से कैसे चले जाते हैं   गुरु माधव की  शिक्षा नीति तूने अपनाई बता पार्थ तेरे कौन थे माधव जिसने तुझे मित्रता की महता समझाई सुदामा कृष्ण की गहरी दोस्ती...

बता पार्थ तेरे कौन थे माधव

बता पार्थ तेरे कौन थे माधव जो जीवन के कुरुक्षेत्र में तूने विजय पाई किसने ज्ञान दिया था तुझे गीता का जो कम उम्र में भी इतनी समझ आई उम्र अनुभव का मोहताज नहीं, पूरी दुनिया को यह बात समझाई क्या कुछ नहीं कर सकते प्रयास प्रयासों से उपलब्धि तक जाने की राह दिखाई लक्ष्य को मिल ही जाती है सफलता  गर मेहनत से ना हो आंख चुराई बता पार्थ तेरे कौन थे माधव जीवन की धनुर्विद्या जिसने सिखाई कर्मों से लिखा जा सकता है भाग्य परिवेश परवरिश की ना दी तूने कभी दुहाई बता पार्थ तेरे कौन गुरु थे जिसने गांडीव पर प्रत्यंचा चढ़ानी सिखाई मुझे तो लगता है मां ही तेरी माधव थी मा जाई मां की कर्मठता स्वाभाविक रूप से तेरे चरित्र में उतर आई

कौन कहता है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कौन कहता है मर्द को जमाने के गर्म सर्द का पता नहीं चलता, वह सहता अधिक है,कहता कम है उच्चारण नहीं आचरण को बनाता है जीवन आधार I love u भले ही ना कहे वह मगर उसकी परवाह में उसके प्रेम के होते हैं दीदार जीवनपथ न बने अग्निपथ कभी इसी जद्दोजहद में जिंदगी देता है गुजार कौन कहता है मा अधिक स्नेह करती है बच्चों से, पिता का भी अवर्णनीय होता है दुलार हर आंधी तूफान में बन जाता है ढाल वह कुछ करता रहता है दरगुज़र, कुछ करता रहता दरकिनार कभी पुत्र,कभी पति,कभी पिता का निभाता रहता है किरदार कौन कहता है मर्द को मात पिता से नहीं होता है प्यार बस नातों में बना रहे ताल मेल, रहे शांति और खुशियां घर में, यही उसकी सोच यही उसके विचार कौन कहता है उसका अलसाने का मन नहीं करता पेंडिंग कामों में लगा देता है अपना इतवार चित चिंता रहित रहता है उसके होने से, जिम्मेदारी संग जाग जाते हैं अधिकार कौन कहता है उसके शौक नहीं होते पर यदा कदा ही दबे स्वरों में उनका करता है इजहार कौन कहता है उसको बोलना नहीं आता पर शांति प्राथमिक होती है जीवन में उसके,इसलिए हर भाव को शब्दों का पहनाता नहीं वह हार कौन कहता है उसको गुस्सा न...

तुम भी जानो

मैं लक्ष्मण तूं संजीवनी बूटी

एक चमन की दो डाली

कुछ लोग जेहन में ऐसे बस जाते हैं

** जिन्हें ईश्वर खून के नाते में बांधना भूल जाता है उनको इस जीवन में सच्चा मित्र बनाता है** यूं तो मिलते तो बहुत हैं जिंदगी के सफर में लोग, कुछ भूल जाते हैं,कुछ याद रह जाते हैं पर कुछ लोग जेहन में सदा के लिए अंकित हो जाते हैं *इस फेरहिस्त में नाम सखी तेरा शीर्ष पर हम पाते हैं* *सावन भादों* से होते हैं कुछ लोग जिंदगी में, बेमौसम भी खुल कर बरस जाते हैं  सुकून भरी हरियाली से आच्छादित हो जाता है तन मन, चित चैन,राहत,खुशी मिल कर जिंदगी की चौखट पर दस्तक दे जाते हैं इस फेरहिस्त में नाम तेरा सखी शीर्ष पर हम पाते हैं कुछ लोग जेहन में ऐसे अंकित हो जाते हैं *जैसे बच्चे घर में घुसते ही मां को  आवाज लगाते हैं* मां भी दौड़ी आती है एक ही आहट पर, गोधूलि की बेला पर जैसे भानु धरा से मिलते नजर आते हैं **इस फेरहिस्त में नाम सखी तेरा शीर्ष पर हम पाते हैं** कुछ लोग जिंदगी में ऐसे घुल जाते हैं *जैसे शक्कर घुल जाती है पानी में, मिठास से संबंध को सींचे जाते...