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तन जख्मी,रूह रेजा रेजा,चित भी लगता है उदास उदास(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

तन ज़ख्मी रूह रेजा रेजा
 चित भी लगता है उदास उदास

मात्र 26 लोग ही नहीं मरे इस पहलगाम के आतंकी हमले में,
मर गए अगणित सपने,आशा,उम्मीदें,विश्वास

 मर गई मानवता,हुई हावी दानवता
निष्ठुरता मिलने आ गई हिंसा के पास
तन जख्मी,रूह रेजा रेजा,
चित भी लगता है उदास उदास

धरा भी लगती है रोई रोई,
अनमना सा लगने लगा आकाश
वसवसे से उठते हैं चित में
असहज सा लगता हर प्रयास

ना फटी धरा ना डोला गगन
मौत के भयानक तांडव से हर मंजर धुंधला हो आया
मानव बन गया दानव पहलगाम में
पड़ा सूखा करुणा का,
तूफान संवेदनहीनता का आया

क्यों निर्दोषों को उतारा घाट मौत के
हर शब्द मौन और भाव स्तब्ध हो आया
रूह हो गई रेजा रेजा,
मन भी बोझिल हो आया

क्यों खेली दरिंदों ने होली खून की,
रंग बस लाल ही लाल नजर आया
आतंकी का आतंक जमीदोज हो अब
बड़ा निष्ठुर बेरहम है इसका साया

ऐसा भी कोईं कैसे कर सकता है
विश्वास को नहीं नहीं होता विश्वास
तन जख्मी रूह रेजा रेजा
 चित भी लगता है उदास उदास

फिर रक्तरंजित हुई धरा काश्मीर की,
फिर गहरी नींद में सोने लगा विकास
बरसों पीछे ले गया यह आतंकी हमला
संतप्त हृदय की कैसे बुझेगी प्यास

इतने गहरे जख्मों का नजर नहीं आता कोई मरहम,
चित को ऐसा होता आभास
तन जख्मी,रूह रेजा रेजा,
चित भी लगता है उदास उदास

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
फिर क्यों धर्म के नाम पर जिंदगी मौत से नयन मिलाती है
क्यों प्रेम से बड़े हो जाते हैं राग,द्वेष ईर्ष्या,घृणा
मानवता किस आंचल तले जा कर सो जाती है?????
क्यों शिक्षा भाल पर टीका संस्कारों का नहीं होता है
क्यों विकार हो जाते हैं हावी सद्गुणों पर
क्यों पाषाण हृदय द्रवित नहीं होता है????
क्या लाए थे,क्या ले जाना है अस्थाई से इस जीवन में कुछ भी तो स्थाई नहीं है हमारे पास

देख इस भयानक नर संहार को
मर गया हौंसला,मर गया आत्मविश्वास
तन जख्मी रूह रेजा रेजा,
चित भी लगता है उदास उदास

मर गए मात पिता के खवाब सारे
उजड़ी कोख, लूटा सुहाग,छीना पिता का साया
हर लिए दरिंदों ने लोगों के श्वास

ना फटी धरा ना डोला गगन 
जन्नत सी धरा बन गई नरक सी, सुमन में भी अब नहीं आती सुवास

तन ज़ख्मी रूह रेजा रेजा 
चित भी लगता है उदास उदास

इतना जघन्य अपराध ना देखा कभी,ना सुना कभी,
अपनों के सामने अपनों की ही बिछा दी लाश

साम, दाम,दंड,भेद चाणक्य नीति भी अब  अपनानी होगी
घर में घुस कर मार गए वे
सुरक्षा अपनी बढ़ानी होगी
हर हद लांघ गए वे निष्ठुर
फिर सरहद की बात भुलानी होगी

हर सजा पड जाती है छोटी
कोई भी सजा,प्रतिशोध क्या ला सकता है अपनों को अपनों के पास
तन जख्मी रूह रेजा रेजा
चित भी लगता है उदास उदास

मर गया मन का उल्लास उमंग
चित,चितवन,चेतन,अचेतन,चित्र,
चरित्र सब उदास उदास
सोच से सोचा भी नहीं जाता दुख शोक संतप्त परिवार जनों का
कैसे जीवन उन्हें अब आयेगा रास??

मर गया भरोसा इंसान का इंसान पर
व्यथित मन,घायल तन,टूटी टूटी सी आस

कितनी विकृत मानसिकता होगी उनकी,कर दिया होगा उन सब का ब्रेन वाश
ऐसे भी कोई कैसे कर सकता है???
विश्वास को भी नहीं होता विश्वास

शस्त्रहीन पर वार किया
वे कायर,नपुंसक मानवता के अपराधी हैं
निर्दोषों के खून के रंगी यह कश्मीर की वादी है
ऐसा घिनौना अपराध है उनका
जिसका कोई प्राश्चित नहीं आता नजर
पूछ पूछ कर हिन्दू मारा
कैसा भयानक मचा दिया गदर
ऐसी कठोर सजा मिले उनको
चित उनका भी करे चीत्कार 
मात्र 26 लोगों को ही नहीं मारा उन्होंने
भारत की आत्मा पर किया है प्रहार

जड़ से मिटाना होगा आतंक को इस विश्व पटल से,
होगा यही मानवता का सच्चा श्रृंगार
सब सुरक्षित हों सब निर्भय हों
हो हृदय में सबके प्रेम और करुणा का संचार
इसी भाव से व्यथित मनों में
होगा हौंसले का अब वास
तन ज़ख्मी,रूह रेजा रेजा,
चित भी लगता है उदास उदास

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